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एक उम्मीदवार, एकाधिक निर्वाचन क्षेत्र

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ)

संदर्भ 

भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए गठित पैनल ने लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की अनुशंसा की है। हालाँकि, एक ही पद (सदस्यता) के लिए एक ही उम्मीदवार द्वारा कई निर्वाचन क्षेत्रों (One Candidate, Multiple Constituencies: OCMC) से चुनाव लड़ने (उम्मीदवारी) का मुद्दा अभी भी विचाराधीन है।

पृष्ठभूमि 

  • भारत के संविधान में विधान सभा और संसद के निचले सदन के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष में नियमित चुनाव कराने का प्रावधान है।
  • संविधान ने संसद को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के लिए प्रावधान करने के अलावा निर्वाचन के तरीके को विनियमित करने का अधिकार दिया है।
  • ‘एकाधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव में उम्मीदवारी’ को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में शामिल किया गया है।
    • इस अधिनियम के तहत वर्ष 1996 तक उम्मीदवारी (चुनाव लड़ने) की संख्या को लेकर कोई सीमा नहीं थी।
    • इसके परिणामस्वरूप उम्मीदवार कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव में भागीदारी कर सकते थे।
    • एक से अधिक सीटों (क्षेत्रों) से विजयी होने की स्थिति में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 70 के अनुसार, एक सीट के अतिरिक्त अन्य सीटें छोड़नी होती थी और उस पर उपचुनाव कराना पड़ता था।
  • संसद ने वर्ष 1996 में अधिनियम में संशोधन करके एक उम्मीदवार द्वारा चुनाव में भागीदारी करने वाले निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को दो तक सीमित कर दिया।
  • इस संशोधन का उद्देश्य एक उम्मीदवार को कई निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवारी को हतोत्साहित करना था।
  • हालाँकि, इसके बावजूद दो सीटों पर उम्मीदवारी की प्रथा अभी भी बड़े स्तर पर जारी है। राज्य विधानसभा चुनावों में यह संख्या और भी अधिक होती है, जिसके कारण प्राय: उपचुनाव होते हैं।

OCMC की आवश्यकता 

  • OCMC कठिन प्रतिस्पर्धा वाले निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवारों के लिए सुरक्षा जाल प्रदान करता है।
  • भारत जैसे देश में राजनीति कई बार नेता एवं परिवार के इर्द-गिर्द केंद्रित होती है और OCMC नेताओं की निरंतरता या संक्रमण को सुगम बनाता है।
    • कई बार नेता केंद्रित दल चुनावों में बहुमत प्राप्त करता है किंतु दल का नेता पराजित हो जाता है।
      • उदाहरण के लिए, वर्ष 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी नंदीग्राम सीट हार गईं। उनके लिए भवानीपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए एक अन्य नेता को विधानसभा से इस्तीफा देना पड़ा।
      • वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ।

OCMC के कारण उत्पन्न चुनौतियाँ 

करदाताओं पर अधिक भार 

  • एकाधिक निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवारों के जीतने और फिर सीट रिक्त करने के कारण बार-बार होने वाले उपचुनाव से करदाताओं के कर बोझ में वृद्धि होती है।
  • लोकसभा चुनावों का प्रशासनिक व्यय केंद्र सरकार और विधानसभाओं का व्यय राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है।
  • उम्मीदवारों के दो निर्वाचन क्षेत्रों से विजयी होने पर उपचुनाव कराने की लागत में अतिरिक्त वृद्धि होती है। यह बोझ अंततः जनता पर पड़ता है। 
  • चुनाव प्रचार में प्रयुक्त किए गए अधिकांश धन के स्रोत का पता नहीं होता है जिससे वित्तीय पारदर्शिता में कमी आती है।

सत्ताधारी दल को लाभ 

  • कई राज्यों में उपचुनाव की प्रवृत्तियों से पता चलता है कि प्रारंभिक छह महीनों के भीतर जीतने वाले उम्मीदवार के सीट रिक्त करने पर होने वाले उपचुनाव में सत्तारूढ़  दल को लाभ होता है।
    • सत्तारूढ़ दल संसाधन जुटाने के साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को संरक्षण प्रदान कर सकती है। 
  • यह असमान खेल मैदान का जैसा परिदृश्य तैयार करता है जिसका संसदीय लोकतंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

