प्रशांत द्वीपसमूह मंच (Pacific Islands Forum) का वार्षिक शिखर सम्मेलन टोंगा की राजधानी नुकुआलोफा (Nuku'alofa) में आयोजित किया गया।
शिखर सम्मलेन में शामिल महत्वपूर्ण मुद्दे
- जलवायु परिवर्तन एवं आर्थिक चुनौतियां
- आपदा लचीलापन के लिए धन की मांग
- न्यू कैलेडोनिया अशांति से संबंधित मुद्दा
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता
- एसोसिएट सदस्यता का दर्जा चाहने वाले अमेरिकी क्षेत्र
प्रशांत द्वीपसमूह मंच के बारे में
- परिचय : यह प्रशांत क्षेत्र का शीर्ष राजनीतिक एवं आर्थिक संगठन है। इसका उद्देश्य इस क्षेत्र को महत्वपूर्ण मुद्दों एवं चुनौतियों से निपटने के लिए एक साथ लाना तथा साझा लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग व सहकारिता को बढ़ावा देना है।
- स्थापना : इसकी स्थापना वर्ष 1971 में दक्षिण प्रशांत मंच (SPF) के रूप में की गई थी किंतु वर्ष 1999 में इस मंच को अधिक समावेशी बनाने के लिए इसका नाम ‘प्रशांत द्वीपसमूह मंच’ कर दिया गया।
- सदस्यता : इस मंच में 18 सदस्य देश शामिल हैं : ऑस्ट्रेलिया, कुक आइलैंड्स, फिजी, फ्रेंच पोलिनेशिया, किरिबाती, मार्शल द्वीपसमूह, माइक्रोनेशिया, नाउरू (नौरू), न्यू कैलेडोनिया, न्यूज़ीलैंड, नियू, पलाउ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन द्वीप, टोंगा, तुवालू, वानुअतु।
- दृष्टिकोण : इसका उद्देश्य शांति, सद्भाव, सुरक्षा, सामाजिक समावेश एवं समृद्धि से युक्त एक लचीले प्रशांत क्षेत्र का निर्माण करना है।
प्रशांत द्वीपसमूह मंच का लक्ष्य
- जलवायु परिवर्तन एवं आपदाओं के प्रभावों के प्रति लचीलापन
- मजबूत स्वामित्व के माध्यम से क्षेत्र की आर्थिक विकास आकांक्षाओं को गति प्रदान करना
- प्रशांत क्षेत्र के विकास के लिए बेहतर कनेक्टिविटी एवं प्रौद्योगिकी तक पहुँच
- शांतिपूर्ण, सुरक्षित एवं संरक्षित प्रशांत क्षेत्र का निर्माण
- जन केंद्रित विकास को बढ़ावा देना
- लैंगिक समानता एवं सामाजिक समावेशन
- क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना
प्रशांत द्वीपसमूह मंच के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
- जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि से बहुत से छोटे देशों के अस्तित्व पर संकट
- आर्थिक विकास संबंधी चुनौतियाँ
- आपदाओं की बारंबारता
- प्रवाल विरंजन की समस्या
- समुद्र में बढ़ते तापमान से मत्स्य उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव
- प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता
अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, समुद्र का तापमान, अम्लता एवं जलस्तर औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहा है, जिससे प्रशांत द्वीपसमूहों को खतरा है।
- रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र का जलस्तर बढ़ने का सबसे बुरा प्रभाव दक्षिण-पश्चिम प्रशांत क्षेत्र पर पड़ा है। कुछ स्थानों पर यह विगत 30 वर्षों में वैश्विक औसत से दोगुना से भी अधिक है।