(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र और शासन- अधिकारों सम्बंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 4: संघीय ढाँचे से सम्बंधित विषय एवं चुनौतियाँ, शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, कार्य संस्कृति, सेवा प्रदान करने की गुणवत्ता)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद ए. बोबड़े ने कहा है कि सरकार को राजभाषा अधिनियम, 1963 में संशोधन करने पर विचार करना चाहिये, जिससे शासन में मातृभाषा व स्थानीय स्तर की अधिक से अधिक भाषाओं को शामिल किया जा सके।
पृष्ठभूमि
न्यायालय के अनुसार, शासन व प्रशासन को केवल हिंदी और अंग्रेजी तक ही सीमित न रखा जाए। उच्चतम न्यायालय ने यह विचार भारत संघ द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। भारत संघ द्वारा यह याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय के उस निर्णय के ख़िलाफ़ दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ (EIA) 2020 की अधिसूचना को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में अनूदित किया जाए।
संवैधानिक प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 348(1) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में सम्पन्न होगी, जब तक कि संसद द्वारा कानून के माध्यम से अन्यथा कोई प्रावधान नहीं किया जाता है।
अनुच्छेद 348(2) के अनुसार, किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाही में, हिंदी भाषा का या उस राज्य के आधिकारिक कार्यों के लिये उपयोग होने वाली किसी अन्य भाषा के प्रयोग को अधिकृत कर सकता है। हालाँकि, ऐसे उच्च न्यायालयों द्वारा दिये गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश पर यह लागू नहीं होगा, अर्थात ये अंग्रेजी में ही होंगे।
इसी अनुच्छेद का प्रयोग करते हुए राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के उच्च न्यायालयों में अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी भाषा में अदालती कार्यवाहियों की अनुमति प्रदान की गई है।
धारा 343(1) के अनुसार, भारतीय संघ की राजभाषा हिंदी एवं लिपि देवनागरी होगी।
संविधान के अनुच्छेद 120 के अनुसार, संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है, परंतु राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष विशेष परिस्थिति में किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकते हैं।
भाषा सम्बंधी प्रमुख प्रावधान
1. संसद् में प्रयोग की जाने वाली भाषा (अनुच्छेद 120) 2. विधान-मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा (अनुच्छेद 210) 3. संघ की राजभाषा (अनुच्छेद 343) 4. राजभाषा के सम्बंध में आयोग और संसद की समिति (अनुच्छेद 344) 5. राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ (अनुच्छेद 345) 6. एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा (अनुच्छेद 346) 7. किसी राज्य की जनसंख्या के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के सम्बंध में विशेष उपबंध (अनुच्छेद 347) 8. उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिये प्रयोग की जाने वाली भाषा (अनुच्छेद 348) 9. भाषा से सम्बंधित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिये विशेष प्रक्रिया (अनुच्छेद 349) 10. प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाएँ (अनुच्छेद 350-A) 11. भाषाई अल्पसंख्यक-वर्गों के लिये विशेष अधिकारी (अनुच्छेद 350-B) 12. हिंदी भाषा के विकास के लिये निदेश (अनुच्छेद 351)
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अन्य कानूनी प्रावधान
- राजभाषा अधिनियम,1963 की धारा 7 उच्च न्यायालयों के निर्णयों आदि में हिंदी या अन्य राजभाषा के वैकल्पिक प्रयोग से सम्बंधित है। इसके अनुसार, किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिये प्राधिकृत कर सकेगा।
- साथ ही, जहाँ कोई निर्णय, डिक्री या आदेश (अंग्रेजी भाषा से भिन्न) ऐसी किसी अन्य भाषा में दिया जाता है वहाँ उस भाषा के साथ-साथ उच्च न्यायालय द्वारा अंग्रेजी भाषा में भी उसका अनुवाद किया जाएगा।
केंद्र का तर्क
- केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार, संघ की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी के साथ हिंदी है। भारत के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे 8वीं अनुसूची में उल्लिखित सभी भाषाओं का उपयोग संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में किया जाए।
- राजभाषा अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि हिंदी और अंग्रेजी का उपयोग केंद्र सरकार या उसके किसी भी मंत्रालय या विभाग द्वारा किये गए प्रस्तावों, सामान्य आदेशों, नियमों, अधिसूचनाओं, प्रशासनिक या अन्य रिपोर्टों के लिये किया जाएगा।
- सरकार के अनुसार, उच्च न्यायालय द्वारा इस तरह का निर्देश बड़े पैमाने पर प्रक्रियात्मक और प्रशासनिक कठिनाइयों को पैदा करने के अलावा याचिकाकर्ता को ऐसा करने के लिये किसी भी वैधानिक आवश्यकता से रहित है।
न्यायालय का आदेश और इसके लाभ
- देश के विभिन्न हिस्सों में लोग अंग्रेजी या हिंदी नहीं जानते हैं। केंद्र सरकार द्वारा स्थानीय भाषाओं में संचार उनके लिये सहायक सिद्ध होगा।
- जहाँ तक कानून का सवाल है, केंद्र सरकार सही हो सकती है परंतु जिस भावना के साथ उच्च न्यायालय का आदेश पारित किया गया वह उपयुक्त है। राजभाषा अधिनियम को अपडेट करने का समय आ गया है।
- स्थानीय या अनुसूचित भाषाओं में अधिसूचनाओं आदि के प्रकाशित होने के आभाव में नागरिकों के द्वारा आपत्तियाँ व सुझाव आदि दर्ज करने के अधिकार को छीन लिया जाता है।
- अन्य भाषाओं में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की अधिसूचना प्रकाशित करने से बिना भेदभाव के यह अधिकतम लोगों तक पहुँच सकती है। इससे देश की ग्रामीण आबादी तक यह पहुँच सकेगा और उनको इसे समझने में सुविधा होगी। इससे प्रशासन में अधिकतम जन भागीदारी सुनिश्चित करने में सहायता प्राप्त होती है।
आगे की राह
- प्रशासन में स्थानीय भाषा को लागू करने से सामाजिक पिछड़ेपन में कमी आएगी और लोग अपने अधिकारों के प्रति सजग हो सकेंगे। स्थानीय भाषा को प्रारम्भ में कुछ वर्षों के लिये वैकल्पिक भाषा के रूप में स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिये।
- वर्ष 2010 के ‘तटीय विनियमन क्षेत्र’ की प्रारूप अधिसूचना को नौ भी तटीय भाषाओं में प्रकाशित किया गया था। हालाँकि, तटीय विनियमन क्षेत्र की अंतिम अधिसूचना राजपत्र में केवल अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित हुई थी। इस प्रकार के अन्य प्रयास भी किये जा सकते हैं और उसके विश्लेषण के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है। अंततः यह कहना उचित होगा की प्रक्रियात्मक और प्रशासनिक कठिनाइयों के बावजूद शासन में अधिक भाषाओं को शामिल करना एक प्रासंगिक विचार है।