मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन-संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण व क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
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संदर्भ
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) की ‘एयर क्वालिटी ट्रैकर : एन इनविजिबल थ्रेट’ नामक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शहरों में ओजोन प्रदूषण के स्तर में चिंताजनक वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्ष
- इस रिपोर्ट में दिल्ली एन.सी.आर., बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई व पुणे के साथ अहमदाबाद, हैदराबाद, जयपुर एवं लखनऊ में ओजोन के स्तर का विश्लेषण किया गया।
- अध्ययन के अनुसार, सभी 10 क्षेत्रों में राष्ट्रीय ओजोन मानक से अधिक प्रदूषण देखा गया, जिसमें दिल्ली सर्वाधिक प्रभावित रहा।
- ओजोन न केवल महानगरीय क्षेत्रों में जमा होता है बल्कि लंबी दूरी तक भी फैलता है, जिससे एक क्षेत्रीय प्रदूषक उत्पन्न होता है
- रिपोर्ट के अनुसार, कणीय प्रदूषण कम होने के साथ-साथ नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) एवं पृष्ठीय ओजोन (ग्राउंड-लेवल ओजोन) की समस्याएँ बढ़ती हैं।
- अपर्याप्त निगरानी, सीमित डाटा और अप्रभावी प्रवृत्ति विश्लेषण विधियों से इस बढ़ते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम को समझने में बाधा उत्पन्न होती है।
- देश में प्रदूषण से निपटने को लेकर अधिकांश नीतियां और आम लोगों का ध्यान विशेषकर पर पीएम 2.5 जैसे अन्य प्रदूषकों पर रहा है।
ओज़ोन प्रदूषण
- धरातल पर पाई जाने वाली ओज़ोन या पृष्ठीय ओज़ोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है, जिसका लोगों के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- यह सीधे हवा में उत्सर्जित नहीं होता है, बल्कि इसका निर्माण नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NOx) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOC) के बीच रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा होता है।
- ऐसा तब होता है जब कारों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियों, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषक सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक रूप से अभिक्रिया करते हैं।
- हालाँकि, स्ट्रैटोस्फेरिक ओजोन (समताप मंडलीय ओजोन) की तुलना में पृष्ठीय ओजोन कम केंद्रित होता है किंतु स्वास्थ्य आदि पर इसका प्रभाव इसे ‘बैड ओजोन’ बनाते हैं।
- धरातलीय ओजोन की सांद्रता आम तौर पर गर्मी की अवधि में कम आर्द्रता वाले दिनों में सर्वाधिक होती है जब हवा हल्की या स्थिर होती है।
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ओज़ोन प्रदूषण के प्रभाव
- यह सांस संबंधी समस्याओं, अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज से जूझ रहे मरीजों को विशेष रूप से प्रभावित करता है।
- ओजोन की वजह से फेफड़े संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। साथ ही, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याएं बढ़ सकती है।
- स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ओजोन प्रदूषण से संबद्ध मृत्यु दर सर्वाधिक है।
- वर्ष 2010 से 2017 के बीच भारत में ओजोन के मौसमी आठ घंटे के दैनिक अधिकतम स्तर में सबसे अधिक करीब 17% की वृद्धि दर्ज की गई है।
ओज़ोन प्रदूषण के लिए सुझाव
- ओजोन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उद्योगों, वाहनों, घरों व खुले में जलने से होने वाले जहरीले उत्सर्जन को रोकने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है।
- इससे निपटने के लिए ओजोन स्तर पर अधिक बारीकी से नजर रखने के साथ-साथ इसे ट्रैक करने के लिए बेहतर तरीकों की आवश्यकता है।
- इसकी प्रवृत्ति का विश्लेषण करने की विधियों में भी सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
ओजोन के बारे में
- ओजोन (O3) एक रंगहीन गैस है, जो ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनी होती है। ओज़ोन पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल एवं धरातल दोनों में पाई जाती है।
- ओजोन को दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है :
- समताप मंडलीय ओजोन
- पृष्ठीय ओजोन
- समताप मंडलीय ओजोन : यह ऊपरी वायुमंडल में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है, जहाँ यह एक सुरक्षात्मक परत बनाती है जो सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
- यह वायुमंडल में पृथ्वी की सतह से 6-30 मील ऊपर निर्मित होती है, जब सूर्य के तीव्र प्रकाश के कारण ऑक्सीजन के अणु (O2) टूट जाते हैं और ओजोन अणु (O3) के रूप में फिर से बन जाते हैं। आमतौर पर इसे गुड ओजोन कहा जाता है।
- यह लाभदायक ओजोन मानव निर्मित रसायनों और अन्य कारणों से आंशिक रूप से नष्ट हो जाती है, जिसे ‘ओजोन छिद्र’ कहा जाता है।
- पृष्ठीय ओज़ोन : पृष्ठीय ओज़ोन एक हानिकारक वायु प्रदूषक है क्योंकि इसका व्यक्तियों पर व पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और यह ‘धुंध’ (Fog) का मुख्य घटक है। इसका निर्माण पृथ्वी की सतह के ठीक ऊपर (स्थल से लगभग 2 मील ऊपर) होता है।
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