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पुराने बाँध और संबंधित समस्याएँ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : भारत का भूगोल और संबंधित विषय)

संदर्भ

भविष्य के लिये पानी को सुरक्षित करने के संदर्भ में बाँधों और जलाशयों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। हालाँकि इनसे जुड़े आँकड़े और अध्ययन बताते हैं कि ये ‘जल-सुरक्षा’ के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।

अप्रचलित होते बाँध : संबंधित समस्या

  • बड़े बाँधों के निर्माण के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। अब तक निर्मित 5,200 से अधिक बड़े बाँधों में से लगभग 1,100 बड़े बाँध पहले ही 50 वर्ष से अधिक पुराने हो चुके हैं और कुछ तो 120 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं।
  • ऐसे बाँधों की संख्या वर्ष 2050 तक बढ़कर 4,400 हो जाएगी। इसका तात्पर्य है कि देश के 80% बड़े बाँधों के अप्रचलित होने की संभावना है।
  • हजारों मझोले और छोटे बाँधों की स्थिति और भी अनिश्चित है क्योंकि उनकी शेल्फ लाइफ (Shelf Life) बड़े बाँधों की तुलना में कम है। 90 वर्ष पुराना कृष्णाराज सागर बाँध और 87 साल पुराना मेट्टूर बाँधों के जलाशय भी पानी की कमी वाले कावेरी नदी बेसिन में स्थित है।

गाद की समस्या

  • बाँधों और जलाशयों में मृदा के जम जाने से उसके जल-भण्डारण क्षमता में कमी आती है। तकनीकी रूप से इसे गाद या तलछट कहते हैं।
  • साथ ही, अध्ययन बताते हैं कि कई जलाशयों की बनावट भी त्रुटिपूर्ण है और उनके गादीकरण की दर अत्यधिक उच्च है। वर्ष 2003 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भाखड़ा बाँध में गादीकरण की दर (Siltation Rate) मूलटी: स्वीकार की गई दर की तुलना में लगभग 140% अधिक है।
  • लगभग सभी अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारतीय जलाशय अवसादन विज्ञान की गैर-समझ के साथ डिज़ाइन किये गए हैं। इनके डिज़ाइन में गाद की दर को कम करके जबकि भंडारण क्षमता को अधिक करके आँका गया है। इसलिये, भारत के जलाशयों में भंडारण स्थान अपेक्षित दर की तुलना में तेजी से घट रहा है।

परिणाम

  • जब जलाशयों में पानी की जगह मिट्टी ले लेती है, तो आपूर्ति ठप हो जाती है और समय बीतने के साथ-साथ फसली क्षेत्र के लिये पानी की उपलब्धता कम होने लगती है। इस प्रकार, शुद्ध बोए गए सिंचित क्षेत्र में या तो कमी आ जाती है या वे वर्षा जल या भू-जल पर निर्भर हो जाते है, जिसका पहले से ही अति-दोहन हो चुका है।
  • इस प्रकार, बढ़ती आबादी को वर्ष 2050 तक भोजन उपलब्ध कराने, प्रचुर मात्रा में फसलें उगाने, धारणीय शहरों के विकास या संवृद्धि सुनिश्चित करने के लिये देश को अंततः 21वीं सदी में पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं हो पाएगा।
  • यह भी महत्त्वपूर्ण है कि जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर कोई भी योजना तलछट से भरे बाँधों के साथ सफल नहीं होगी। साथ ही, बाँधों की अनुप्रवाह की दिशा में बाढ़ की बढ़ती आवृत्ति दोषपूर्ण सिल्टेशन की ओर इशारा करती है।
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