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भारत में पोषण न्यूनता 

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : गरीबी एवं भुखमरी से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय ने पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES): 2022-23 पर आधारित एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। यह विश्लेषण उपभोग किए गए खाद्य पदार्थों की मात्रा को उनके कुल कैलोरी मान में परिवर्तित करता है और फिर निम्न व्यय वर्गों में पारिवारिक सदस्यों के अनुमानित प्रति व्यक्ति प्रति दिन कैलोरी सेवन की तुलना स्वस्थ जीवन के लिए औसत प्रति व्यक्ति दैनिक कैलोरी आवश्यकता से करता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष 

  • औसत दैनिक कैलोरी आवश्यकता : 
    • ग्रामीण भारत के लिए 2,172 किलो कैलोरी प्रति व्यक्ति
    • शहरी भारत के लिए 2,135 किलो कैलोरी प्रति व्यक्ति 
  • 2022-23 की कीमतों पर न्यूनतम आवश्यक मासिक प्रतिव्यक्ति व्यय (MPCE): 
    •  ग्रामीण भारत के लिए 2,197 (खाद्य: 1,569 और गैर-खाद्य: 628)
    • शहरी भारत के लिए 3,077 (खाद्य: 2,098 और गैर-खाद्य: 979) 
  • गरीबों/ वंचितों का अनुपात: एम.पी.सी.ई. की न्यूनतम आवश्यकता के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में 17.1% और शहरी क्षेत्रों में 14% लोग अनुमानतः वंचित हैं। 
  • सबसे गरीब 10% जनसंख्या पर आधारित न्यूनतम आवश्यक एम.पी.सी.ई. : यदि सबसे गरीब पांच प्रतिशत के बजाय सबसे गरीब 10 प्रतिशत जनसँख्या के के गैर-खाद्य व्यय पर विचार किया जाता है, तो 
    • एम.पी.सी.ई. ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 2,395 और शहरी क्षेत्रों के लिए 3,416 हो जाता है। 
    •  जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण भारत के लिए वंचितों का अनुपात बढ़कर 23.2% और शहरी भारत के लिए 19.4% जाता है।
  • प्रतिव्यक्ति कलोरी सेवन (PCCI): ग्रामीण भारत में सबसे गरीब पांच प्रतिशत और उसके ऊपर के पांच प्रतिशत का औसत पी.सी.सी.आई. क्रमशः 1,564 किलो कैलोरी और 1,764 किलो कैलोरी है।
  •  शहरी भारत के लिए, यह क्रमशः 1,607 किलो कैलोरी और 1,773 किलो कैलोरी होने का अनुमान है।

पोषण सुरक्षा

  • खाद्य सुरक्षा को सभी लोगों तक भोजन की उपलब्धता और पहुंच के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि पोषण सुरक्षा के लिए व्यापक श्रेणी के खाद्य पदार्थों के सेवन की आवश्यकता होती है जो आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
  • पोषण सुरक्षा स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करती है, जिसमें भोजन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। 

पोषण मापन का दृष्टिकोण

  • गरीबी को परिभाषित करना : रिपोर्ट में गरीबी को एम.पी.सी.ई. के आधार पर परिभाषित किया गया है। यह अनिवार्य खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं को खरीदने की क्षमता से जुड़ा हुआ है।
    • एम.पी.सी.ई. पर निर्भरता पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करती है।
  • कैलोरी आवश्यकता की गणना : प्रति व्यक्ति कैलोरी आवश्यकता (PCCR) राष्ट्रीय पोषण संस्थान की नवीनतम अनुशंसाओं के आधार पर की गई है, जो विभिन्न आयु-लिंग-गतिविधि श्रेणियों के भारतीयों के स्वस्थ जीवन के लिए अनुशंसित है।
    • भारत में कैलोरी की आवश्यकताओं के लिए राष्ट्रीय पोषण संस्थान की सिफारिशें भारतीयों के लिए अनुशंसित आहार भत्ते (RDA) से ली गई हैं।
    • आर.डी.ए. आहार संबंधी आदतों और भोजन की उपलब्धता में क्षेत्रीय और सांस्कृतिक अंतर के लिए पर्याप्त रूप से जिम्मेदार नहीं है।
  • सर्वे में शामिल व्यक्तियों का वर्गीकरण : परिवारों को सबसे गरीब से सबसे अमीर तक एम.पी.सी.ई. के आधार पर 20 भिन्न वर्गों में व्यवस्थित किया गया है, जिससे प्रत्येक वर्ग के लिए औसत पी.सी.सी.आई. और एम.पी.सी.ई. की गणना की जा सकती है।
    • प्रत्येक वर्ग जनसंख्या के 5% का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे जनसंख्या के भीतर व्यय वितरण और पोषण सेवन भिन्नताओं की विस्तृत समझ प्राप्त होती है।
    • यह भिन्न वर्गों में जनसँख्या के उपभोग पैटर्न की जानकारी देता है लेकिन उनके कल्याण या अभाव भी नहीं दिखाता है। 
  • राज्य/केंद्र शासित प्रदेश-वार 'गरीब'/वंचित का अनुपात : अखिल भारतीय कुल एम.पी.सी.ई. को सामान्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संख्या के संदर्भ में राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में मूल्य अंतर के लिए समायोजित करके राज्य/संघ राज्य क्षेत्र-विशिष्ट कुल न्यूनतम आवश्यक एम.पी.सी.ई. प्राप्त किया जाता है।
  • राज्य-विशिष्ट एम.पी.सी.ई. प्राप्त करने की पद्धति क्षेत्रीय मूल्य सूचकांक पर निर्भर करती है, जो वास्तविकता और सटीकता में काफी भिन्न हो सकती है।

