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एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक, 2024

प्रारंभिक परीक्षा

(भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली) 

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता एवं जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ व संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता तथा जवाबदेही और संस्थागत एवं अन्य उपाय)

संदर्भ 

  • 17 दिसंबर, 2024 को विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अत्यधिक चर्चित एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE) योजना को वास्तविक जामा पहनाने के लिए लोकसभा में दो महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत किया। 
  • पहला संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ करने के लिए है। दूसरा विधेयक केंद्र शासित प्रदेशों एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए प्रासंगिक अधिनियमों में संशोधन करने के लिए है, ताकि वहां भी एक साथ चुनाव कराए जा सकें। 
  • हालाँकि, इन विधेयकों में अभी नगरपालिका चुनावों को शामिल नहीं किया गया है।
  • कार्यान्वयन की समयसीमा: एक साथ चुनाव की शुरुआत संभवतः वर्ष 2034 में हो सकती है।
  • बशर्ते कि 18वीं और 19वीं दोनों लोकसभाएं अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा कर लें।
  • विधेयक में प्रस्तावित संशोधन पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली ONOE पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के अनुरूप हैं। समिति ने सिफारिश की थी कि पहले चरण में लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए।
  • इस समिति ने मार्च 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

संविधान संशोधन

प्रस्तावित संशोधनों को संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत विशेष बहुमत के माध्यम से लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों में पारित किया जाना चाहिए। इसके लिए निम्न दो शर्तें पूरी होनी चाहिए- 

  • लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों में से आधे सदस्यों को संशोधन के पक्ष में मतदान करना होगा। 
  • सभी उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों में से दो-तिहाई को संशोधन के पक्ष में मतदान करना होगा।

प्रस्तावित विधेयक के प्रमुख प्रावधान 

  • पहला विधेयक 129वां संविधान संशोधन विधेयक, 2024 है जो संविधान के तीन अनुच्छेदों (अनुच्छेद 82, 83 एवं 327) को संशोधित करने और एक नया अनुच्छेद 82ए(1-7) जोड़ने का प्रस्ताव करता है।
  • अनुच्छेद 82ए : यह अनुच्छेद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ करने का प्रावधान करेगा।
    • अनुच्छेद 82ए(1): राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोक सभा की पहली बैठक की तिथि को प्रस्तावित परिवर्तनों को लागू कर सकते हैं।
    • अनुच्छेद 82ए(2): निर्वाचित राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल नियत तिथि से पहले, लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति के साथ समाप्त हो जाएगा। फलतः लोक सभा के पांच-वर्षीय चक्र के अनुरूप कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल संभवतः छोटा हो जाएगा।
    • अनुच्छेद 82ए(3) : भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं दोनों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार होगा।
    • अनुच्छेद 82ए(4): एक साथ चुनावों को लोक सभा और सभी विधान सभाओं के लिए एक साथ गठन के लिए आयोजित आम चुनावों के रूप में परिभाषित किया जाएगा।
    • अनुच्छेद 82ए(5): चुनाव आयोग किसी विशेष राज्य विधानसभा के लिए चुनाव स्थगित करने की सिफारिश कर सकता है, यदि लोकसभा चुनाव के साथ चुनाव कराना संभव न हो। 
      • इस मामले में स्थगित चुनाव भी लोकसभा के कार्यकाल की समाप्ति के साथ ही संपन्न होंगे।
    • अनुच्छेद 82ए(6): यदि किसी विधानसभा का चुनाव स्थगित कर दिया जाता है, तो उस विधानसभा का पूरा कार्यकाल भी आम चुनाव में निर्वाचित लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएगा।
    • अनुच्छेद 82ए(7): चुनाव आयोग विधान सभा के चुनाव की अधिसूचना जारी करते समय वह तारीख घोषित करेगा जिस दिन विधान सभा का पूरा कार्यकाल समाप्त हो जाएगा।

