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एक राष्ट्र, एक चुनाव

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण तथा उसकी चुनौतियाँ)

संदर्भ 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में एक साथ चुनाव (One Nation, One Election) कराने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है।

क्या है एक राष्ट्र, एक चुनाव व्यवस्था  

  • एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवहार्यता की जाँच के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गयी थी। 
    • इस समिति ने देश में एक साथ चुनाव कराने की अनुशंसा की थी जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वीकार कर लिया है।
    • इस उच्च स्तरीय समिति ने इसी वर्ष 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
  • एक राष्ट्र, एक चुनाव एक ऐसी व्यवस्था की परिकल्पना करता है जहाँ सभी राज्यों के चुनाव और लोकसभा के चुनाव एक साथ होंगे। इसमें भारतीय चुनाव चक्र का पुनर्गठन इस तरह से किया जाएगा कि राज्यों एवं केंद्र के चुनाव एक साथ संपन्न हों। 
  • इसका अर्थ यह होगा कि मतदाता एक ही दिन, एक ही समय (या चरणबद्ध तरीके से) में लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव के लिए मतदान कर सकेंगे।
  • वर्तमान में जब भी मौजूदा सरकार का पाँच वर्ष का कार्यकाल समाप्त होता है या विभिन्न कारणों से जब इसे भंग किया जाता है तब चुनाव आयोजित किए जाते हैं। 
    • ऐसे में राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं तथा विधानसभाओं एवं लोकसभा के कार्यकाल का एक-दूसरे के साथ तालमेल नहीं होता है। 

एक राष्ट्र, एक चुनाव की पृष्ठभूमि 

  • केंद्र सरकार, राज्य सरकारों एवं राजनीतिक दलों के साथ-साथ भारतीय निर्वाचन आयोग के प्रयासों से वर्ष 1957 में सात राज्यों, यथा- बिहार, बॉम्बे, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में एक साथ चुनाव हुए।
  • वर्ष 1967 के चौथे आम चुनावों तक सामान्यत: एक साथ चुनाव प्रचलन में थे। 
    • हालाँकि, इसके बाद कई अवसरों पर केंद्र सरकारों ने संवैधानिक प्रावधानों का उपयोग कर राज्य सरकारों को उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही बर्खास्त कर दिया और राज्यों व केंद्र में गठबंधन सरकारों के विफल रहने पर देश में अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे।
  • वर्ष 1983 में चुनाव आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने का विचार प्रकट किया गया था। 
  • वर्ष 1999 में विधि आयोग की रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख किया गया था। वर्तमान सरकार वर्ष 2014 से ही इस पर बल दे रही है। 
  • अप्रैल 2018 में विधि आयोग के कार्य पत्र में उल्लेख किया गया था कि एक राष्ट्र, एक चुनाव को व्यावहारिक रूप देने के लिए कम-से-कम ‘पाँच संवैधानिक संशोधनों’ की आवश्यकता होगी। 

कोविंद समिति की प्रमुख सिफारिशें 

संविधान में संशोधन 

  • दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए।
  • पहले चरण में लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे। इसके लिए संविधान संशोधन के उद्देश्य से राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी।
  • नगरपालिकाओं एवं पंचायतों के चुनाव लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ इस तरह से समकालिक किए जाएंगे कि स्थानीय निकाय चुनाव लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के भीतर संपन्न हो जाएं। 
    • कोविंद समिति के अनुसार, चूँकि यह विधेयक उन विषयों से संबंधित है जिन पर कानून निर्माण की प्राथमिक शक्ति राज्यों में निहित है। 
    • इसलिए इसे लागू होने से पूर्व भारत के आधे से अधिक राज्यों की स्वीकृति या अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।

एकल मतदाता सूची एवं पहचान पत्र

  • सरकार के तीनों स्तरों के चुनावों में उपयोग के लिए एकल मतदाता सूची एवं मतदाता फोटो पहचान पत्र तैयार करने के उद्देश्य से संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी। 
    • ताकि भारतीय निर्वाचन आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से एकल मतदाता सूची व मतदाता पहचान पत्र तैयार कर सके। 
    • इन संशोधनों के लिए कम-से-कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।

त्रिशंकु सदन आदि की स्थिति में

त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में सदन के शेष कार्यकाल के लिए नई लोकसभा या राज्य विधानसभा के गठन के लिए नए चुनाव कराए जाने चाहिए।

रसद आवश्यकताओं को पूरा करना

  • समिति की सिफारिश है कि रसद आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से भारतीय निर्वाचन आयोग अग्रिम रूप से योजना बनाएगा। 
  • यह जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ई.वी.एम./वी.वी.पी.ए.टी. आदि की तैनाती के लिए आवश्यक कदम उठाएगा ताकि सरकार के सभी तीन स्तरों पर स्वतंत्र  एवं निष्पक्ष चुनाव एक साथ हो सकें।

