(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)
संदर्भ
कुछ दिनों पूर्व श्रीलंका ने ‘कोलंबो पोर्ट सिटी आर्थिक आयोग’ विधेयक पारित किया, जो $1.4 बिलियन की चीन समर्थित कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को नियंत्रित करता है। इस परियोजना के साथ-साथ इस विधेयक का भी श्रीलंका में व्यापक विरोध हो रहा है।
क्यों विवादों से घिरा है प्रोजेक्ट?
- श्रीलंका में कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर के बीच ‘कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना’ हाल के महीनों में सुर्खियों में रही है। कोलंबो के समुद्र तट से 2.69 वर्ग किमी. क्षेत्र में लगभग एक कृत्रिम द्वीप के रूप में विकसित होने वाली यह परियोजना अपनी स्थापना के बाद से ही विवादित रही है।
- इसका समर्थन करने वाले लोग इसे हिंद महासागर में एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र (जैसे-सिंगापुर या दुबई) के रूप में देखते हैं। हालाँकि, इसके विरोधियों का दावा है कि इस अधिनियम के साथ यह एक चीनी उपनिवेश बन सकता है। इस अधिनियम में पोर्ट सिटी और एक शक्तिशाली आयोग का जिक्र है, जो इसे भारी कर छूट और निवेशकों के लिये अन्य प्रोत्साहन के अलावा श्रीलंकाई कानूनों से पर्याप्त प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
- इसकी कल्पना ‘दक्षिण एशिया में विश्व स्तरीय शहर’ के रूप में की गई है। इसमें विकास की परिकल्पना पाँच विशिष्ट ‘परिक्षेत्रों’ के तहत की गई है, जिसमें ‘वित्तीय जिला’, ‘सेंट्रल पार्क लिविंग एवं आइलैंड लिविंग’ (आवासीय क्षेत्रों के रूप में), मरीना (छुट्टी बिताने वाले गंतव्य के रूप में) और अंतर्राष्ट्रीय द्वीप (शैक्षणिक संस्थान व सम्मेलन केंद्र शामिल) होंगे। इस पोर्ट सिटी परियोजना को वर्ष 2041 तक पूरा करने की योजना है।
परियोजना की शुरुआत
- इस परियोजना को सितंबर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा महिंद्रा राजपक्षे प्रशासन के दूसरे कार्यकाल के दौरान लॉन्च किया गया था। जनवरी 2015 में महिंद्रा राजपक्षे के सत्ता से बेदखल होने के बाद मैत्रीपाला सिरिसेना और रानिल विक्रमसिंघे की राष्ट्रीय एकता सरकार ने कुछ समय के लिये रोकने के बाद इस परियोजना को आगे बढ़ाया।
- नवंबर 2019 में सत्ता में लौटने पर राजपक्षे द्वारा परियोजना में तेज़ी लाई गई। श्रीलंकाई सरकार के अनुसार, इस परियोजना से शुरूआत में लगभग 15 अरब डॉलर और 83,000 रोज़गार सृजित होंगे।
किस हद तक है चीन की भागीदारी?
- इस परियोजना को मुख्य रूप से 1.4 बिलियन डॉलर के चीनी निवेश के माध्यम से ‘CHEC पोर्ट सिटी कोलंबो’ के माध्यम से वित्तपोषित किया गया है, जो राज्य स्वामित्व वाली ‘चाइना कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कंपनी’ (CCCC) की एक इकाई है। बदले में, कंपनी को 99 वर्ष के पट्टे पर 116 हेक्टेयर (कुल 269 हेक्टेयर में से) भूमि प्राप्त होगी।
- कोलंबो पोर्ट सिटी देश के प्रमुख कोलंबो बंदरगाह से अलग किंतु समीप ही स्थित है। यह बंदरगाह से संबंधित तीसरी बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजना है, जिसमें चीन की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
- श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण के साथ 35 वर्ष के 'निर्माण, प्रचालन और स्थानांतरण' समझौते के तहत कोलंबो बंदरगाह पर कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल्स लिमिटेड (CICT) में चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग्स की 85% हिस्सेदारी है।
- चीनी ऋण को चुकाने में असमर्थता के चलते वर्ष 2017 में सिरिसेना प्रशासन ने दक्षिणी प्रांत में हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्ष के पट्टे पर चीन को सौंप दिया। इस प्रकार, प्रभावी रूप से एक सदी के लिये श्रीलंका में दो प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर चीन का पर्याप्त नियंत्रण है।
- ये परियोजनाएँ चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल की परिधि में हैं, जिसमें वह श्रीलंका को रणनीतिक रूप से एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखता है।
क्या हैं चिंताएँ?
- शुरुआत के बाद से ही कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को पर्यावरणविदों और मछुआरों के विरोध का सामना करना पड़ा है, क्योंकि इससे समुद्री जीवन और आजीविका के प्रभावित होने की प्रबल संभावना है। हालाँकि, इनको व्यापक राजनीतिक और सामाजिक समर्थन नहीं प्राप्त हुआ।
- हालिया प्रतिरोध विशेष रूप से कोलंबो पोर्ट सिटी आर्थिक आयोग विधेयक को लेकर है। विपक्षी दलों और नागरिक समाज समूहों के प्रतिरोध के अतिरिक्त इस परियोजना का विरोध न करने वाले लोगों ने भी इस विधेयक का विरोध किया है। इसका प्रमुख कारण इसके प्रशासन की शक्ति का बिना किसी जवाबदेहिता के एक शक्तिशाली आयोग में निहित होना है।
- गौरतलब है कि श्रीलंकाई राजनीति और सिंहली समाज में काफी प्रभाव रखने वाले बौद्ध भिक्षुओं के एक वर्ग ने भी इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इससे श्रीलंका की संप्रभुता का ह्रास हुआ है।
- विपक्ष ने कोलंबो पोर्ट सिटी पर चीन के ‘नियंत्रण’ का जिक्र करते हुए कहा कि इसने "चिलंका" (चीन+श्रीलंका) का मार्ग प्रशस्त किया है। ट्रेड यूनियनों ने भी इस आधार पर इसका विरोध किया है कि नई भौतिक और कानूनी इकाई के तहत श्रम अधिकारों को कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है।