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गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non-Banking Financial Companies - NBFCs)

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ वे वित्तीय संस्थाएँ (Financial Institutions) होती हैं जो बैंक जैसी कई सेवाएँ प्रदान करती हैं, लेकिन ये बैंक नहीं होतीं।
  • ये Companies Act, 1956 या 2013 के अंतर्गत पंजीकृत होती हैं और इनका प्रमुख नियामक (Regulator) भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) होता है।
  • महत्व (Importance):जहाँ पारंपरिक बैंक भारत की औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के केंद्र में हैं, वहीं NBFCs ने उन क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) को बढ़ावा दिया है जहाँ बैंक नहीं पहुँच पाते।

प्रमुख कार्य (Key Functions of NBFCs):

  • ऋण और अग्रिम (Loans and Advances):ग्राहकों को विभिन्न उद्देश्यों हेतु कर्ज़ देना।
  • एसेट फाइनेंसिंग (Asset Financing):मशीनरी, वाहन जैसे पूँजीगत वस्तुओं की खरीद में वित्तीय सहायता।
  • सूक्ष्म-वित्त सेवाएँ (Microfinance Services):गरीब और वंचित वर्ग को छोटे कर्ज़ देना।
  • प्रतिभूतियों का व्यापार (Dealing in Securities):शेयर (Stocks), बॉन्ड्स और अन्य वित्तीय साधनों में निवेश करना।
  • लीजिंग और हायर परचेज (Leasing and Hire Purchase):किराए पर या किस्तों पर वस्तुएँ प्रदान करना।
  • फैक्टरिंग (Factoring):कंपनियों की बकाया राशि (Receivables) की फाइनेंसिंग।

प्रमुख नियामक मापदंड (Key Regulatory Criteria):

RBI के अनुसार किसी कंपनी को NBFC माने जाने के लिए शर्तें:-

  • वह कंपनी Companies Act के अंतर्गत पंजीकृत होनी चाहिए।
  • उसके पास कुल परिसंपत्तियों (Total Assets) का कम से कम 50% हिस्सा वित्तीय परिसंपत्तियाँ (Financial Assets) होनी चाहिए।
  • उसकी कुल आय (Total Income) का कम से कम 50% हिस्सा वित्तीय गतिविधियों से आना चाहिए।
  • इस परीक्षण को ही “50-50 परीक्षण (50-50 Test)” कहते हैं, जो यह तय करता है कि कोई कंपनी NBFC मानी जाएगी या नहीं।

बैंक (Banks) बनाम गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs)

विशेषता (Feature)

बैंक (Banks)

NBFCs (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ)

नियामक ढांचा (Regulatory Framework)

Banking Regulation Act, 1949 के तहत संचालित, RBI द्वारा विनियमित।

Companies Act, 1956/2013 के तहत पंजीकृत। RBI या अन्य नियामक जैसे SEBI, IRDAI, NHB द्वारा नियंत्रित।

डिमांड डिपॉज़िट (Demand Deposits)

स्वीकार कर सकते हैं (जैसे – बचत खाता, चालू खाता)।

स्वीकार नहीं कर सकते।

भुगतान और निपटान प्रणाली (Payment and Settlement System)

भुगतान प्रणाली का हिस्सा होते हैं; चेक जारी कर सकते हैं।

भुगतान प्रणाली का हिस्सा नहीं; खुद के नाम से चेक जारी नहीं कर सकते।

डिपॉज़िट बीमा (Deposit Insurance)

DICGC (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation) के तहत 5 लाख तक की बीमा।

NBFC डिपॉज़िट DICGC बीमा के अंतर्गत नहीं आते।

चेक जारी करना (Issuance of Cheques)

चेक जारी कर सकते हैं और क्लियरिंग सिस्टम से जुड़े होते हैं।

चेक जारी नहीं कर सकते।

वैधानिक आवश्यकताएँ (Statutory Requirements)

CRR (Cash Reserve Ratio) और SLR (Statutory Liquidity Ratio) बनाए रखना अनिवार्य।

CRR और SLR लागू नहीं; लेकिन RBI के Scale Based Regulation (SBR) के तहत लिक्विडिटी मानदंडों का पालन आवश्यक।

FDI (Foreign Direct Investment)

अधिकतम 74% (स्वचालित + सरकारी मार्ग)।

अधिकतम 100% (स्वचालित मार्ग), विशेष गतिविधियों में।

प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (Priority Sector Lending - PSL)

PSL लक्ष्यों को पूरा करना अनिवार्य (40% ANBC)।

अनिवार्य नहीं (कुछ अपवाद – जैसे NBFC-MFIs)।

सेवाओं की श्रेणी (Range of Services)

