चर्चा में क्यों
ओपेक+ समूह ने तेल उत्पादन में कटौती को वर्ष 2025 तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है।

ओपेक एवं ओपेक+ संगठन
- ओपेक (OPEC) पेट्रोलियम निर्यातक देशों का एक स्थायी अंतरसरकारी संगठन है, जो अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1960 में बगदाद में इराक, ईरान, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला द्वारा पेट्रोलियम नीतियों के समन्वय तथा उचित एवं स्थिर कीमतों को सुरक्षित करने के उद्देश्य से की गई थी।
- वर्तमान में इसमें मुख्य रूप से मध्य पूर्व और अफ्रीका के12 देश शामिल हैं जो कुल वैश्विक तेल उत्पादन के लगभग 30% के लिए उत्तरदायी हैं।
- सदस्य देश : सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, इराक, ईरान, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, वेनेजुएला
- वर्ष 2007 में ओपेक में शामिल होने वाला अंगोला इस साल की शुरुआत में उत्पादन स्तर पर मतभेदों का हवाला देते हुए ओपेक से अलग हो गया।
- इक्वाडोर ने वर्ष 2020 में और कतर ने वर्ष 2019 में ओपेक को छोड़ दिया था।
ओपेक+ समूह
- ओपेक ने वर्ष 2016 के अंत में रूस सहित दुनिया के 10 प्रमुख गैर-ओपेक तेल निर्यातकों के साथ ओपेक+ समूह का गठन किया।
- इस समूह का मुख्य उद्देश्य वैश्विक बाजार में तेल की आपूर्ति को विनियमित करना है।
- कुल वैश्विक कच्चे तेल के उत्पादन का लगभग 41% ओपेक+ देशों द्वारा उत्पादित किया जाता है।
- ओपेक+ के वैश्विक गठबंधन में गैर-ओपेक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले देश हैं :
- रूस
- अजरबैजान
- कजाकिस्तान
- बहरीन
- ब्रुनेई
- मलेशिया
- मैक्सिको
- ओमान
- दक्षिण सूडान
- सूडान
ओपेक समूह द्वारा तेल उत्पादन में कटौती के कारण
- मांग में धीमी वृद्धि
- उच्च ब्याज दरों और बढ़ते प्रतिद्वंद्वी अमेरिकी उत्पादन के बीच बाजार को मजबूत करना
- विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ते तेल स्टॉक
- कीमतों में कमी
ओपेक समूह के निर्णय का वैश्विक प्रभाव
- ओपेक एवं उसके सदस्य देशों की कुल वैश्विक कच्चे तेल निर्यात में लगभग 49% हिस्सेदारी है।
- ओपेक के अनुसार उसके सदस्य देशों के पास दुनिया के सिद्ध तेल भंडार का लगभग 80% हिस्सा है।
- बड़े बाजार हिस्सेदारी के कारण ओपेक द्वारा लिए गए निर्णय वैश्विक तेल कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं।
- ओपेक समूह द्वारा मांग एवं आपूर्ति के आधार पर वैश्विक तेल की कीमतें प्रभावित होती हैं।
- वर्ष 1973 के अरब-इजरायल युद्ध के दौरान ओपेक के अरब सदस्यों ने अमेरिका सहित इजरायल का समर्थन करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाया।
- इस तेल प्रतिबंध ने पहले से ही तनावपूर्ण अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला जो आयातित तेल पर निर्भर हो गई थी।
- तेल की कीमतों में उछाल आया, जिससे उपभोक्ताओं के लिए ईंधन की उच्च लागत और संयुक्त राज्य अमेरिका में ईंधन की कमी हो गई।
- प्रतिबंध ने संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों को वैश्विक मंदी के कगार पर ला खड़ा किया था।
- वर्ष 2020 में दुनिया भर में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई।
- ऐसे में ओपेक+ ने कीमतों को बढ़ाने की कोशिश में तेल उत्पादन में 10 मिलियन बैरल प्रति दिन की कमी की।
- यूक्रेन में युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण ओपेक+ सदस्य रूस की उत्पादन क्षमता प्रभावी रूप से कम हो गई है।