एक राष्ट्र, एक चुनाव 

पक्ष में तर्क

  • बार-बार होने वाले चुनावों से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त व्यय का बोझ पड़ता है। इसमें यदि राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले व्यय को भी शामिल किया जाए तो ये और भी अधिक हो जाता है।
    • एक साथ चुनाव कराने से इन लागतों में कमी आएगी।
  • अलग-अलग समय पर होने वाले चुनावों से अनिश्चितता एवं अस्थिरता उत्पन्न होने के कारण आपूर्ति श्रृंखला, व्यावसायिक निवेश व आर्थिक विकास बाधित होता है।
  • बार-बार होने वाले चुनावों के कारण सरकारी मशीनरी में व्यवधान से नागरिकों को कठिनाई होती है।
  • निर्वाचन प्रक्रिया में सरकारी अधिकारियों एवं सुरक्षा बलों का बार-बार उपयोग उनके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • आदर्श आचार संहिता के बार-बार लागू होने से नीतिगत निर्णयों एवं विकास कार्यक्रमों की गति मंद हो जाती है।
  • निरंतर चुनावों से ‘मतदाताओं में विकर्षण’ बढ़ता है और चुनावों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने में अत्यधिक चुनौती का सामना करना पड़ता है। विधि आयोग के अनुसार एक साथ चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत में वृद्धि होगी। 

विपक्ष में तर्क 

  • राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय मुद्दे अलग-अलग होते हैं, एक साथ चुनाव कराने से मतदाताओं के निर्णय प्रभावित होने की संभावना होती है।
  • पाँच वर्ष में एक बार चुनाव होने से सरकार की लोगों के प्रति जवाबदेही कम होगी जबकि निरंतर चुनाव होने से विधायिका के सदस्य सतर्क रहते हैं और उनकी जवाबदेही में वृद्धि होती है।
  • किसी राज्य में चुनाव समकालिक चरण तक स्थगित करने के लिए उस राज्य में अंतरिम अवधि के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करना होगा। यह लोकतंत्र एवं संघवाद के लिए एक आघात होगा।
  • एक साथ चुनाव कराने के लिए संवैधानिक संशोधनों की भी आवश्यकता होगी। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए पाँच वर्ष के निश्चित कार्यकाल के लिए अनुच्छेद 83, 85, 172 एवं 174 में संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी जो लोकसभा एवं विधानसभाओं की अवधि व विघटन से संबंधित हैं। 
    • इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए, कई राज्य सरकारों के कार्यकाल को कम करना होगा। 
  • समिति की सिफारिशों के अनुसार, यदि कोई राज्य विधानसभा पांच वर्ष के कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो ‘नियत तिथि’ (लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की तिथि) के बाद नए ‘मध्यावधि’ चुनाव कराए जाएंगे तथा इसका कार्यकाल ‘नियत तिथि’ से पांच वर्ष बाद समाप्त होगा। 
    • यह प्रावधान एक साथ चुनाव से लागत में कटौती के मूल विचार के खिलाफ होने के साथ ही संघीय विचारधारा के भी प्रतिकूल है। 
  • बहु-स्तरीय शासन प्रणाली में प्रत्येक स्तर का अपना विशेष महत्व होता है। बहु-स्तरीय चुनावों को एक साथ कराने से प्रत्येक स्तर, विशेष रूप से विधानसभा एवं नगरपालिका/पंचायत स्तरों का महत्व कम हो सकता है जो संघीय व्यवस्था के विरुद्ध है। 

व्यापक संविधान संशोधन की आवश्यकता

एक साथ चुनाव के लिए बदलाव 

  • कोविंद समिति के अनुसार, संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान में प्रस्तावित एक नया अनुच्छेद 82A शामिल किया जाएगा। इससे वह प्रक्रिया स्थापित की जाएगी जिसके द्वारा देश लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव की प्रणाली की ओर बढ़ेगा। इसमें मुख्यत: निम्नलिखित प्रावधानों का उल्लेख होगा : 
    • अनुच्छेद 82A (1) के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 82A को प्रभावी करने के लिए अधिसूचना जारी की जाएगी। 
    • अनुच्छेद 82A (2) के अनुसार ‘नियत तिथि के बाद आयोजित किसी भी आम चुनाव के माध्यम से गठित सभी विधानसभाएं लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर समाप्त (भंग) हो जाएंगी’।
    • अनुच्छेद 82A (3) के अनुसार, भारतीय निर्वाचन आयोग को लोक सभा और विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने होंगे। 
    • अनुच्छेद 82A (4) के अनुसार, यदि भारतीय निर्वाचन आयोग का यह मानना है कि किसी विधान सभा के चुनाव एक साथ नहीं कराए जा सकते है तो वह राष्ट्रपति को एक आदेश द्वारा यह घोषित करने की सिफारिश कर सकता है कि उस विधान सभा के चुनाव बाद की तिथि पर कराए जा सकते हैं। 
    • अनुच्छेद 82A (5) के अनुसार, जिन राज्यों में राज्य विधानसभा चुनाव स्थगित कर दिए जाते हैं वहाँ भी विधानसभा का कार्यकाल उसी तिथि को समाप्त होगा जिस तिथि को आम चुनाव में गठित लोक सभा का पूरा कार्यकाल समाप्त हुआ था। 

