(प्रारंभिक परीक्षा : सरकारी नीतियों से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - भौगोलिक विशेषताएँ; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 - संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आंकलन से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘पाम तेल’ (palm oil) के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये 11 हजार करोड़ रुपए के समर्थन की घोषणा की।
प्रमुख बिंदु
- कृषि-व्यवसाय उद्योग का मानना है कि इस कदम से पाम तेल के विकास में मदद मिलेगी और इंडोनेशिया व मलेशिया जैसे देशों से पाम तेल के आयात पर देश की निर्भरता में कमी आएगी।
- विदित है कि भारत द्वारा वर्ष 2018 में 18.41 मिलियन टन वनस्पति तेल का आयात किया गया था।
- तिलहन और पाम तेल पर राष्ट्रीय मिशन, सरकार द्वारा ‘वनस्पति तेल उत्पादन’ पर निर्भरता को कम करने के प्रयासों का एक हिस्सा है।
- 1990 के दशक में पीली क्रांति के कारण तिलहन के उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई। हालाँकि विभिन्न तिलहनों, जैसे- मूंगफली, रेपसीड (सरसों की एक प्रजाति) और सरसों तथा सोयाबीन के उत्पादन में हुई लगातार वृद्धि, बढ़ती माँग के अनुरूप नहीं हैं।
- इनमें से अधिकांश तिलहन फसलें गुजरात, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश जैसे वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।
राष्ट्रीय मिशन खाद्य तेल और पाल तेल (NMEO-OP)
- इस मिशन के तहत पाम तेल की खेती के अंतर्गत अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर भूमि को लाने का विचार है।
- साथ ही, इससे वर्ष 2025-26 तक कच्चे पाम तेल का उत्पादन 11.2 लाख टन और वर्ष 2029-30 तक 28 लाख टन तक बढ़ने की उम्मीद है।
- सरकार पाम तेल की कीमतों को विनियमित करने के लिये एक तंत्र विकसित करेगी, इसलिये, यदि बाज़ार में उतार-चढ़ाव होता है तो केंद्र सरकार किसानों को मूल्य के अंतर का भुगतान ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ के माध्यम से करेगी।
- पाम की खेती को बढ़ावा देने के लिये मिशन को शुरू करने की प्रेरणा दक्षिण पूर्व एशियाई देश; इंडोनेशिया तथा मलेशिया की सफलता से प्रेरित है।
- इंडोनेशिया पिछले दशक में एक महत्त्वपूर्ण पाम तेल उत्पादक के रूप में उभरा और यह मलेशिया से आगे निकल गया है। उल्लेखनीय है कि दोनों देश पाम तेल के वैश्विक उत्पादन का 80 प्रतिशत उत्पादित करते हैं। वहीं इंडोनेशिया अपने उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक निर्यात करता है।
पाम तेल कृषि का पर्यावरणीय प्रभाव
- पाम तेल की कृषि के संदर्भ में नीतिगत पहलों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने की आवश्यकता है, जो पूर्वोत्तर और अंडमान द्वीप समूह के ग्रामीण और कृषि परिदृश्य में संभावित रूप से बदलाव कर सकती हैं।
- ताड़ के तेल की खेती के विनाशकारी पर्यावरणीय और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में कृषि परिवर्तन पर किये गए अध्ययनों से पता चला है कि ताड़ के तेल के बागानों में वृद्धि इस क्षेत्र की घटती जैव विविधता का एक प्रमुख कारण है।
- इंडोनेशिया को मुख्य रूप से वर्ष 2020 में ताड़ के तेल के वृक्षारोपण के लिये 1,15,495 हेक्टेयर वन क्षेत्र का नुकसान हुआ।
- साथ ही, वर्ष 2002-18 के मध्य इंडोनेशिया को अपने प्राथमिक वन क्षेत्र का 91,54,000 हेक्टेयर भूमि का नुकसान हुआ।
- इसने देश की जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के साथ-साथ जल प्रदूषण को भी बढाया है।
