(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राजव्यवस्था- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)
संदर्भ
- हाल ही में, ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) ने सभी राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों के मुख्य सचिवों को महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों के संदर्भ में दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के चलते भारत में कई बच्चे अनाथ और सुभेद्य हो गए हैं। सोशल मीडिया ऐसे कई बच्चों को गोद लेने के अनुरोधों से भरा पड़ा है। कुछ गैर-सरकारी संगठन (NGOs) भी ऐसे बच्चों की मदद के लिये आगे आए हैं।
- निश्चित ही, अनाथ बच्चों को गोद लेना एक बेहतरीन कदम है, लेकिन किसी अनाथ बच्चे को किसी एजेंसी, परिवार या व्यक्ति को सौंपने से पहले, अनाथ बच्चों की सुरक्षा व देखभाल संबंधी कानूनों और प्रक्रियाओं की समीक्षा कर लेनी चाहिये।
सहायता के कई विकल्प
- पहला विकल्प है– टोल फ्री नंबर पर कॉल करना। दरअसल, कोई भी ऐसा व्यक्ति, जिसे कहीं कोई अनाथ बच्चा मिलता है या कोई ऐसा बच्चा, जिसे किसी भी परिस्थिति में देखभाल व सुरक्षा की आवश्यकता होती है, तुरंत टोल फ्री चाइल्डलाइन नंबर ‘1098’ पर कॉल कर सकता है।
- यह पूरे देश में दिन भर संचालित होने वाली एक आपातकालीन फोन आउटरीच सेवा है। इसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की नोडल एजेंसी ‘चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
- बच्चे की अवस्थिति का पता लगने के बाद चाइल्डलाइन इकाइयाँ यथाशीघ्र बच्चे का कार्यभार संभालती हैं। वस्तुतः ये चाइल्डलाइन इकाइयाँ सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नागरिक समाज संगठन (Civil Society Organisations) होती हैं।
- दूसरा विकल्प है– संबंधित ‘ज़िला सुरक्षा अधिकारी’ को सूचित करना। इस अधिकारी से संपर्क करने के लिये ‘नेशनल ट्रैकिंग सिस्टम फॉर मिसिंग एंड वल्नरेबल चिल्ड्रेन’ (National Tracking System for Missing and Vulnerable Children – TrackCHILD) पोर्टल की मदद ली जा सकती है। ‘ट्रैकचाइल्ड पोर्टल’ भारत सरकार के ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
- तीसरा विकल्प है– निकटतम पुलिस स्टेशन या उसके ‘बाल कल्याण पुलिस अधिकारी’ से संपर्क करना। यह अधिकारी किशोर अपराधों से निपटने या पीड़ितों की सहायता करने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित होता है।
- चौथा विकल्प है– ‘इमरजेंसी रिस्पांस सपोर्ट सिस्टम’ (ERSS) पर संपर्क करना। यह अखिल भारतीय स्तर पर संचालित होने वाली एक आपातकालीन अनुक्रिया प्रणाली है। कोई भी व्यक्ति बच्चों की सहायता के लिये इसके द्वारा जारी एकल नंबर ‘112’ पर कॉल कर सकता है।
- गौरतलब है कि ऐसे बच्चों के संदर्भ में रिपोर्ट न करना भी ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015’ (JJA) के तहत एक दंडनीय अपराध है।
स्थापित प्रक्रिया
- आउटरीच एजेंसी द्वारा किसी अनाथ बच्चे को बरामद करने के बाद, उसका कर्तव्य होगा कि वह 24 घंटे के भीतर ज़िले की ‘बाल कल्याण समिति’ (CWC) के समक्ष बच्चे को प्रस्तुत करे।
- सी.डब्ल्यू.सी. अपनी जाँच के बाद यह तय करती है कि बच्चे को उसके घर भेजना है या एक उचित सुविधा केंद्र में। यदि बच्चे की उम्र छः वर्ष से कम है, तो उसे एक ‘विशेषीकृत दत्तक ग्रहण एजेंसी’ में रखा जाता है।
- राज्य ऐसे सभी बच्चों की देखभाल करता है, जिन्हें 18 वर्ष की आयु तक देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है। ‘संपूर्ण बेहरुआ बनाम भारत संघ वाद, 2018’ में उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों को निर्देश दिया था कि वे अपने राज्यक्षेत्र में उपस्थित प्रत्येक ‘बाल देखरेख संस्थान’ का पंजीकरण सुनिश्चित करें।
