संदर्भ
हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने न्यायालय की अवमानना के आरोपी एक पत्रकार को केवल अंग्रेज़ी भाषा में अपना पक्ष रखने के लिये कहा था। ऐसे में, न्यायालय में आधिकारिक भाषा का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है।
क्या है मामला ?
- वर्ष 2014 में गुजरात उच्च न्यायालय ने एक न्यायिक आदेश के विरुद्ध लेख प्रकाशित करने के आरोप में पत्रकार विशाल व्यास के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी।
- वादी ने व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित होकर गुजराती भाषा में अपना पक्ष रखा।
न्यायालय का पक्ष
- न्यायालय के अनुसार, उच्च न्यायालयों की कार्यकारी भाषा अंग्रेज़ी है अत: वादी को केवल अंग्रेज़ी भाषा में ही अपना पक्ष रखने की अनुमति दी जा सकती है।
- साथ ही, न्यायालय ने वादी को द्विभाषिया या अधिवक्ता अथवा ‘गुजरात राज्य क़ानूनी सेवा प्राधिकरण’ से मदद लेने का निर्देश दिया।
- न्यायालय के अनुसार, अदालत में उस भाषा में पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिसको समझने में अदालत सक्षम नहीं है।
वादी का पक्ष
- राज्य की आधिकारिक भाषा या मातृभाषा में अपना पक्ष रखने की अनुमति होनी चाहिये।
- उच्च न्यायालय में केवल अंग्रेज़ी भाषा में कार्यवाही की अनुमति औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है।
- यदि न्यायालय स्थानीय भाषा में असहज हैं तो सामान्य नागरिकों को भी अंग्रेज़ी भाषा में कठिनाई हो सकती है।
संवैधानिक प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद- 348 में न्यायालयों की भाषा से संबंधित प्रावधान निम्नवत हैं:
- जब तक संसद विधि द्वारा कोई विशेष उपबंध या प्रावधान न करे तब तक सर्वोच्च न्यायालय तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेज़ी भाषा में ही संपन्न होंगी।
- राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से राज्यपाल उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी भाषा या उस राज्य की अन्य शासकीय भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा।
- राज्यपाल द्वारा अधिकृत भाषा संबंधी कोई भी प्रावधान उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होंगे, अर्थात वादी उच्च न्यायालय में अपना पक्ष अधिकृत भाषा में रख सकता है किंतु न्यायालय द्वारा अंग्रेज़ी भाषा में ही निर्णय दिये जाएंगे।
आगे की राह
- हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसलों को 6 स्थानीय भाषओं- असमिया, हिंदी, कन्नड़, मराठी, उड़िया एवं तेलुगु में अनुदित करवाकर उपलब्ध कराया है। न्यायालय की इस पहल को अन्य स्थानीय भाषाओं तक विस्तारित किया जाना चाहिये।
- हरियाणा सरकार ने हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 के माध्यम से राज्य के सभी न्यायालयों व न्यायाधिकरणों में हिंदी भाषा के प्रयोग की अधिसूचना जारी की है। ऐसे ही प्रावधान अन्य राज्यों में भी किये जाने चाहिये।
- इच्छुक न्यायाधीशों तथा वकीलों को अंग्रेज़ी में कार्य करने की अनुमति देने के साथ-साथ संबंधित पक्षों को कार्यवाही तथा निर्णय की प्रतियाँ अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
निष्कर्ष
उल्लेखनीय है कि संयुक्त अरब अमीरात ने भी अपनी अदालतों में अरबी तथा अंग्रेज़ी के बाद हिंदी को तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी है। ऐसे में, जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को मान्यता दी जा रही है तो भारत में भी हिंदी सहित अन्य स्थानीय भाषाओं में न्यायालय की कार्यवाही की अनुमति दी जानी चाहिये ताकि संविधान की उद्देशिका में उल्लिखित ‘विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को सुनिश्चित किया जा सके।