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संसदीय समितियाँ और नीति निर्माण में उनकी भूमिका 

(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

संदर्भ 

हाल ही में, संसद की 22 स्थायी समितियों में परिवर्तन किया गया, जो सरकार और विपक्षी दलों के बीच गतिरोध का कारण बन गया है। इन समितियों में से सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के पास केवल एक समिति की अध्यक्षता है और दूसरे सबसे बड़े विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस के पास किसी भी समिति की अध्यक्षता नहीं है। वहीं दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ भाजपा के पास गृह, वित्त, आई.टी., रक्षा और विदेश मामलों की समितियों की अध्यक्षता है।

संसदीय समितियाँ

  • संसदीय समिति सांसदों का एक समूह है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है अथवा लोक सभा अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
  • यह समिति लोक सभा अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती है और अपना प्रतिवेदन सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है।
  • संसदीय समितियों की उत्पत्ति ब्रिटिश संसद से हुई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 (सांसदों के विशेषाधिकारों से संबंधित) तथा अनुच्छेद 118 (संसद को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार) से संसदीय समितियाँ अपने अधिकार प्राप्त करती है।

संसद की विभिन्न समितियाँ

संसदीय समितियाँ स्थायी एवं तदर्थ में विभाजित है। स्थायी समितियाँ स्थाई प्रकृति की होती है जो निरंतरता के आधार पर कार्य करती है। इनका गठन प्रायः प्रत्येक वर्ष किया जाता है। जबकि तदर्थ समितियाँ अस्थाई प्रकृति की होती है जिसे किसी विशेष उद्देश्य से गठित किया जाता है। 

स्थाई समितियाँ

  • वित्तीय समितियाँ 

वित्तीय समितियों में प्राक्कलन समिति, लोक लेखा समिति और सार्वजनिक उपक्रम समिति शामिल हैं। इनका विस्तृत विवरण इस प्रकार है-

क्रम

समितियां

सदस्य

समयावधि

1.

प्राक्‍कलन समिति

30 सदस्य (लोक सभा)

1 वर्ष

2.

लोक लेखा समिति

22 सदस्य (15 लोक सभा+7 राज्‍य सभा)

1 वर्ष

3.

सार्वजानिक उपक्रम समिति

22 सदस्य (15 लोक सभा+7 राज्‍य सभा)

1 वर्ष

  • विभागीय रूप से संबंधित स्थायी समितियाँ 
    • विभागीय रूप से संबंधित स्थायी समितियों का गठन वर्ष 1993 में किया गया। इनका उद्देश्य बजटीय प्रस्तावों और महत्त्वपूर्ण सरकारी नीतियों की जाँच करना है।  
    • वर्तमान में इन समितियों की संख्या 24 है, जिसमें से 16 समितियाँ लोक सभा एवं 8 समितियाँ राज्य सभा के अंतर्गत कार्य करती हैं। 
    • प्रत्येक विभागीय समिति में 31 सदस्य शामिल होते हैं जिसमें से 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा से होते हैं। लोकसभा और राज्यसभा पैनल की अध्यक्षता इन संबंधित सदनों के सदस्य करते हैं। 
    • प्रत्येक सदन का पीठासीन अधिकारी इन पैनल में सदस्यों को नामित करता है। इन समितियों कोई मंत्री सदस्य नहीं बन सकता हैं। 
    • पीठासीन अधिकारी किसी मामले को संसदीय समिति के पास भेजने के लिये अपने विवेक का उपयोग करते हैं, लेकिन यह आमतौर पर सदन में दलों के नेताओं के परामर्श से किया जाता है। 