- इस प्रकार, कोई भी स्वैच्छिक या गैर-सरकारी संगठन जे.जे.ए. के तहत पंजीकरण कराए बिना, ऐसे बच्चों को नहीं रख सकता है, जिन्हें देखरेख व सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
- सी.डब्ल्यू.सी. द्वारा किसी बच्चे को गोद लेने की कानूनी अनुमति प्रदान किये जाने के पश्चात् भारतीय या अनिवासी भारतीय या विदेशी दत्तक माता-पिता बच्चे को गोद ले सकते हैं।
- जे.जे.ए. की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह अधिनियम पंथनिरपेक्ष और सरल प्रक्रिया से परिपूर्ण है, जबकि ‘हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956’ धर्म-केंद्रित होने के साथ-साथ प्रक्रियागत रूप से जटिल है।
- जे.जे.ए. अधिनियम का एक अन्य सबल पक्ष यह है कि इसके तहत गोद लेने की प्रक्रिया पूर्णतः पारदर्शी है तथा इससे संबंधित प्रगति की निगरानी एक सांविधिक निकाय ‘केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण’ (Central Adoption Resource Authority – CARA) के पोर्टल से की जा सकती है।
न्यायपालिका द्वारा पुलिस को दिये गए निर्देश
- यदि कोई व्यक्ति किसी अनाथ बच्चे को बिना किसी वैध अधिकार के अपने पास रखता है, तो वह स्वयं को संकट में डाल सकता है।
- हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 (Hindu Minority and Guardianship Act, 1956) के अनुसार, पिता तथा उसकी अनुपस्थिति में माता, बच्चे की स्वाभाविक संरक्षक होती है। कोई करीबी रिश्तेदार भी बिना अनुमति के बच्चे की देखभाल नहीं कर सकता है।
- ‘बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ वाद, 2013’ में उच्चतम न्यायालय ने सभी पुलिस महानिदेशकों को निर्देश दिया था कि वे गुमशुदा बच्चे के प्रत्येक मामले में तस्करी या अपहरण की प्राथमिकी दर्ज करें।
- प्रत्येक पुलिस स्टेशन में कम से कम एक पुलिस अधिकारी, जो सहायक उपनिरीक्षक के पद से नीचे का न हो, अनिवार्य रूप से बच्चों की देखरेख व सुरक्षा संबंधी कानूनों के लिये प्रशिक्षित हो। ऐसे अधिकारियों का स्वाभाव बच्चों के अनुकूल होना चाहिये। इन्हें बिना वर्दी के रहने की अनुमति भी होती है।
- इसके अलावा, प्रत्येक जिले में एक ‘विशेष किशोर पुलिस इकाई’ होनी चाहिये। इसका नेतृत्व एक ऐसे अधिकारी द्वारा किया जाना चाहिये, जो पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे का न हो।
- उच्चतम न्यायालय ने ‘राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद’ और प्रत्येक राज्यों की पुलिस प्रशिक्षण अकादमियों को ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015’ पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार करने तथा पुलिस अधिकारियों को इन मुद्दों के प्रति संवेदनशील रहने का निर्देश दिया है।
निष्कर्ष
- ‘बच्चे’ राष्ट्र की एक महत्त्वपूर्ण संपत्ति होते हैं। किसी राष्ट्र का भविष्य बच्चों के विकास व समृद्धि पर निर्भर करता है। बच्चे गोद लेने का प्राथमिक उद्देश्य उनका कल्याण सुनिश्चित करना और उनके परिवार आधारित अधिकार बहाल करना होता है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 ‘कम उम्र बच्चों के किसी भी प्रकार दुरुपयोग को प्रतिबंधित’ करता है।
- कहा जा सकता है कि कोविड-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये ताकि उन्हें अनिश्चित भविष्य का सामना न करना पड़े। जे.जे.ए. के तहत जिन अधिकारियों को बच्चों की देखरेख की ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं, उन्हें उनका ईमानदारीपूर्वक निर्वहन करना चाहिये।