उमीदवार पर नकारात्मक प्रभाव 

उपचुनाव का वित्तीय बोझ पहले से ही पराजित उम्मीदवार और उनके दल पर असमान रूप से पड़ता है, जिससे उन्हें एक बार फिर संसाधन व्यय करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

जनता के हितों की अनदेखी 

  • लोकतंत्र को जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए सरकार के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है। 
    • हालाँकि, कई निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवारी हार जैसी अनिश्चितताओं के खिलाफ़ बचाव तंत्र के रूप में काम करता है और प्राय: लोगों के बजाय नेता के हितों को प्राथमिकता देता है। 
  • यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमज़ोर करके राजनीति को जनता से ऊपर रखता है। 

मौलिक अधिकारों का हनन 

OCMC नागरिकों के भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ़ है। वर्ष 2023 में अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ वाद में तर्क दिया गया कि जब किसी प्रतिनिधि को चुना जाता हैं, तो मतदाता उस व्यक्ति पर भरोसा करते हैं कि वह उनकी आवाज़ बनेगा। ऐसा न होने से मतदाताओं में भ्रम एवं असंतोष उत्पन्न होता है।

अन्य देशों में प्रावधान 

  • पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में उम्मीदवारों को कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव में भागीदारी की अनुमति है। उन्हें भी एक सीट को छोड़कर बाकी सभी को छोड़ना पड़ता है। 
    • पाकिस्तान में उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने की संख्या पर कोई सीमा नहीं है। वर्ष 2018 के चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री ने पाँच सीटों पर चुनाव लड़ा था और चार खाली कर दी थीं। 
    • इसी तरह, बांग्लादेश ने वर्ष 2008 तक उम्मीदवारों को पाँच निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवारी की अनुमति दी थी किंतु अब इसे तीन तक सीमित कर दिया गया है। 
  • यह प्रथा यूनाइटेड किंगडम में भी थी किंतु वर्ष 1983 से इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। 
  • अधिकांश यूरोपीय लोकतंत्रों ने स्पष्ट प्रतिनिधित्व एवं जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए इसे समाप्त कर दिया है।

सुझाव एवं समाधान 

कई निर्वाचन क्षेत्रों से उम्मीदवारी पर प्रतिबंध

  • OCMC का दुरुपयोग इसके लाभों से कहीं अधिक है। ऐसे में इसमें सुधारों व संभावित समाधानों पर विचार किया जा सकता है। 
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) में संशोधन करके एक उम्मीदवार को एक ही पद के लिए कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। 
    • वर्ष 2004 में भारत निर्वाचन आयोग ने सरकार से इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। 
    • वर्ष 2015 में 255वें विधि आयोग की रिपोर्ट में भी यही सिफारिश की गई थी।

उम्मीदवार द्वारा उपचुनाव की लागत को वहन करना 

  • सीट खाली करने वाले उम्मीदवार से उपचुनाव की पूरी लागत वसूलना उम्मीदवारों को एक साथ कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने से हतोत्साहित कर सकता है। 
    • ECI ने वर्ष 2004 में कई निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों पर उपचुनाव की लागत वहन करने की सिफारिश की थी।
    • हालाँकि, इससे भी OCMC की प्रथा जारी रहेगी क्योंकि जीतने वाला उम्मीदवार या राजनीतिक दल लागत का भुगतान करने में सक्षम है।

उपचुनाव में अंतराल 

  • एक अधिक प्रभावी उपाय एक वर्ष के बाद उपचुनाव कराना है जिससे मतदाताओं को सूचित निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय मिल सके और पराजित उम्मीदवार को फिर से चुनाव लड़ने के लिए रणनीतिक रूप से तैयार होने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। 
  • इससे एक अधिक संतुलित एवं निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया भी उपलब्ध होगी। 
  • यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए में संशोधन करके किया जा सकता है जो रिक्ति होने के छह महीने के भीतर उपचुनाव कराने का प्रावधान करता है। 

निष्कर्ष 

चुनाव कराने के लिए राज्य को पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। चूँकि OCOC (एक उम्मीदवार, एकाधिक निर्वाचन क्षेत्र) का मुद्दा राजनीतिक है, इसलिए बदलाव लाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति एवं प्रमुख दलों के समर्थन की आवश्यकता होती है। हालाँकि, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विपरीत राजनीतिक दलों में अधिकांश इसके समर्थक नहीं हैं।

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