मध्यावधि चुनाव और प्रभाव

  • लोकसभा में मध्यावधि चुनाव : विधेयक में उन परिदृश्यों को भी संबोधित किया गया है जहाँ सरकार अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने में विफल हो सकती है। ऐसे मामलों में मध्यावधि लोकसभा चुनाव होंगे किंतु अगली लोकसभा केवल शेष अवधि के लिए ही काम करेगी। उदाहरण के लिए, यदि लोकसभा तीन साल और दो महीने के बाद भंग हो जाती है, तो अगला चुनाव केवल शेष 22 महीनों के लिए होगा।
  • इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83 में नए खंड जोड़ने का प्रस्ताव है।
  • राज्य विधानसभाएं और मध्यावधि चुनाव : यदि किसी राज्य की विधानसभा अपने पूरे कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो उस विधानसभा के बचे हुए कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाएंगे। इससे लोकसभा चक्र के साथ तालमेल सुनिश्चित होगा।
  • इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 172 में भी बदलाव का प्रस्ताव है।

अनुच्छेद 82

अनुच्छेद 82 परिसीमन से संबंधित है, जो प्रत्येक दशकीय जनगणना के बाद राज्यों के बीच लोकसभा सीटों के आवंटन का पुनर्समायोजन है।

अनुच्छेद 83

अनुच्छेद 83 संसद के सदनों की अवधि निर्धारित करता है। इसके अनुसार, राज्यसभा भंग नहीं होती है और इसके एक-तिहाई सदस्य हर दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त होते हैं; जबकि, लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष तक का निर्धारित है जब तक कि इसे निर्धारित अवधि से पहले भंग न कर दिया जाए।

अनुच्छेद 172

यह राज्य विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति से संबंधित है।

अनुच्छेद 327

संविधान के अनुच्छेद 327 में ‘निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन’ शब्दों के पश्चात् ‘एक साथ निर्वाचनों का संचालन’ शब्द अंतःस्थापित किए जाएंगे (चुनाव से संबंधित प्रावधान बनाने की संसद की शक्ति)। 

दूसरा विधेयक: केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024

  • इस विधेयक का उद्देश्य दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर तथा अलग संवैधानिक प्रावधानों द्वारा शासित अन्य संघ शासित प्रदेशों सहित केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ चुनाव कराने के प्रावधानों का विस्तार करना है।
  • वस्तुतः केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम, 1963; राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन प्रस्तावित हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • प्रारंभ में लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं के लिए आम चुनाव वर्ष 1951-52, 1957, 1962 एवं 1967 में एक साथ आयोजित किए गए थे।
  • हालाँकि, वर्ष 1968 और 1969 में कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह समन्वय बाधित हो गया।

अनुशंसाएँ

  • भारतीय विधि आयोग (170वीं रिपोर्ट) ने सुझाव दिया कि एक साथ चुनाव कराना सामान्य नियम होना चाहिए, केवल कुछ मामलों में अपवाद होना चाहिए।
  • विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति (79वीं रिपोर्ट) ने भी इस विचार का समर्थन किया तथा चुनावों की आवृत्ति कम करने के लिए वैकल्पिक तरीकों की सिफारिश की तथा एक साथ चुनाव कराने की चुनौतियों के समाधान का प्रस्ताव दिया।

एक साथ चुनाव की आवश्यकता

  • अलग-अलग चुनाव कराना महंगा और समय लेने वाला हो गया है।
  • आदर्श आचार संहिता लागू होने से सामान्य सार्वजनिक जीवन, विकास कार्यक्रम एवं आवश्यक सेवाएँ बाधित होती हैं।
  • एक साथ चुनाव कराने से देश पर प्रशासनिक व वित्तीय बोझ कम होगा।

ONOE के पक्ष में तर्क

  • लागत दक्षता : एक साथ चुनाव कराने से सरकारी लागत में उल्लेखनीय कमी आएगी, क्योंकि एक ही समय पर चुनाव कराने से संसाधनों का अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सकेगा।
  • बेहतर संसाधन प्रबंधन : कार्मिकों और सुरक्षा बलों सहित चुनाव संबंधी संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जाएगा, जिससे अलग-अलग चुनावों के दौरान बार-बार तैनाती की आवश्यकता नहीं होगी।
  • नीतिगत  पक्षाघात का सामना : चुनावों की बारंबारता के कारण नीतिगत  पक्षाघात का सामना करना पड़ता है  क्योंकि आदर्श आचार संहिता (MCC) के कारण  सरकार किसी नई महत्त्वपूर्ण नीति की घोषणा या उसका क्रियान्वयन नहीं कर सकती है ।
  • मतदान में वृद्धि : एक ही चुनाव प्रक्रिया से मतदाता की थकान कम हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप मतदान में वृद्धि हो सकती है। 
  • राजनीतिक स्थिरता : एक साथ चुनाव कराने से बार-बार होने वाले चुनावी चक्र और राजनीतिक व्यवधान कम हो सकते हैं, जिससे शासन में स्थिरता की अवधि लंबी हो सकती है।
  • राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना : चुनावों की आवृत्ति कम होने से सरकारें लगातार प्रचार से विचलित होने के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों और शासन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।

