(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)
पृष्ठभूमि
- हाल ही में, भारत ने वैश्विक तेल बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को देखते हुए अपने रणनीतिक तेल भण्डार को भरने का फैसला किया है।
- भारत को इससे दो फायदे होंगे : अपने भण्डार के लिये सस्ता तेल मिलेगा और रिफाइनरी के लिये भण्डारण की समस्या को हल करने में भी मदद मिलेगी।
प्रमुख बिंदु
- सामरिक पेट्रोलियम भण्डार मुख्यतः कच्चे तेल के विशाल भण्डार हैं, जो कच्चे तेल से सम्बंधित किसी भी संकट जैसे प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध या भूकम्प आदि से निपटने के लिये बनाए जाते हैं ताकि ऐसी आपदा या समस्या के समय देश में किसी भी प्रकार से तेल की आपूर्ति ना रुके।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा कार्यक्रम (International Energy Programme-IEP) पर हुए समझौते के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ( International Energy Agency - IEA) से सम्बद्ध प्रत्येक देश अपने पास कम से कम 90 दिनों के शुद्ध तेल आयात के बराबर का आपातकालीन तेल भण्डार रख सकता है।
- उल्लेखनीय है कि, यदि तेल आपूर्ति में किसी भी प्रकार का गम्भीर व्यवधान आता है तो, IEA सदस्य देश सामूहिक कार्रवाई के तहत तेल के भंडारों को बाज़ार में बेचने का निर्णय ले सकते हैं।
- ध्यातव्य है कि, भारत वर्ष 2017 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का एक सहयोगी सदस्य देश बना।
- भारत के कच्चे तेल के रणनीतिक भण्डार वर्तमान में विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), मंगलुरु (कर्नाटक), और पाडुर (कर्नाटक) में स्थित हैं।
- हाल ही में, सरकार ने चांदीखोल (ओडिशा) और पाडुर (कर्नाटक) में दो अतिरिक्त रणनीतिक भंडारों को स्थापित करने के लिये भी मंज़ूरी दे दी है।
- रणनीतिक भण्डार की अवधारणा पहली बार वर्ष 1973 में अमेरिका में ओपेक तेल संकट के बाद देखने को मिली थी।
- भूमिगत भण्डारण, पेट्रोलियम उत्पादों के भण्डारण की सबसे कम खर्चीली विधि है, इससे वाष्पीकरण कम होता है और क्योंकि गुफाओं का निर्माण समुद्र तल से बहुत नीचे किया जाता है इसलिये जहाजों से उनमें कच्चे तेल का निर्वहन करना आसान होता है। यदि भविष्य में आक्रमण इत्यादि भी होता है तो यह भण्डारण पूर्णतः सुरक्षित होगा।
- भारत में रणनीतिक कच्चे तेल भण्डारों (Strategic Crude Oil Storages) का निर्माण एवं प्रबंधन आदि का कार्य इंडियन स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व्स लिमिटेड (ISPRL) द्वारा किया जा रहा है।
- ISPRL, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत तेल उद्योग विकास बोर्ड (OIDB) के पूर्ण स्वामित्व वाली एक सहायक कम्पनी है।
रणनीतिक भण्डारों का महत्त्व
- वर्ष 1990 में पश्चिम एशिया में हुए खाड़ी देशों के युद्ध के समय भारत समेत अनेक देशों में खनिज तेल को लेकर एक बड़ा संकट उत्पन्न हो गया था और स्रोतों के हिसाब से भारत के पास मात्र 3 दिन का ही तेल बचा रह गया था। उस समय भारत किसी प्रकार इस कठिन परिस्थिति से बाहर निकला लेकिन इस तरह के संकट कभी भी सामने आ सकते हैं।
- भारत मूलतः इन जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर है और भारत का लगभग 80% आयात पश्चिम एशिया के देशों से होता है यदि इन देशों में युद्ध छिड़ जाए ( जिसकी सम्भावना अक्सर बनी रहती है) तो न सिर्फ हम आपूर्ति संकट से घिर जाएँगे बल्कि चालू खाता भी घाटे में जा सकता है। भारत में प्रत्येक दिन लगभग 40 लाख बैरल कच्चे तेल की खपत होती है इस वजह से रणनीतिक या सामरिक तेल भण्डार का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है।
क्या हो आगे की राह ?
वैश्विक महामारी की वजह से उत्पन्न अघोषित आपातकाल के दौरान किसी भी राजनैतिक जोखिम से बचने के लिये भारत को अपने देश के रणनीतिक भण्डार का विस्तार करते रहना चाहिये। इस तरह से भारत भविष्य में अर्थव्यवस्था को इस प्रकार की किसी सामरिक मुश्किल से बचाने में सक्षम होगा।