New
The Biggest Holi Offer UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 12 March Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back The Biggest Holi Offer UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 12 March Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

खुले पारिस्थितिकी तंत्र

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, सवाना एवं घास के मैदानों (Grasslands) जैसे खुले पारिस्थितिकी तंत्रों (Open Ecosystems) में वृक्षों की संख्या अधिक होने से घास के मैदानों में पाई जाने वाली स्थानीय पक्षियों की संख्या में काफी कमी आई है। विशेष रूप से अफ्रीकी सवाना में, घास के मैदानों में रहने वाली पक्षियों की संख्या में 20% से अधिक की कमी आई है।

खुले पारिस्थितिकी तंत्र से तात्पर्य 

  • कम संख्या में वृक्ष : विश्व के सवाना प्रदेश, घास के मैदान एवं झाड़ियाँ खुले पारिस्थितिकी तंत्र हैं। इस पारितंत्र में भूमि पर घास की निरंतर परत पाई जाती है, जिसमें न के बराबर या बहुत कम संख्या में वृक्ष होते हैं। 
  • प्राकृतिक प्रभाव : इसकी वानस्पतिक संरचना एवं बनावट व्यापक रूप से पर्यावरणीय परिस्थितियों से निकटता से संबद्ध होती है। आग और जानवरों से होने वाला व्यवधान वैश्विक स्तर पर खुले पारिस्थितिकी तंत्र की गतिशीलता के विकास व रखरखाव से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रक्रियाएँ हैं।
  • पर्यावरणीय रूप से महत्त्वपूर्ण : घास के मैदान एवं सवाना प्रदेश दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय व समशीतोष्ण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण पारितंत्र सेवाओं एवं जैव-विविधता वाले आवास हैं। घास वाले पारितंत्र दुनिया की 40% से अधिक स्थलीय सतह पर विस्तृत हैं। 
  • शामिल क्षेत्र : खुले पारिस्थितिकी तंत्र में अफ्रीका एवं एशिया में हाथी, गैंडे व भैंस जैसे विशाल शाकाहारी जानवरों से लेकर हिमालय के घास के मैदानों तथा अमेरिका के प्रेयरी के बस्टर्ड, फ्लोरिकन व ग्रूज़ जैसे घास के मैदानों के पक्षियों तक सम्मिलित है।

वृक्षों की अधिक संख्या एवं वुडी अतिक्रमण  

  • वृक्षों की संख्या में वृद्धि को प्राय: जैव-विविधता संरक्षण का सकारात्मक परिणाम माना जाता है जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक है। हालाँकि, ऐतिहासिक रूप से भिन्न वास स्थान वाले क्षेत्रों में वृक्षों की संख्या बढ़ जाने से ये वृक्ष पारिस्थिकी तंत्र के लिए समस्या भी बन जाते हैं। 
  • वृक्षों एवं झाड़ियों के आवरण में वृद्धि को वुडी अतिक्रमण (Woody Encroachment) कहा जाता है और यह अधिकांश पारिस्थितिक तंत्रों में व्यापक है।
  • वुडी अतिक्रमण में खुले आवासों को अधिक वृक्षावरण और/या झाड़ी के अधिक घनत्व वाले आवासों में परिवर्तित करना शामिल है। इससे अंतत: पारिस्थितिकी तंत्र का समरूपीकरण (Homogenisation) हो जाता है। इसका अर्थ है कि एक विविध, बहु-स्तरीय पारिस्थितिकी तंत्र काष्ठीय वृक्षों की एक समान परत में परिवर्तित हो जाता है।

खुले पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे 

  • खुले पारितंत्र के लिए खतरे वाली गतिविधियों में घास के मैदानों का रूपांतरण, गहन कृषि, कटाव के कारण होने वाला नुकसान, बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएं, अत्यधिक चराई आदि शामिल हैं। 
  • इसके अतिरिक्त अत्यधिक संख्या में वृक्ष भी इनके लिए खतरा है। खुले पारिस्थितिकी तंत्र में वुडी अतिक्रमण ने असंख्य तरीकों से जैव-विविधता को परिवर्तित कर दिया है। 
  • जलवायु परिवर्तन के कारण वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता से घास के मैदानों में गहरी जड़ों वाले काष्ठीय वृक्षों में वृद्धि की संभावना अधिक होती हैं।
  • दक्षिण अमेरिकी घास के मैदानों में आग एवं विखंडन प्रमुख समस्या है जबकि ऑस्ट्रेलिया व अफ्रीका में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड व वर्षा में भिन्नता की समस्या है।

