(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 –भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।)
संदर्भ
उच्चतम न्यायालय ने हालिया एक निर्णय में कहा है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण प्रदान करने के लिये ‘आर्थिक मानदंड एक मात्र मानक’ नही हो सकता है।
पृष्ठभूमि
- उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय हरियाणा पिछड़ा वर्ग (सेवाओं तथा शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण) अधिनियम, 2016 के क्रमशःवर्ष 2016 और 2018 में जारी अधिसूचनाओं के मामले में आया है। इस अधिसूचना को हरियाणा पिछड़ा वर्ग कल्याण महासभा ने न्यायालय में चुनौती दी थी।
- पहली अधिसूचना में पिछड़े वर्ग के उन सदस्यों को ‘क्रीमी लेयर’ घोषित किया गया, जिनकी सकल वार्षिक आय ₹6 लाख से अधिक थी।
- इसी अधिसूचना में कहा गया था कि ऐसे पिछड़े वर्ग, जिनकी वार्षिक आय ₹3 लाख से कम है, उन्हें ऐसे लोगों पर प्राथमिकता मिलेगी, जिनकी सकल वार्षिक आय ₹3 लाख से अधिक, किंतु ₹6 लाख से कम है।
न्यायालय का निर्णय
- विगत 30 वर्षों से उच्चतम न्यायालय अपने इस सिद्धांत पर अडिग है कि केवल ‘आर्थिक मानदंड’ पिछड़े वर्ग को ‘क्रीमी लेयर’ के रूप में चिह्नित करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। इसके लिये सामाजिक उन्नति, शिक्षा, रोज़गार जैसे अन्य कारक भी महत्त्वपूर्ण हैं।
- न्यायालय ने उक्त अधिसूचनाओं को वर्ष 2016 के अधिनियम के ‘कठोर उल्लंघन’ के आधार पर खारिज कर दिया है।
- न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 5(2) के अनुसार राज्य को पिछड़े वर्ग के सदस्यों को ‘क्रीमी लेयर’ के रूप में चिह्नित और बाहर करने के लिये सामाजिक, आर्थिक और अन्य कारकों पर ‘एक साथ विचार’ करने की आवश्यकता है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि ‘क्रीमी लेयर’ में पिछड़े वर्गों के ऐसे व्यक्ति शामिल होंगे, जो आई.ए.एस., आई.पी.एस. तथा अखिल भारतीय सेवाओं जैसी उच्च सेवाओं में सेवारत हैं।
- ऐसे व्यक्ति सामाजिक उन्नति और उच्च आर्थिक स्थिति के स्तर पर पहुँच गए हैं, इसलिये उन्हें ‘पिछड़ा’ नहीं माना जाएगा।
- इंद्रा साहनी, 1992 वाद के निर्णय की व्याख्या करते हुए न्यायालय ने कहा कि उक्त व्यक्तियों को बिना किसी जाँच के ‘क्रीमी लेयर’ के रूप में माना जाना चाहिये।
- इसी प्रकार, पर्याप्त आय वाले ऐसे व्यक्ति, जो दूसरों को रोज़गार देने की स्थिति में हैं, उन्हें भी पिछड़े वर्ग से बाहर माना जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, पिछड़े वर्ग के ऐसे व्यक्ति, जिनके पास उच्च कृषि भूमि है या जो एक निर्धारित सीमा से अधिक संपत्ति से आय प्राप्त कर रहे थे, वे आरक्षण के पात्र नहीं हैं।
- अतः उक्त श्रेणियों को अनिवार्य रूप से पिछड़े वर्गों से बाहर रखा जाना चाहिये।
क्रीमी लेयर से अभिप्राय
- इंद्रा साहनी वाद, 1992 में उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा प्रस्तुत की थी।
- यद्यपि संवैधानिक पीठ ने मंडल आयोग की सिफारिशों पर केंद्र सरकार द्वारा ‘अन्य पिछड़े वर्ग’ को प्रदत्त 27 प्रतिशत आरक्षण को बरक़रार रखा, किंतु पिछड़े वर्गों के उन सदस्यों को चिह्नित करना अनिवार्य माना, जो पहले से ही सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से ‘अत्यधिक उन्नत’ थे।
- न्यायालय का मानना था कि ये ‘समृद्ध एवं उन्नत सदस्य’ पिछड़े वर्गों के मध्य ‘क्रीमी लेयर’ बनाते हैं। इसी निर्णय ने सरकारों को क्रीमी लेयर की पहचान करने तथा उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करने का निर्देश दिया।
क्रीमी लेयर का निर्धारण
- इंद्रा साहनी वाद के आदेश के उपरांत क्रीमी लेयर के निर्धारण से संबंधित मानदंड तय करने के लिये न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आर. एन. प्रसाद की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था।
- सितंबर 1993 में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने कुछ रैंक/प्रस्थिति/ आय के नागरिकों की विभिन्न श्रेणियों को सूचीबद्ध किया, जिनकी संताने ओ.बी.सी. आरक्षण के दायरे से बाहर रहेंगी।
