(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)
पृष्ठभूमि
हाल ही में कोरोना वायरस संकट के मध्य अमेरिका ने चीन एवं रूस पर आरोप लगाया है कि जब दुनिया कोविड-19 महामारी से निपटने में व्यस्त है तो चीन द्वारा परिस्थितियों का लाभ उठाकर गुपचुप तरीके से परमाणु परीक्षण किया जा रहा है। हालाँकि इन दोनों देशों द्वारा इन आरोपों को ख़ारिज किया गया है।
क्या है मुद्दा?
- अमेरिका के विदेश विभाग द्वारा कहा गया है कि चीन के लोप नूर परमाणु परीक्षण केंद्र की गतिविधियों से यह आशंका तीव्र हो गई है कि चीन ज़ीरो यील्ड मानक का उल्लंघन कर रहा है।
- ज़ीरो यील्ड के अंतर्गत ऐसे परमाणु परीक्षण को अनुमति दी जाती है, जिसमें कोई विस्फोटक श्रृंखला अभिक्रिया (Explosive Chain Reaction) नहीं होती है।
- उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि (CTBT) लाई गई थी। इस संधि के अनुपलानकर्त्ता देश के परमाणु परीक्षण केंद्रों में निगरानी संवेदक लगाए जाते हैं, जिनसे उस देश की परमाणु गतिविधियों पर नज़र रखी जाती है।
- चीन इस संधि के तहत लगाए गए निगरानी सेंसरों के आँकड़ों को बाधित कर रहा है, जिससे चीन की परमाणु कार्यक्रम सम्बंधी पारदर्शिता प्रभावित हो रही है।
व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध संधि (Comprehensive Test Ban Treaty-CTBT)
- यह एक बहुपक्षीय संधि है, जिसे वैश्विक स्तर पर वर्ष 1996 में परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से लाया गया था।
- ध्यातव्य है कि सी.टी.बी.टी. अभी तक प्रभावी नहीं हो पाई है क्योंकि इसे प्रभाव में लाने हेतु उन सभी 44 राष्ट्रों के हस्ताक्षर एवं अनुमोदन की आवश्यकता है, जिनके पास परमाणु सयंत्र हैं। वर्तमान में 36 देशों द्वारा ही इस संधि का अनुमोदन किया गया है।
- इस संधि के तहत 1000 टन की क्षमता वाले परम्परागत विस्फोटों से अधिक शक्तिशाली विस्फोट (भूमिगत, वायुमंडल या अंतर्जलीय) की जानकारी के लिये एक पर्यवेक्षण नेटवर्क की स्थापना की जाएगी।
- अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषण प्रणाली या किसी देश की निगरानी (जिसमें जासूसी गतिविधियाँ शामिल ना हों) से प्राप्त जानकारी के आधार पर कोई भी देश परमाणु विस्फोट की सत्यता की जाँच करने के लिये निरीक्षण का आग्रह कर सकता है।
- सयुंक्त राज्य अमेरिका इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाला पहला राष्ट्र बना था। यद्यपि अभी तक अमेरिका, चीन, इज़राइल, ईरान और मिस्त्र द्वारा इस पर हस्ताक्षर तो किये गए हैं किंतु अभी तक इसका अनुमोदन नहीं किया गया है।
सी.टी.बी.टी. की चुनौतियाँ
- परमाणु हथियार संपन्न देशों द्वारा सभी परमाणु हथियारों को नष्ट करने के सम्बंध में कोई निश्चित समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। भारत द्वारा इस सम्बंध में 10 वर्ष की समय-सीमा का सुझाव दिया गया है।
- संधि के अंतर्गत कोई भी सदस्य देश अन्य सदस्यों के समर्थन के बिना भी संधि से अलग हो सकता है।
- यह संधि केवल नाभकीय अस्त्र परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाती है, जबकि सदस्य देश कम्प्यूटर-अनुरूपित परीक्षणों के माध्यम से अपनी शस्त्र प्रणाली में वृद्धि कर रहे हैं।
- संधि के प्रभावी होने के पश्चात् इसका उलंघन करने पर दण्ड की प्रक्रिय अस्पष्ट एवं दोषपूर्ण है।
अबतक 176 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं।
- ध्यातव्य है कि सी.टी.बी.टी. में अत्यधिक वित्तपोषण अमेरिका द्वारा ही किया जाता है, जिससे इस संगठन द्वारा लिये गए निर्णय प्रभावित होते हैं।
- भारत द्वारा अभी तक सी.टी.बी.टी. और एन.पी.टी. (परमाणु अप्रसार संधि) पर हस्ताक्षर ना किये जाने के निम्नलिखित कारण हैं-
- भारत ने सी.टी.बी.टी. पर हस्ताक्षर को पूर्ण निरस्त्रीकरण की समयबद्ध योजना के साथजोड़ दिया है।
- भारत द्वारा यह निर्णय एन.पी.टी. के निरस्त्रीकरण की असफलता को ध्यान में रखकर किया गया है।
- भारत का एक महत्त्वपूर्ण मत यह भी है कि इस संधि का दायरा केवल परमाणु परीक्षण तक सीमित है, जबकि इसका विस्तार भौतिक, रासायनिक, जैविक और अन्य परीक्षणों तक किया जाना चाहिये।
- वर्तमान में, विश्व के कुल परमाणु हथियारों का 90 प्रतिशत से भी अधिक अमेरिका और रूस के पास मौजूद है, जबकि यही देश परमाणु विकास कार्यक्रमों का विरोध कर रहे है।
- भारत अपने दोनों महत्त्वपूर्ण मोर्चों पर परमाणु शक्तियों (पाकिस्तान एवं चीन) से घिरा हुआ है, इसलिये अपनी संप्रभुता एवं सुरक्षा के लिये भारत प्रतिबद्ध है।
- सी.टी.बी.टी. जैसी संधि पर भारत द्वारा हस्ताक्षर किये जाने से उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
क्या हो भविष्य की राह?
- निशस्त्रीकरण की मुहिम को अधिक प्रभावी बनाने हेतु उन्ही देशों को आगे आना होगा, जिनके पास बड़ी संख्या में परमाणु हथियार हैं।
- परमाणु हथियार मानवता के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ा खतरा हैं। इसका भयानक उदहारण हम जापान में देख चुके हैं।
- परमाणु हथायारों के उन्मूलन की दिशा में एक भेदभावरहित नीति की पहल होनी चाहिये।