- ताड़ के तेल के बागानों ने, सरकारी नीतियों और प्रचिलित भूमि अधिकारों के मध्य संघर्ष को जन्म दिया है। गौरतलब है कि ऐसे अधिकार वन-आश्रित समुदायों के लिये आजीविका के प्रमुख स्रोत हैं।
- ताड़ के पेड़ों को उगाने के लिये पेड़ों के आवरण को साफ करने और जंगलों को काटने की अनुमति देने वाले कानून ने मलेशिया और इंडोनेशिया में सरकारी अधिकारियों, स्थानीय लोगों और कृषि-व्यापार समूहों के मध्य भूमि संबंधी झगड़ों को बढ़ा दिया है।
पूर्वोत्तर भारत पर प्रभाव
- पूर्वोत्तर राज्य राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं और पाम तेल की पहल से वहाँ तनाव उत्पन्न हो सकता है। इस तरह की पहल, सामुदायिक आत्मनिर्भरता की धारणा के विरुद्ध भी हैं।
- ऐसी फसल के लिये प्रारंभिक राज्य समर्थन के परिणामस्वरूप मौजूदा फसल पैटर्न में एक बड़ा और त्वरित बदलाव होता है, जो हमेशा कृषि-पारिस्थितिक स्थितियों और खाद्य क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होता है।
- कृषि नीतियों के प्रभाव को समझने के लिये वर्ष 2020 में एक अध्ययन के दौरान यह स्पष्ट हुआ है कि ताड़ की खेती के लिये वन भूमि का उपयोग करने हेतु अरुणाचल सरकार ने अपनी नीतियों में बदलाव किया है।
- इस नीति ने वन क्षेत्र को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, क्योंकि सरकारी प्रोत्साहन प्राप्त होने के कारण किसान चावल और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों से ताड़ के तेल की कृषि की तरफ बढ़ रहे हैं। यद्यपि पूर्वोत्तर के लोग पाम तेल का प्रयोग खाना पकाने या किसी अन्य उद्देश्य के लिये नहीं करते हैं।
- वस्तुतः इस तेल का इस्तेमाल उद्योगों द्वारा डिब्बाबंद भोजन व दवाओं, डिटर्जेंट एवं सौंदर्य प्रसाधनों के लिये किया जा रहा है।
- पूर्वोत्तर भारत, लगभग 850 पक्षी प्रजातियों के आवास स्थल के साथ खट्टे फल, औषधीय और दुर्लभ पौधों तथा जड़ी-बूटियों को आश्रय देता है; इन सबसे ऊपर यहाँ 51 प्रकार के वन पाए जाते हैं। पाम तेल नीति इस क्षेत्र की समृद्धि को नष्ट कर सकती है।
पाम तेल कृषि के किसानों पर प्रभाव
- मलेशिया में पाम तेल की खेती का गरीबी उन्मूलन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिससे छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
- हालाँकि अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि वैश्विक पाम तेल की कीमतों में बदलाव के मामले में, इसकी खेती पर निर्भर परिवार कमजोर हो जाते हैं।
- इसके अतिरिक्त, यह स्थानीय समुदायों को कमजोर बनाती है और उन्हें बाहरी कारकों के संपर्क में लाती है।
खतरों पर विभिन्न देशों के कदम
- पर्यावरण और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिये इंडोनेशिया और श्रीलंका ने पहले ही ताड़ के पेड़ लगाने पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है।
- वर्ष 2018 में, इंडोनेशियाई सरकार ताड़ के तेल के उत्पादन के लिये नए लाइसेंस पर तीन साल की मोहलत लेकर आई।
- हाल ही में श्रीलंका सरकार ने पाम ऑयल प्लांट को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आदेश दिया है।
निष्कर्ष
- भारत में पाम तेल की कृषि के पर्यावरणीय और राजनीतिक परिणामों से इंकार नहीं किया जा सकता है। परिवारों द्वारा दैनिक उपभोग के लिये पारंपरिक तिलहनों का उपयोग किये जाने के बावजूद कई राज्य सरकारों ने पाम तेल के उत्पादन को प्रोत्साहित करना प्रारंभ कर दिया है।
- इससे पाम तेल पर ध्यान बढ़ने के परिणामस्वरूप किसानों का परंपरागत तिलहनों से ध्यान हटेगा।
- पूर्वोत्तर भारत में संभावित खतरनाक प्रभावों के अलावा, इस तरह के रुझान लंबे समय में देश के अन्य हिस्सों में किसानों की आय, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।