- पिछड़े वर्ग के ऐसे सदस्य जो सरकारी सेवा में नहीं हैं, उनके लिये क्रीमी लेयर की मौजूदा सीमा ₹8 लाख प्रति वर्ष नियत की गई है।
- सरकारी कर्मचारियों के बच्चों के लिये मानदंड उनके माता-पिता की ‘रैंक’ के आधार पर निर्धारित किये गए हैं न कि आय के आधार पर, उदाहरणार्थ एक व्यक्ति को क्रीमी लेयर के अंतर्गत माना जाता है यदि-
- उसके माता-पिता में से कोई एक संवैधानिक पद पर हो;
- माता-पिता सीधे ग्रुप-ए की सेवाओं में नियुक्त हुए हों;
- माता-पिता, दोनों ग्रुप-बी सेवाओं में सेवारत हों;
- माता-पिता 40 वर्ष की आयु से पूर्व पदोन्नति के द्वारा ग्रुप-ए में प्रवेश करते हैं;
- थल सेना में कर्नल या उच्च पद के अधिकारी की संतान;
- नौसेना और वायु सेना में उच्च पद के अधिकारियों के संतान।
- अक्तूबर 2004 को जारी डी.ओ.पी.टी. के स्पष्टीकरण के अनुसार, क्रीमी लेयर को निर्धारित करते समय वेतन या कृषि भूमि से होने वाली आय को ‘एक साथ जोड़ा’ नहीं जाता है।
क्रीमी लेयर में संशोधन
- आय सीमा के अतिरिक्त क्रीमी लेयर की परिभाषा में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। गौरतलब है कि डी.ओ.पी.टी. द्वारा वर्ष 1993 तथा 2004 में इस संदर्भ में स्पष्टीकरण जारी किया गया है।
- सरकार द्वारा आय सीमा में समय-समय पर परिवर्तन किया जाता है। डी.ओ.पी.टी. ने अभिनिर्धारित किया है कि प्रत्येक तीन वर्ष पर इसे संशोधित किया जाएगा।
- पूर्व में निर्धारित आय सीमा निम्नवत है-
- सितंबर 1993 - प्रति वर्ष ₹1 लाख
- मार्च 2004 - प्रति वर्ष ₹2.50 लाख
- अक्तूबर 2008 - प्रति वर्ष ₹4.50 लाख
- मई 2013 - प्रति वर्ष ₹6 लाख
- सितंबर 2017 - प्रति वर्ष ₹8 लाख
- उल्लेखनीय है कि विगत संशोधन से अब तक का समय तीन वर्ष से अधिक हो चुका है।
क्रीमी लेयर की आलोचना
- क्रीमी लेयर की पहचान एक जटिल मुद्दा रहा है। यहाँ मूल प्रश्न यह है कि आरक्षण के लाभ से बाहर होने के लिये पिछड़े वर्ग के सदस्यों को ‘कितना समृद्ध या उन्नत होना’ चाहिये।
- न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी ने इंद्रा साहनी के निर्णय में ‘आरक्षण-योग्य और क्रीमी लेयर’ के मध्य विभेदन के एक ही मुद्दे को प्रश्नांकित किया था।
- उनके अनुसार आरक्षण के लाभ से बाहर होने का आधार केवल आर्थिक नहीं होना चाहिये, जब तक की आर्थिक उन्नति इतनी अधिक न हो जाए, जिसे सामाजिक उन्नति कहा जा सके।
- न्यायमूर्ति रेड्डी ने केवल आर्थिक आधार पर क्रीमी लेयर की पहचान करने के नुकसान पर भी प्रकाश डाला। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति, जो ₹36,000 प्रति माह आय अर्जित करता है, वह ग्रामीण भारत में आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकता है लेकिन एक महानगरीय शहर में उसी वेतन को अधिक नहीं माना जा सकता है।
- न्यायमूर्ति रेड्डी ने कहा कि किसी व्यक्ति की आय को उसकी सामाजिक उन्नति के रूप में मापा जाता है तो निर्धारित की जाने वाली सीमा ऐसी नहीं होनी चाहिये कि एक हाथ से जो दिया जाता है, उसे दूसरे हाथ से ले लिया जाए। आय सीमा ऐसी होनी चाहिये जो सामाजिक उन्नति की ओर संकेत करे।
क्रीमी लेयर की आवश्यकता
- जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता वाद, 2018 में संवैधानिक पीठ के निर्णय में न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ नरीमन ने क्रीमी लेयर अवधारणा को लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था।
- न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि जब तक क्रीमी लेयर के सिद्धांत को लागू नहीं किया जाता है, तब तक जो वास्तव में आरक्षण के योग्य हैं, वे इसका उपयोग नहीं कर पाएँगे।
- उनके अवलोकन के अनुसार क्रीमी लेयर का सिद्धांत समानता के मौलिक अधिकार पर आधारित है।
- न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने निर्णय में लिखा कि “ कुल मिलाकर, आरक्षण के लाभ को पिछड़ी जाति या वर्ग के शीर्ष क्रीमी लेयर द्वारा छीन लिया जाता है, इस प्रकार कमज़ोरों में सबसे कमज़ोर को हमेशा कमज़ोर रखकर वह पूरे लाभ का उपभोग कर लेता है।”