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एक राष्ट्र, एक चुनाव (one nation, one election)

प्रारंभिक परीक्षा- एक राष्ट्र, एक चुनाव (one nation, one election)
मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-

चर्चा में क्यों

1 सितंबर 2023 को केंद्र सरकार ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' (ONOE) योजना की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया।  

एक राष्ट्र, एक चुनाव (one nation, one election) योजना क्या है?

  • एक राष्ट्र, एक चुनाव का विचार पूरे देश में चुनावों की आवृत्ति को कम करने के लिए सभी राज्यों में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक ही समय पर कराना है।
  • 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए पहली बार आम चुनाव 1951-1952 में एक साथ आयोजित किए गए थे।
  •  यह प्रथा बाद के तीन लोकसभा चुनावों में 1967 तक जारी रही, जिसके बाद इसे बाधित कर दिया गया।
  •  यह चक्र पहली बार 1959 में टूटा जब केंद्र ने तत्कालीन केरल सरकार को बर्खास्त करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 356 (संवैधानिक तंत्र की विफलता) को लागू किया।
  •  इसके बाद पार्टियों के बीच दल-बदल और प्रति-दल-बदल के कारण, 1960 के बाद कई विधानसभाएं भंग हो गईं, जिसके कारण अंततः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग चुनाव हुए।
  • वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और ओडिशा राज्यों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनावों के साथ होते हैं।

आठ सदस्यीय समिति

  • कानून मंत्रालय के मुताबिक इस समिति का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे।
  •  समिति में गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल हैं।

एक राष्ट्र, एक चुनाव के बारे में रिपोर्ट 

  • अगस्त 2018 में न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की अध्यक्षता में भारतीय विधि आयोग (LCI) ने एक साथ चुनावों पर एक मसौदा रिपोर्ट जारी की, जिसमें मुद्दे से संबंधित संवैधानिक और कानूनी सवालों का विश्लेषण किया गया।
  • आयोग ने कहा संविधान के मौजूदा ढांचे के भीतर एक साथ चुनाव संभव नहीं हैं। 
  • संविधान एवं  जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियमों में एक साथ चुनाव कराने के लिए उचित संशोधन की आवश्यकता होगी।
  • आयोग ने यह भी सिफारिश की कि  कम से कम 50% राज्यों से अनुसमर्थन आवश्यक है ।
  • 1999 में न्यायमूर्ति बी. पी. जीवन रेड्डी की अध्यक्षता वाले में भारतीय विधि आयोग ( Law Commission of India) ने भी एक साथ चुनाव की वकालत की थी।

लाभ :

  • एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE) से सार्वजनिक धन की बचत होगी
  • प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर तनाव कम होगा
  • सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन होगा 
  • विकास गतिविधियों पर प्रशासनिक ध्यान केंद्रित होगा 
  • चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा समय मिलेगा 

एक राष्ट्र, एक चुनाव के पक्ष में तर्क:

  • नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है, इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रकार के  प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं।
  • चुनाव की  आर्थिक लागत अधिक है, इसके अलावा अन्य वित्तीय लागतें भी हैं। 
  • चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र चुनाव ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाता है।
  • चुनावी बजट में चुनाव के दौरान उपयोग किये जाने वाले इन लाखों मानव-घंटे की लागत की गणना नहीं की जाती है।
  • नीतिगत  पक्षाघात का सामना करना पड़ता है  क्योंकि  आदर्श आचार संहिता (MCC) के कारण  सरकार किसी नई महत्त्वपूर्ण नीति की घोषणा या उसका क्रियान्वयन नहीं कर सकती है ।
  • प्रशासनिक लागतें यथा:  सुरक्षा बलों को तैनात करने तथा बार-बार उनके परिवहन पर भी भारी और दृश्यमान लागत आती है।
  • संवेदनशील क्षेत्रों से इन बलों को हटाने और देश में जगह-जगह बार-बार तैनाती के कारण होने वाली थकान तथा बीमारियों के संदर्भ में राष्ट्र को एक बड़ी अदृश्य लागत का भुगतान करना पड़ता है।

एक राष्ट्र, एक चुनाव विपक्ष में तर्क:

  • एक साथ चुनावों को देश में लागू करना लगभग असंभव प्रतीत होता है क्योंकि इसके लिये विधानसभाओं के कार्यकाल में कटौती करनी पड़ेगी या उनकी चुनाव तिथियों को देश के बाकी भागों हेतु नियत तारीख के अनुरूप लाने के लिये उनके कार्यकाल में वृद्धि करना होगा ।
  • ऐसा कदम लोकतंत्र और संघवाद को कमज़ोर करेगा।
  • लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध क्योंकि चुनावों के कृत्रिम चक्र को थोपना और मतदाताओं के चयन की आजादी को सीमित करता  है।
  • क्षेत्रीय दलों को नुकसान क्योंकि एक साथ होने वाले चुनावों में मतदाताओं द्वारा मुख्य रूप से एक ही तरफ वोट देने की संभावना अधिक होती है जिससे केंद्र में प्रमुख पार्टी को लाभ होता है।
  • जवाबदेही में कमी हो सकती है क्योंकि  प्रत्येक 5 वर्ष में एक से अधिक बार मतदाताओं के समक्ष आने से राजनेताओं की जवाबदेहिता बढ़ती है।

एक साथ चुनाव के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता:

  • राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ समन्वित करने के लिए राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल को तदनुसार घटाया और बढ़ाया जा सकता है।
  •  इसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी क्योंकि  अनुच्छेद 83 में कहा गया है कि लोकसभा अपनी पहली बैठक की तिथि से पाँच वर्ष की होगी।
  • अनुच्छेद 85: यह राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 172: इसमें कहा गया है कि विधान सभा का कार्यकाल उसकी पहली बैठक की तारीख से पांच वर्ष होगा।
  • अनुच्छेद 174: यह राज्य के राज्यपाल को विधान सभा को भंग करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 356: यह केंद्र सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के लिए राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार देता है।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ संबंधित संसदीय प्रक्रिया में भी संशोधन की आवश्यकता होगी।

प्रश्न:  निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए 

  1. एक राष्ट्र, एक चुनाव  समिति का नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे।
  2. समिति में गृहमंत्री अमित शाह एवं  वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप शामिल हैं।
  3. 2018 में न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की अध्यक्षता में भारतीय विधि आयोग (LCI) ने एक साथ चुनाव के लिए  संवैधानिक संशोधन का सुझाव दिया था ।

उपर्युक्त में से कितने कथन सही हैं ?

(a) केवल एक  

(b) केवल दो 

(c) सभी तीनों  

(d) कोई भी नहीं 

उत्तर: (c)

मुख्य परीक्षा प्रश्न: एक राष्ट्र, एक चुनाव से क्या अभिप्राय है ? इसके पक्ष एवं विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए

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