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ऑनलाइन आंदोलन : बढ़ता प्रभाव तथा चुनौतियाँ

(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन-अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका)

चर्चा में क्यों ?

कोविड-19 महामारी के दौर ने ऑनलाइन आंदोलनों के महत्त्व को अत्यधिक बढ़ा दिया है। इस महामारी के दौरान भारत में विरोध प्रदर्शन लगभग पूरी तरह से ऑनलाइन हो गया है।

भूमिका

  • सोशल मीडिया तथा ई-मेल जैसी इलेक्ट्रॉनिक तकनीकों के माध्यम से नागरिक आंदोलनों को तीव्रता प्रदान करने तथा इसे अतिरिक्त रूप से प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाता है। यह एक संगठित सार्वजनिक प्रयास है, जिसमें किसी विशिष्ट मुद्दे पर डिजिटल मीडिया की सहायता से नागरिकों का समर्थन प्राप्त किया जाता है।
  • सोशल मीडिया तीन प्रमुख तरीकों से ऑनलाइन सक्रियता (Online Activism) में वृद्धि करता है।
  • पहला, यह लोगों की सामाजिक समस्याओं से सम्बंधित अनुभव और राय व्यक्त करने का मंच प्रदान करता है।
  • दूसरा, ऑनलाइन असामाजिक तत्त्वों द्वारा प्रसारित नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को चुनौती देने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  • तीसरा, यह अपनी विचारधाराओं से अलग लोगों के साथ भी सम्बंधित मुद्दों की वास्तविकताओं को साझा करने का भी अवसर देता है।

ऑनलाइन आंदोलनों के लाभ

  • जो लोग प्रदर्शनों में शामिल नहीं हो सकते हैं, ये उन्हें ऑनलाइन प्लेटफार्म के ज़रिये अपनी आवाज़ को बुलंद करने और समर्थन प्राप्त करने में सहायता करते हैं।
  • ये लोकतंत्र और कल्याणकारी शासन चाहने वाले समुदाय या देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच प्रदान करते हैं।
  • ये राजनीति के विकेंद्रीकरण में अत्यंत सहायक हैं। इनमें एक व्यापक जनसमूह की सहभागिता सुनिश्चित हो पाती है।
  • ये सरकार नियंत्रित पारम्परिक मीडिया द्वारा अपने पक्ष में प्रसारित सूचनाओं को प्रमाणिकता प्रदान करने तथा विभिन्न वर्गों की आवाज़ को बुलंद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • ऑनलाइन आंदोलन युवा पीढ़ी को सामाजिक मुद्दों के सम्बंध में अधिक सहभागिता प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें शिक्षित करने तथा उनमें संचार और तकनीकी कौशल का विकास करने में भी सहायता करते हैं।

ऑनलाइन आंदोलनों की चुनौतियाँ

  • ऑनलाइन आंदोलनों की अवधि बहुत छोटी होती है। इस प्रकार के आंदोलनों की शुरुआत जिस तीव्रता के साथ होती है उसी तीव्रता के साथ ये समाप्त भी हो जाते हैं, जिससे लोगों पर इन आंदोलनों का प्रभाव सीमित समय के लिये ही हो पाता है।
  • इन आंदोलनों में भाग लेने वाले लोग कभी-कभी गैर-ज़िम्मेदाराना रूप से अपना मत प्रकट करते हैं, जिससे किसी मुद्दे या आँकड़े की गुणवत्ता तथा विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा आंदोलन अपने मूल उद्देश्य से ही भटक जाते हैं।
  • ऑनलाइन माध्यमों में अफवाहों तथा अविश्वसनीय जानकारी का प्रसार तीव्रता से होता है, जिससे लोगों में भ्रम तथा असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है तथा गलत जानकारी के प्रसार से हिंसक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलता है।
  • ऑनलाइन माध्यमों के गलत हाथों में पड़ने से इनका दुरूपयोग भी व्यापक स्तर पर किया जा सकता है, जिससे किसी भी राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
  • ऑनलाइन आंदोलन लोगों को तीव्रता से तथा व्यापक स्तर पर जोड़ते हैं लेकिन सीमित भौतिक प्रयास के चलते लोगों का केवल प्रतीकात्मक समर्थन मिल पाता है। अल्पकालिक ध्यानाकर्षण के अलावा इन आंदोलनों का प्रभाव लोगों पर गहराई से नहीं पड़ता है।
  • ऑनलाइन माध्यम उस क्षेत्र, समुदाय या देश के लिये उपयोगी नहीं हैं, जहाँ इंटरनेट की पहुँच तथा डिजिटल साक्षरता का अभाव है।
  • इंटरनेट के अस्थिर स्वभाव तथा सोशल मीडिया पर प्रामाणिक स्रोतों के अभाव के चलते इन आंदोलनों की विश्वसनीयता तथा इनके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह है।
  • इन आंदोलनों के कुछ मुद्दे या विषय सम्बंधित क्षेत्र या देश की सरकार की आलोचना के रूप में हो सकते हैं, जिसकी प्रतिक्रिया में सम्बंधित सरकार इंटरनेट सेंसरशिप जैसे कदम उठा सकती है।

सुधार हेतु सुझाव

  • वर्तमान समय में अधिकांश युवा आबादी इंटरनेट से जुड़ी हुई है तथा टेक्नो फ्रेंडली है, जिसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से व्यापक स्तर पर जोड़कर व्यापक परिवर्तन लाया जा सकता है।
  • अफवाहों पर प्रभावी नियंत्रण रखते हुए ऑनलाइन आंदोलनों को सही दिशा की ओर उन्मुख किया जाना चाहिये।
  • ऑनलाइन आंदोलनों के लिये सोशल मीडिया का प्रयोग महत्त्वपूर्ण है|लेकिन इतने विस्तृत मंच पर लोगों को लामबंद करने का मानवीय प्रयास तथा इन लोगों को अपने लाभ के लिये उपयोग करने की सोच से भी सतर्क रहने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

  • ऑनलाइन आंदोलन और सोशल मीडिया की ताकत एवं प्रभाव भारत के संदर्भ में विशेष रूप से दिखाई पड़ता है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह तर्क भी विचारणीय है कि ऑनलाइन सहमति और असहमति वास्तव में धरातल पर उपयोगी है या नहीं।
  • सुविधापूर्ण एवं आलस्यपूर्ण प्रतिक्रिया जैसी कुछ आलोचनाओं के बावजूद ऑनलाइन आंदोलनों का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इक्कीसवीं सदी में ये आंदोलन स्वयंसिद्ध रूप से स्थापित हो चुके हैं।
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