तदर्थ समितियाँ 

  • किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिये गठित की जाने वाली समितियों को तदर्थ समितियाँ कहा जाता है। ये समितियाँ सौंपे गए कार्य को पूरा करने और सदन को इसकी रिपोर्ट सौंपने के पश्चात् विघटित हो जाती है। प्रमुख तदर्थ समितियों में प्रवर और संयुक्त समितियाँ शामिल हैं। 
  • इन समितियों की अध्यक्षता प्रायः सत्तारूढ़ दल के सांसद करते हैं। ये अपनी रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत करने के पश्चात् भंग कर दिये जाते हैं। 

संसदीय समितियों के कार्य 

तर्कपूर्ण विचार-विमर्श

  • संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया जटिल होती है जबकि संसद के पास विधेयक पर विस्तृत चर्चा के लिये समय सीमित होता है। अतः ये समितियाँ विधेयकों पर पर्याप्त विचार-विमर्श हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।   
  • राजनीतिक ध्रुवीकरण के कारण संसद में विद्वेषपूर्ण और अनिर्णायक बहस में वृद्धि हो रही है फलतः विधायी कार्यों में संसदीय समितियों की भूमिका बढ़ जाती है। 

जाँच एवं सुझाव 

  • समितियाँ मंत्रालयों/विभागों की अनुदान मांगों, विधेयकों, वार्षिक रिपोर्टों एवं दीर्घकालिक योजनाओं पर विचार करती हैं और संसद को रिपोर्ट प्रस्तुत करती हैं। 
  • इन समितियों की रिपोर्ट सिफारिशों के रूप में प्रस्तुत की जाती है तथा ये सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती है। लेकिन ये समितियाँ सरकार के कार्यों पर महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभाव डालती हैं। 
  • ये समितियाँ अपने संबंधित मंत्रालयों में नीतिगत मुद्दों की जाँच करती हैं और सरकार को आवश्यक सुझाव देती हैं। सरकार को इस पर वापस सूचित करना होता है कि क्या इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है। 

संसदीय समितियों की शक्तियां 

  • समितियों के अध्यक्ष अपनी बैठकें निर्धारित करने तथा एजेंडा व वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही, वे समिति के कुशल प्रबंधन के हित में निर्णय ले सकते हैं। ये तय करते हैं कि पैनल के समक्ष उपस्थिति के लिये किसे बुलाया जाए।  
  • संसदीय समिति के समक्ष उपस्थिति न्यायालय के समन के समान है और यदि कोई अनुपस्थित रहता है तो इसका कारण बताना होगा, जिसे पैनल स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। हालाँकि, अध्यक्ष को गवाहों को बुलाने के लिये सदस्यों के बहुमत का समर्थन प्राप्त होना चाहिये।

समितियों में चर्चा संसद की चर्चाओं से भिन्न 

  • संसद में किसी विधेयक पर बोलने का समय सदन में राजनीतिक दल के आकार के अनुसार आवंटित किया जाता है। प्रायः सांसदों को संसद में अपने विचार रखने के लिये पर्याप्त समय नहीं मिलता है, भले ही वे संबंधित विषय के विशेषज्ञ हों। 
  • समितियाँ छोटे समूह होते हैं तथा इनकी बैठकों में प्रत्येक सांसद को चर्चा में योगदान देने का अवसर और समय मिलता है। संसद में एक वर्ष में लगभग 100 बैठकें ही होती हैं जबकि समिति की बैठकें संसद के कैलेंडर से स्वतंत्र होती हैं। 
  • समितियों में चर्चा गोपनीय और ऑफ-कैमरा होती है जिससे दल संबद्धता आमतौर पर सांसदों द्वारा अपने मन की बात कहने में रुकावट पैदा नहीं करती है। जबकि वे संसद में ऐसा करने में असमर्थ होते हैं क्योंकि यहाँ कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाता है।  
  • समितियाँ कई मंत्रालयों के साथ मिलकर कार्य करती हैं तथा अंतर-मंत्रालयी समन्वय की सुविधा प्रदान करती हैं। समितियों में भेजे गए विधेयक महत्त्वपूर्ण सुधारों के साथ सदन में वापस आते हैं।
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