प्रारंभिक परीक्षा – इको-सेंसिटिव जोन , पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 – पर्यावरण संरक्षण
सन्दर्भ
- केरल तथा कुछ अन्य राज्यों में स्थानीय लोगों द्वारा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) के निर्माण का विरोध किया जा रहा है।
इको सेंसिटिव जोन
- इको सेंसिटिव जोन ऐसे क्षेत्र होते है, जिन्हें संरक्षित क्षेत्रों (राष्ट्रीय पार्कों, वन्यजीव अभ्यारणों) के आस-पास के क्षेत्र को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए बफर जोन के रूप में निर्मित किया जाता है।
- इको-सेंसिटिव जोन को पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र (ईएफए) के रूप में भी जाना जाता है।
- इको सेंसिटिव जोन घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्रों के आसपास की गतिविधियों को विनियमित और प्रबंधित करके एक शॉक अब्जॉर्बर क्षेत्र का निर्माण करना है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 की धारा 3 के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा इको सेंसिटिव जोन को अधिसूचित किया जाता है।
- केंद्र सरकार ने इको सेंसिटिव जोन पर दिशा-निर्देश ज़ारी करते हुए इसकी सीमा संरक्षित क्षेत्रों से 10 किलोमीटर तक निर्धारित की थी।
- संवेदनशील गलियारों, कनेक्टिविटी और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों के मामले में, 10 किलोमीटर की सीमा से बाहर के क्षेत्रों को भी इको सेंसिटिव जोन में शामिल किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में निर्देश दिया था, कि देश में प्रत्येक संरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य में उनकी सीमाओं से कम-से-कम एक किमी. का अनिवार्य इको सेंसिटिव ज़ोन होना चाहिये।
- पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, क्षेत्रों को इको सेंसिटिव जोन घोषित करने के लिए वन्यजीव वार्डन, एक पारिस्थितिकीविद और स्थानीय सरकार के एक अधिकारी से मिलकर बनी एक समिति को प्रत्येक इको सेंसिटिव ज़ोन की सीमा का निर्धारण करना था।
- मुख्य वन्यजीव वार्डन को उन गतिविधियों की सूची तैयार करने का काम सौंपा गया था जिन्हें प्रतिबंधित या प्रतिबंधित किया जाना है या जिन्हें अतिरिक्त सुरक्षा उपायों के साथ अनुमति दी जा सकती है।
- बाद में, राज्य सरकार को अधिसूचना के लिए एमओईएफसीसी के प्रस्ताव के रूप में भौगोलिक विवरण, जैव विविधता मूल्यों, स्थानीय समुदायों के अधिकारों, उनकी आर्थिक क्षमता और उनकी आजीविका के निहितार्थ के साथ इस सूची को प्रस्तुत करना होगा।
- इसके अलावा राज्य सरकार को अधिसूचना जारी होने के दो साल के भीतर जोनल मास्टर प्लान का मसौदा तैयार करना अनिवार्य है।
- पर्यावरण की रक्षा के लिए इन क्षेत्रों में गतिविधियों को विनियमित किया जाता है।
- इको सेंसिटिव जोन में गतिविधियों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।
1. प्रतिबंधित गतिविधियाँ-
- वाणिज्यिक खनन।
- प्रदूषक उद्योगों की स्थापना।
- बड़ी जल विद्युत् परियोजनों की स्थापना।
2. विनियमित गतिविधियाँ-
- पेड़ों की कटाई।
- होटल और रिसॉर्ट की स्थापना।
- प्राकृतिक जल का व्यावसायिक उपयोग।
- कृषि प्रणाली में भारी बदलाव।
- कीटनाशकों का उपयोग।
- सड़कों का चौड़ीकरण।
3. अनुमति प्राप्त गतिविधियाँ-
- वर्षा जल संचयन।
- जैविक खेती।
- कृषि और बागवानी।
इको-सेंसिटिव जोन के विरोध के कारण
- इको-सेंसिटिव जोन में विभिन्न गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिये जाने के कारण क्षेत्र में रहने वाले लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाती है।
- इन क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को विस्थापन के लिए मजबूर किया जा सकता है।
- कई राज्यों द्वारा इस क्षेत्र में पाए जाने वाले खनिज संसाधनों के कारण भी इको सेंसिटिव जोन घोषित किये जाने का विरोध किया जाता है।