ONOE के विरुद्ध तर्क

  • तार्किक चुनौतियाँ : भारत जैसे विशाल एवं विविधतापूर्ण देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग बुनियादी ढाँचा व सुरक्षा ज़रूरतें होती हैं, जिससे समन्वय मुश्किल हो जाता है।
  • संघवाद का कमज़ोर होना : ONOE के कारण राज्य विधान सभा चुनावों में राष्ट्रीय दलों का दबदबा बढ़ सकता है, जिससे क्षेत्रीय दल और मुद्दे दरकिनार हो सकते हैं। इससे संघीय ढाँचा एवं राज्य सरकारों की स्वायत्तता कमज़ोर हो सकती है।
  • राजनीतिक अस्थिरता का खतरा : यदि राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के परिणाम भिन्न होते हैं तो इससे राष्ट्रीय व राज्य दोनों स्तरों पर अस्थिर गठबंधन सरकारें बन सकती हैं, जिससे शासन संबंधी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।
  • मतदाता को भ्रम : एक साथ कई चुनाव होने से मतदाता भ्रमित हो सकते हैं, विशेषकर जब कई दल व उम्मीदवार चुनाव में भागीदारी कर रहे हों। इससे गलतियां हो सकती हैं और मतदाता की भागीदारी कम हो सकती है।
  • जावबदेही में कमी : ONOE की स्थिति में सरकारों की जनता के प्रति जवाबदेही में कमी हो सकती है क्योंकि  प्रत्येक 5 वर्ष में एक से अधिक बार मतदाताओं के समक्ष आने से राजनेताओं की जवाबदेहिता में वृद्धि होती है।
  • प्रारंभिक कार्यान्वयन लागत : हालांकि ONOE से दीर्घकालिक लागत में बचत हो सकती है किंतु परिवर्तन के लिए निर्वाचन प्रणाली में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता होगी, जिसमें महत्वपूर्ण प्रारंभिक लागत व समय लगेगा।

आगे की राह 

  • चरणबद्ध कार्यान्वयन : एक क्रमिक दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है, जहां राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन से पहले कुछ राज्यों या क्षेत्रों के लिए चुनावों को एक साथ किया जाता है। इससे तार्किक चुनौतियों का समाधान करने और प्रणाली का परीक्षण करने के लिए समय मिल सकता है।
  • चुनावी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना : एक साथ चुनाव कराने की बढ़ती जटिलता और पैमाने को संभालने के लिए चुनाव मशीनरी को काफी उन्नत करने की आवश्यकता होगी। प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे में निवेश आवश्यक होगा।
  • आम सहमति बनाना : इस तरह की पहल की सफलता के लिए सभी हितधारकों, राजनीतिक दलों, नागरिक समाज एवं जनता को शामिल करते हुए आम सहमति निश्चित करना महत्वपूर्ण है।
  • जन जागरूकता एवं शिक्षा : मतदाताओं को ONOE के लाभों के बारे में शिक्षित करने के साथ-साथ संयुक्त चुनावों के दौरान मुद्दों के बारे में भ्रम से बचने के लिए प्रक्रिया को समझाने के लिए जागरूकता अभियान महत्वपूर्ण होंगे।
  • क्षेत्रीय चिंताओं को संबोधित करना : यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए कि क्षेत्रीय चिंताएँ राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित न हों। राजनीतिक दल ऐसी अभियान रणनीतियों पर विचार कर सकते हैं जो राष्ट्रीय व राज्य-विशिष्ट विषयों के बीच संतुलन बनाए रखें।
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