संसद की शक्ति में विस्तार 

  • एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए अनुच्छेद 327 में भी संशोधन की आवश्यकता होगी जो संसद को लोकसभा, राज्यसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों से संबंधित कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। 
    • इसमें मतदाता सूची तैयार करना एवं निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करना शामिल है।
  • कोविंद समिति के अनुसार, अनुच्छेद 327 के तहत संसद की शक्ति का विस्तार करके इसमें एक साथ चुनाव कराने को भी शामिल किया जाना चाहिए।

लोकसभा एवं विधानसभा का संशोधित कार्यकाल 

  • अनुच्छेद 83 के उपखंड 2 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 के उपखंड 1 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन करके सदनों के कार्यकाल की पांच वर्ष की अवधि को ‘पूर्ण अवधि’ कहा जाना चाहिए।
    • यदि लोकसभा या राज्य विधानसभा पूर्ण अवधि की समाप्ति से पहले भंग हो जाती है तो शेष अवधि को ‘असमाप्ति अवधि’ (Unexpired Term) कहा जाएगा।

केंद्रशासित प्रदेशों के लिए संशोधन 

  • रिपोर्ट में केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभाओं से संबंधित कुछ कानूनों में संशोधन की भी सिफारिश की गई है, जैसे : 
    • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991
    • केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963
    • जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019
  • इन कानूनों में संशोधन द्वारा यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा चुनाव भी लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनावों के साथ-साथ हों।

एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव एवं एकल मतदाता सूची तैयार करना

  • नगरपालिका एवं पंचायत चुनाव राज्य सूची की प्रविष्टि 5 के अंतर्गत आते हैं, इसलिए उन्हें राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी।
  • कोविंद समिति ने संविधान में एक नया अनुच्छेद 324A शामिल करने का सुझाव दिया है। 
    • यह अनुच्छेद संसद को नगरपालिका एवं पंचायत चुनाव को आम चुनावों (लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के लिए) के साथ-साथ आयोजित करने का अधिकार देगा।
  • समिति द्वारा प्रस्तावित नया अनुच्छेद 325(2) ‘लोकसभा, राज्य विधानमंडल तथा नगर पालिका एवं पंचायत के चुनाव के लिए प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए एकल मतदाता सूची का प्रावधान करेगा’।
    • यह मतदाता सूची भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से बनाई जाएगी। 

अन्य देशों में प्रावधान 

  • दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन एवं जर्मनी जैसे संसदीय लोकतंत्रों में विधानमंडलों के लिए निश्चित कार्यकाल होता है।
    • दक्षिण अफ्रीका में प्रत्येक पांच वर्ष में नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानमंडलों के चुनाव एक साथ होते हैं। राष्ट्रपति का चुनाव नेशनल असेंबली द्वारा किया जाता है। 
    • स्वीडन के प्रधानमंत्री और जर्मनी के चांसलर का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में उनकी संबंधित विधानमंडलों द्वारा किया जाता है। 
    • जर्मन चांसलर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव केवल उत्तराधिकारी का चुनाव करने के बाद ही लाया जा सकता है।

आगे की राह 

  • एक साथ चुनाव कराने के बारे में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति का अभाव है। 
  • ऐसे में आदर्श मध्य मार्ग यह हो सकता है कि लोकसभा चुनाव एक चक्र में और सभी राज्य विधानसभा चुनाव ढाई साल बाद दूसरे चक्र में कराए जाएं। 
  • इससे यह सुनिश्चित होगा कि लोकतांत्रिक और संघीय सिद्धांतों से समझौता किए बिना एक साथ चुनाव कराने के लाभ प्राप्त किए जा सकें।
  • यदि सभी राजनीतिक दलों को विश्वास में लिया जाए तो यह व्यवस्था अगले दशक में लागू किए जाने के साथ ही उसके बाद भी इसे जारी रखा जा सकता है।
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