(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - पहाड़ी जातीय समुदाय, कोली, गद्दा ब्राह्मण, अनुसूचित जनजाति)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2 - केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)
संदर्भ
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय से प्राप्त प्रस्ताव की जांच के बाद, पहाड़ी जातीय समूह को जम्मू और कश्मीर में अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की अनुमति प्रदान की है।
- आयोग ने पद्दारी जनजाति तथा "कोली" और "गद्दा ब्राह्मण" समुदायों को भी जम्मू और कश्मीर की एसटी सूची में शामिल करने का सुझाव दिया।
- इस प्रस्ताव को अंतिम निर्णय के लिए कैबिनेट के पास भेजा जाएगा, कैबिनेट की अनुमति मिलने के बाद, ये समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल हो जायेंगे।
- न्यायमूर्ति जीडी शर्मा आयोग ने पहाड़ी जातीय समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति दर्जे की सिफारिश की थी।
पहाड़ी जातीय समुदाय
- पहाड़ी समुदाय जम्मू और कश्मीर, में निवास करने वाले विभिन्न समुदायों के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक व्यापक शब्द है, जिसमें विभिन्न जातियों तथा समुदायों के लोग शामिल है।
- जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी जातीय समूह की जनसंख्या लगभग 6 लाख है, इनमें से लगभग 55% हिंदू और 45% मुस्लिम है।
- यह समुदाय मुख्य रूप से राजौरी, हंदवाड़ा, पुंछ और बारामूला में निवास करता है।
- जम्मू-कश्मीर सरकार ने, 1989 में पहाड़ी भाषी लोगों के विकास और कल्याण के लिए एक सलाहकार बोर्ड की स्थापना की थी।
अनुसूचित जनजाति
- संविधान अनुसूचित जनजाति की मान्यता के मापदंडो का उल्लेख नहीं करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 366(25) के अनुसार अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदाय से है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
- अनुच्छेद 342(1) के अनुसार राष्ट्रपति किसी राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश के मामले में वहां के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद किसी जनजाति या जनजातीय समूह को या उसके किसी हिस्से को उस राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश के मामले में अनुसूचित जनजाति के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगा।
- अनुसूचित जनजाति की मान्यता राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश विशिष्ट होती है। मतलब अनुसूचित जनजाति की सूची प्रत्येक राज्य के लिये अलग-अलग होती है।
- कोई समुदाय जो एक राज्य में अनुसूचित जनजति के रूप में वर्गीकृत है, आवश्यक नहीं है, की वो किसी अन्य राज्य में भी अनुसूचित जनजाति माना जाये।
अनुसूचित जनजाति के मानदंड
- संविधान में किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत करने के लिये कोई मानदंड नहीं बताये गए है।
- आदिम जीवनशैली, सामाजिक और भौगोलिक अलगाव, संकोची स्वाभाव तथा शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन कुछ ऐसे लक्षण है, जो इन्हें अन्य समुदायों से अलग साबित करते है।
अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की प्रकिया
- राज्य सरकार समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरु करती है, और प्रस्ताव को जनजातीय मामलों के मंत्रालय के पास भेजती है, जो इस प्रस्ताव की समीक्षा करता है।
- जनजातीय कार्यों का मंत्रालय इसे अनुमोदन के लिए भारत के महापंजीयक के पास भेज देता है।
- इसके बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की मंजूरी ली जाती है, तथा अंतिम निर्णय के लिए इसे कैबिनेट के पास भेज दिया जाता है।
अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने के लाभ
- सरकार द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए चलायी जा रही मौजूदा योजनाओं का लाभ प्राप्त करने की पात्रता हासिल।
- सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ।
- शिक्षा संस्थाओ में प्रवेश में आरक्षण।
- अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम की तरफ से रियायती ऋण प्राप्त करने की पात्रता।
- सरकार की तरफ से दी जा रही छात्रवृत्तियों का लाभ।
- संविधान का अनुच्छेद 243(घ) पंचायतो में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 330 लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 332 विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।