जमा, ऋण, क्रेडिट कार्ड, विदेशी मुद्रा, रेमिटेंस आदि सहित पूर्ण बैंकिंग सेवाएँ।

ऋण, अग्रिम, लीजिंग, हायर परचेज, सूक्ष्म-वित्त और निवेश सेवाएँ प्रदान करते हैं।

अर्थव्यवस्था में भूमिका (Role in the Economy)

औपचारिक वित्त प्रणाली के केंद्र में, बड़े पैमाने पर ऋण वितरण।

बैंकिंग सेवाओं से वंचित वर्गों (जैसे – ग्रामीण, MSME, स्वरोज़गार) को सेवाएँ देकर बैंकों की पूरक भूमिका (Complementary Role) निभाते हैं।

भारत में NBFCs का महत्व (Why NBFCs Matter to India)

  • विविध और असमान वित्तीय ढांचे वाले भारत में, NBFCs एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गए हैं।
  • जहाँ वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks) औपचारिक (Formal) और शहरी अर्थव्यवस्था को सेवाएँ देते हैं,
  • वहीं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) ग्रामीण और अनौपचारिक (Informal) क्षेत्रों में वित्तीय पहुँच (Financial Access) सुनिश्चित करती हैं,
  • जिससे उद्यमिता (Entrepreneurship) को बल मिलता है और वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) तेज होता है।
  • बैंकों से वंचित (Unbanked) और अल्प-सेवित (Underbanked) को ऋण (Credit) प्रदान करना

NBFCs निम्नलिखित को ऋण उपलब्ध कराते हैं:

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs – Micro, Small and Medium Enterprises)
  • स्वरोज़गार करने वाले व्यक्ति (Self-employed individuals)
  • किसान और ग्रामीण परिवार (Farmers and Rural Households)
  • पहली बार उधार लेने वाले (First-time borrowers) जिनका क्रेडिट इतिहास बहुत कम या नहीं होता (Thin/No Credit History)

विशिष्ट क्षेत्रों पर फोकस (Specialized Sectoral Focus)

NBFCs लचीले (Agile) होते हैं और विशेष जरूरतों के अनुसार सेवाएँ देते हैं, जैसे:

  • आवास वित्त (Housing Finance) – विशेषकर किफायती मकानों के लिए (Affordable Housing)
  • शैक्षणिक ऋण (Education Loans) – व्यावसायिक (Vocational) और उच्च शिक्षा के लिए
  • वाहन वित्त (Vehicle Finance) – दोपहिया और वाणिज्यिक वाहनों के लिए
  • उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएँ ऋण (Consumer Durable Loans) – जैसे मोबाइल, फ्रिज, टीवी, आदि

वित्तीय समावेशन के उत्प्रेरक (Catalysts of Financial Inclusion)

  • विशेषकर माइक्रोफाइनेंस संस्थान (MFIs – Microfinance Institutions) देश के सबसे दूरदराज़ क्षेत्रों में सेवाएँ पहुँचाते हैं:
    • महिला उद्यमियों (Women Entrepreneurs) को सशक्त बनाना
    • स्वयं सहायता समूह (Self-Help Groups – SHGs) को सहायता देना
    • ग्रामीण व्यवसाय (Rural Businesses) और कुटीर उद्योग (Cottage Industries) को वित्तीय सहायता देना

डिजिटल नवाचार (Driving Digital Innovation)

  • कई NBFCs ने फिनटेक कंपनियों (Fintech Companies) के साथ साझेदारी की है, जिससे डिजिटल ऋण (Digital Loans) प्रणाली सशक्त हुई है:
    • मोबाइल ऐप्स के माध्यम से तत्काल ऋण (Instant Loans)
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित स्कोरिंग (AI-based Credit Scoring) – नए ग्राहकों के लिए
    • ई-केवाईसी (eKYC) और UPI के माध्यम से कागज रहित प्रक्रिया (Paperless Onboarding)
    • Lending-as-a-Service (LaaS) – अन्य संस्थानों को ऋण सुविधा देने का मॉडल

अंतिम छोर तक पहुँच (Last-Mile Financial Access)

  • सबसे अहम योगदान – NBFCs उन लोगों तक पहुँचते हैं जो:
  • बैंकों से वंचित रहते हैं क्योंकि:
    • वे दूरस्थ क्षेत्रों (Remote Areas) में रहते हैं,
    • उनके पास औपचारिक रोजगार नहीं होता,
    • या उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं होते।

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