पोषण सुरक्षा का महत्त्व 

  • समग्र स्वास्थ्य परिणाम : पोषण सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा से आगे पोषक तत्वों की गुणवत्ता और आहार विविधता पर जोर देती है, ताकि केवल कैलोरी पर्याप्तता से परे इष्टतम स्वास्थ्य सुनिश्चित हो सके।
  • आर्थिक उत्पादकता : कुपोषण कार्य क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है और स्वास्थ्य सेवा लागत को बढ़ाता है। 
    • भारत में कुपोषण की प्रत्यक्ष स्वास्थ्य देखभाल लागत सकल घरेलू उत्पाद का 4.2% होने का अनुमान है, जबकि उत्पादकता में कमी के कारण होने वाली अप्रत्यक्ष लागत अतिरिक्त 8% है। 
    • कुल मिलाकर, कुपोषण से संबंधित लागत भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 12% है।
  • संज्ञानात्मक विकास : बचपन में पर्याप्त पोषण संज्ञानात्मक विकास, बेहतर स्कूल प्रदर्शन और भविष्य में आय अर्जन की क्षमता को बढ़ाता है।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता : बेहतर पोषण से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और स्वास्थ्य सेवा व्यय में कमी आती है।
  • जैव विविधता : पोषण सुरक्षा एक महत्त्व यह है कि यह विविध आहार को प्रोत्साहित करता है, कृषि जैव विविधता का समर्थन करता है और सांस्कृतिक खाद्य विरासत को संरक्षित करता है।

पोषण सुरक्षा की दिशा में सरकार के प्रयास

  • पीएम पोषण योजना : स्कूली बच्चों की पोषण स्थिति और शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने के लिए निःशुल्क, पौष्टिक भोजन प्रदान करना।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम (ICDS) : 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पूरक पोषण, टीकाकरण और पूर्वस्कूली शिक्षा सहित कई सेवाएँ प्रदान करना।
    • यह कार्यक्रम आंगनवाड़ी केंद्रों के नेटवर्क के माध्यम से समग्र बाल विकास और कुपोषण को जड़ से खत्म करने पर केंद्रित।
  • मिशन पोषण 2.0: बेहतर सेवा वितरण के माध्यम से पोषण परिणामों को बढ़ाना, ट्रैकिंग और जवाबदेही के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
    • यह मुख्यतः आई.सी.डी.एस. को मजबूत करने, समुदाय-आधारित हस्तक्षेप को बढ़ावा देने और विभिन्न स्वास्थ्य एवं पोषण योजनाओं के अभिसरण में सुधार करने का प्रयास करता है।
  • प्रधान मंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उनके स्वास्थ्य और पोषण में सुधार करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
    • इसके तहत मातृ एवं शिशु कुपोषण को कम करने के लिए स्वास्थ्य जांच और संस्थागत प्रसव के लिए सशर्त नकद हस्तांतरण का प्रावधान किया गया है।
  • पोषण वाटिका : विविध, ताज़ा और पौष्टिक भोजन तक पहुंच में सुधार के लिए समुदायों में किचन गार्डन को बढ़ावा देना।
    • यह सब्जियों और फलों के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करता है, आहार विविधता को बढ़ाता है और पोषण में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देता है।
  • किशोरियों के लिए योजना (SAG): इसका क्रियान्वयन आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से छत्रक आईसीडीएस स्कीम की आंगनवाड़ी सेवाओं के प्रयोग द्वारा किया जाता है। 
    • यह स्व-विकास और सशक्तीकरण के लिए किशोरियों को सक्षम बनाकर उनकी पोषण और स्वास्थ्य स्थिति में सुधार लाने तथा स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण के प्रति जागरूकता प्रदान करने पर केंद्रित है।

बेहतर पोषण सुरक्षा के लिए सुझाव 

  • पोषण योजनाएँ : सरकार को विशेष रूप से सबसे गरीब परिवारों के पोषण सेवन में सुधार के उद्देश्य से योजनाओं को विकसित और विस्तारित करने पर जोर देना चाहिए।
  • सभी हितधारकों को शामिल करके मौजूदा खाद्य प्रणाली को बदलने के लिए नीतिगत पहल की तत्काल आवश्यकता है।
  • पोषण आधारित खाद्य सब्सिडी : वंचित परिवारों की कैलोरी और पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाने के लिए  सब्सिडी वाले खाद्य पदार्थों तक पहुँच बढ़ाने के साथ ही खाद्य सब्सिडी में पोषण आधारित समायोजन करने की आवश्यकता है।
  • निगरानी और मूल्यांकन : सरकार को पोषण हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता की निगरानी करने और आवश्यकतानुसार रणनीतियों को समायोजित करने के लिए मज़बूत तंत्र स्थापित करना चाहिए।
  • बेहतर डाटा प्रबंधन : भारत को 2030 तक वैश्विक पोषण लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से एक बेहतर डाटा प्रबंधन प्रणाली, खाद्य वितरण प्रणाली में अधिक जवाबदेही, कुशल संसाधन प्रबंधन, पर्याप्त पोषण शिक्षा, जनशक्ति का सुदृढीकरण और व्यवस्थित निगरानी की आवश्यकता है।
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