भारत में खुले पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा

  • भारत में घास के मैदान अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों में पाए जाते हैं। देश के पश्चिमी भाग में शुष्क घास के मैदान हैं; हिमालयी क्षेत्र में बाढ़ के मैदान हैं और उच्च ऊंचाई वाले शोला घास के मैदान पश्चिमी घाट में पाए जाते हैं। 
    • ये घास के मैदान कृषि कार्यों के लिए जंगलों की सफाई, विकास परियोजनाओं और मानव-व्युत्पन्न आवासों के कारण विखंडित हो रहे हैं।
  • कोलकाता स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER), चीन के हैनान विश्वविद्यालय और यू.के. में ड्यूरेल कंज़र्वेशन ट्रस्ट के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के अनुसार, 
    • विगत तीन दशकों में भारत एवं नेपाल के कई राष्ट्रीय उद्यानों में अत्यधिक वुडी अतिक्रमण हुआ है। घास के मैदानों के आवास कवर में 34% तक की कमी आई, जबकि इन स्थानों पर वृक्षों का आवरण 8.7% बढ़ गया।

वृक्षों की अधिक संख्या एवं वुडी अतिक्रमण का कारण 

  • वुडी अतिक्रमण मानव-चालित कारकों का प्रत्यक्ष परिणाम है जो खुले पारिस्थितिकी तंत्रों के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियों में बदलाव का कारण बन रहे हैं। 
  • वर्तमान में लोग वृक्षों को कार्बन अवशोषक के रूप में देखते हैं जबकि खुले पारिस्थितिकी तंत्रों को अतिक्रमण के रूप में देखते हैं।
  • घास के मैदानों एवं सवाना की ऐतिहासिक मौजूदगी को अस्वीकार करने से भी इनके संरक्षण में लगातार समस्या आ रही है। 
  • अफ़्रीका के दक्षिणी हिस्से में स्थित देशों, जैसे- दक्षिण अफ़्रीका, एस्वातिनी एवं लेसोथो में वैज्ञानिकों ने ‘साउथ अफ़्रीकन बर्ड एटलस प्रोजेक्ट- 2’ से डाटा का उपयोग करके खुले पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों की संख्या में नाटकीय कमी का पता लगाया है।
    • वर्ष 2007 से 2016 तक 121 प्रजातियों की संख्या में गिरावट की प्रवृति देखने को मिली है। इनमें से 34 प्रजातियों में गिरावट का संबंध वुडी अतिक्रमण से था।
  • जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन (नेपाल चैप्टर) के अनुसार, ‘वुडी प्रजातियों के एकाधिकार से मृदा की स्थिति बदल जाती है, जिससे घास की प्रजातियों एवं जीव-जंतुओं के संघ में बदलाव हो जाता है’। 
    • उदाहरण के लिए, कच्छ के बन्नी घास के मैदानों में वृक्षों के अतिक्रमण से घास के मैदान में कृंतकों की आबादी में कमी आई है। 
  • घास के मैदानों में वुडी अतिक्रमण को बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्यक्रमों से भी बढ़ावा मिला है। 
    • मरुस्थलीकरण से निपटने एवं समुदायों को जलाऊ लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए बन्नी घास के मैदानों में प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा नामक आक्रामक प्रजाति के प्रसार को बढ़ावा दिया गया था। इसने घास के मैदान का एक बड़ा हिस्सा प्रोसोपिस वुडलैंड में बदल गया है।
  • भारत के अधिकांश खुले पारिस्थितिकी तंत्रों में कृत्रिम रूप से लगाए गए पौधे भी एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक हैं।
    • उदाहरणस्वरुप, शोला घास के मैदानों में यूकेलिप्टस के बागान अत्यधिक बढ़ गए हैं, जबकि हिमालय के आर्द्र तराई घास के मैदानों में मालाबार रेशम-कपास के वृक्षों में अत्यधिक वृद्धि हुई हैं।

क्या किया जाना चाहिए

  • घास के मैदानों पर वुडी अतिक्रमण के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए, उनके प्रभाव के बारे में आवश्यक जानकारी एकत्र करने की जरुरत है। खुले पारिस्थितिकी तंत्रों में दीर्घकालिक पारिस्थितिक निगरानी की भी आवश्यकता है क्योंकि ये मूल्यवान सूक्ष्म-स्तरीय जानकारी प्रदान करते हैं। 
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत में खुले पारिस्थितिकी तंत्रों की पारिस्थितिकी एवं संरक्षण के लिए कार्रवाई एवं नीति-परिवर्तन से पहले अनुसंधान एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • भारत में ‘बंजर भूमि’ जैसी शब्दावली खुले पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए गलत वर्गीकरण हो सकती है। इससे संरक्षण में निष्क्रियता आने के साथ-साथ इस भूमि का प्रयोग अन्य प्रयोजनों के लिए हो सकता है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X