स्थान – राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान National Institute of Immunology (NII), नई दिल्ली
इस पहल का समन्वय जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं नवाचार परिषद Biotechnology Research and Innovation Council (BRIC) और राष्ट्रीय जैव चिकित्सा जीनोमिक्स संस्थान National Institute of Biomedical Genomics (BRIC-NIBMG)द्वारा किया जा रहा है।
भारत सरकार ने “वन डे वन जीनोम” पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य हर दिन एक एनोटेटेड माइक्रोबियल जीनोम को सार्वजनिक रूप से जारी करना है।
इस पहल का उद्देश्य माइक्रोबियल जीनोमिक्स तक वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की पहुँच बढ़ाना और वैज्ञानिक नवाचार को प्रोत्साहित करना है।
पहल की मुख्य विशेषताएँ:
भारत की जीवाणु विविधता को उजागर करना – इस पहल से भारत में पाए जाने वाले बैक्टीरिया की विभिन्न प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान – इस पहल से सूक्ष्मजीवों की भूमिका को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी, जिससे कृषि उत्पादकता, पर्यावरण संरक्षण और मानव स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
छिपी हुई सूक्ष्मजीवी क्षमताओं का अनावरण - जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से सूक्ष्मजीवों की नई क्षमताओं की खोज की जाएगी, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में उनका उपयोग संभव हो सकेगा।
वैज्ञानिक नवाचार को बढ़ावा देना - सूक्ष्मजीवों के जीनोमिक डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराकर शोधकर्ताओं को नई खोज करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
" वन डे वन जीनोम" पहल का महत्व
स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान(Contribution to the health sector):-
यह पहल सूक्ष्मजीवों से संबंधित बीमारियों के अध्ययन और नई दवाओं के विकास में मदद कर सकती है।
यह संक्रामक रोगों की निगरानी और नियंत्रण में सहायक होगी।
कृषि और खाद्य सुरक्षा:
मिट्टी के सूक्ष्मजीवों का अध्ययन करके जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है।
फसलों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले बैक्टीरिया की पहचान की जा सकती है।
पर्यावरण और जैव प्रौद्योगिकी:
प्रदूषण को कम करने और जैविक अपशिष्ट निपटान में मदद करने वाले बैक्टीरिया की खोज की जा सकती है।
औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए उपयोगी एंजाइम बनाने वाले सूक्ष्मजीवों की खोज करना संभव होगा।
माइक्रोबियल जीनोमिक्स:- सूक्ष्मजीवों की आनुवंशिक संरचना का अध्ययन
माइक्रोबियल जीनोमिक्स वह वैज्ञानिक क्षेत्र है जो सूक्ष्मजीवों की संपूर्ण आनुवंशिक सामग्री, यानी उनके जीनोम का अध्ययन करता है।
यह क्षेत्र सूक्ष्मजीवों की संरचना, कार्य, विकास और अन्य जीवों के साथ उनकी अंतःक्रियाओं को समझने में मदद करता है।
माइक्रोबियल जीनोमिक्स क्यों महत्वपूर्ण है?
संक्रामक रोगों की बेहतर समझ – बैक्टीरिया और वायरस के जीनोम को अनुक्रमित करके, यह बीमारियों के प्रसार को रोकने और नई दवाओं और टीकों के विकास में मदद करता है।
प्रतिरोधी बैक्टीरिया की पहचान – यह एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया की संरचना और अनुकूलन क्षमता को समझने में मदद करता है, ताकि नई चिकित्सा पद्धतियाँ विकसित की जा सकें।
पर्यावरणीय प्रभाव – माइक्रोबियल जीनोमिक्स के माध्यम से ऐसे सूक्ष्मजीवों की पहचान की जाती है, जो जैवनिम्नीकरण और पर्यावरण शुद्धिकरण में मदद कर सकते हैं।
कृषि क्षेत्र में योगदान – यह मिट्टी के सूक्ष्मजीवों का अध्ययन करके कृषि उत्पादकता बढ़ाने और जैविक उर्वरक विकसित करने में सहायक है।
जैव प्रौद्योगिकी और उद्योग - माइक्रोबियल जीनोमिक्स का उपयोग जैव ईंधन, चिकित्सा, खाद्य प्रसंस्करण और अन्य जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में किया जाता है।
सूक्ष्मजीव क्या हैं?
सूक्ष्मजीव छोटे जीव होते हैं जिन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता।
इनका अध्ययन माइक्रोबायोलॉजी के अंतर्गत किया जाता है।
सूक्ष्मजीवों के मुख्य प्रकार:
बैक्टीरिया: विभिन्न वातावरणों में पाए जाने वाले एकल-कोशिका वाले जीव।
वायरस: संक्रामक कण(अतिसूक्ष्म जीव) जो केवल अन्य जीवों की कोशिकाओं के अंदर ही प्रजनन कर सकते हैं।
शैवाल: पौधे जैसे सूक्ष्मजीव जो प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं।
कवक: खमीर और मोल्ड जैसे जीव जो कार्बनिक पदार्थों को विघटित कर सकते हैं।
प्रोटोजोआ: विभिन्न वातावरणों में पाए जाने वाले एकल-कोशिका वाले जीव।