(प्रारम्भिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 2 और 3 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय। और समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।) |
संदर्भ
हाल ही में रिजर्व बैंक के कार्यकारी निदेशक ने कहा है कि महिलाओं के बीच श्रम बल में कम भागीदारी वित्तीय समावेशन प्रयासों और व्यापक आर्थिक विकास में बाधा है।
श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी वर्तमान स्थिति
- आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, 2022 के वैश्विक औसत 47.8% के मुकाबले भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (FLFPR) 37% है।
- हालाँकि यह वर्ष 2017-18 में 23.3% से बढ़ा है, लेकिन इसका 37.5% हिस्सा “घरेलू उद्यमों में अवैतनिक सहायक” के रूप में नियोजित है। इन महिलाओं को उनके द्वारा किए जाने वाले काम के लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता है।
- गौरतलब है कि वर्ष 1955 में महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (FLFPR) 24.1 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जो वर्ष 1972 में बढ़कर 33 प्रतिशत हो गई।
- वर्ष 1972 के बाद FLFPR लगातार कमी देखी गई और वर्ष 2017 में अपने सबसे निचले स्तर 23.3% प्रतिशत पर आ गई थी।
भारत में महिलाओं की कम आर्थिक भागीदारी के कारण
- शैक्षणिक असमानताएँ : विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पुरुष साक्षरता दर 84.7% के मुकाबले महिलाओं की साक्षरता दर बढ़कर 77% है।
- वस्तुतः निम्न शैक्षिक स्तर महिलाओं की बेहतर नौकरी के अवसरों तक पहुँच को सीमित करता है।
- सांस्कृतिक मानदंड और सामाजिक बाधाएँ : गहरे सांस्कृतिक मानदंड और सामाजिक अपेक्षाएँ अक्सर महिलाओं की भूमिकाओं को घरेलू जिम्मेदारियों तक सीमित कर देती हैं।
- विश्व बैंक की वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक मानदंड महिलाओं को कार्यबल में भाग लेने से हतोत्साहित करते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- सुरक्षित और किफायती चाइल्डकेयर की कमी : किफायती चाइल्डकेयर सुविधाओं की अनुपस्थिति महिलाओं की काम करने की क्षमता को प्रभावित करती है।
- मैकिन्से द्वारा वर्ष 2021 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि कामकाजी माताओं के लिए सहायक नीतियों एवं व्यवस्थाओं की कमी महिलाओं की श्रम शक्ति में कम भागीदारी के लिए जिम्मेदार कारकों में से एक है।
- वेतन में लैंगिक असमानता : भारत में महिलाओं को परुषों की तुलना में भारी वेतन असमानता का सामना करना पड़ता है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, वर्ष 2022 में भारतीय महिलाएँ समान काम के लिए पुरुषों की तुलना में लगभग 30% कम कमाती थीं।
- तुलनात्मक रूप से कम वेतन कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित करने वाला एक प्रमुख कारक है।
- रोजगार की गुणवत्ता और सीमित अवसर : महिलाओं का रोज़गार अक्सर कम वेतन वाली, अनौपचारिक क्षेत्र की नौकरियों में केंद्रित होता है, जिसमें करियर में उन्नति भी एक सीमा अधिक नहीं हो पाती है।
- कार्यस्थल भेदभाव और उत्पीड़न : भेदभाव और सुरक्षित कार्य वातावरण की कमी कम भागीदारी दर का एक प्रमुख कारण है।
- भारत में 80% कामकाजी महिलाओं को अपने करियर के दौरान कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
- ग्लास सीलिंग प्रभाव : यह उन अदृश्य बाधाओं को संदर्भित करता है जो महिलाओं को उनके करियर में शीर्ष स्थान तक पहुंचने से रोकती हैं।
प्रभाव
- जीडीपी : मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, श्रम बल भागीदारी और उत्पादकता में लैंगिक अंतर को कम करने से वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में $700 बिलियन की वृद्धि हो सकती है, जिससे देश की वार्षिक जीडीपी वृद्धि 1.4 प्रतिशत अंकों तक बढ़ जाएगी।
- आर्थिक उत्पादकता : भारत की निम्न महिला श्रम बल भागीदारी दर मानव पूंजी के अकुशल उपयोग को दर्शाती है, जिससे समग्र आर्थिक उत्पादकता प्रभावित होती है।
- आय असमानता : लैंगिक वेतन अंतर और कम भागीदारी दर पुरुषों और महिलाओं के बीच आय में असमानता को बढाती है, जिससे समग्र आर्थिक समानता प्रभावित होती है।
- उपभोक्ता व्यय : घरेलू व्यय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा महिलाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। लैंगिक आय समानता से उपभोग दर में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
सरकार द्वारा किए जा रहे कुछ प्रयास
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY- 2015) : यह योजना महिला उद्यमियों को उनके छोटे व्यवसायों को शुरू करने या विस्तार करने में मदद करने के लिए सूक्ष्म-वित्तपोषण प्रदान करती है।
- स्टैंड अप इंडिया योजना (2016) : यह कार्यक्रम SC/ST समुदायों की महिला उद्यमियों को ग्रीनफील्ड उद्यम स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता और ऋण प्रदान करता है।
- महिला उद्यमिता मंच (WEP- 2018) : नीति आयोग द्वारा शुरू किया गया यह मंच महिला उद्यमियों के लिए एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करता है।
- इसमें महिलाओं को सलाह, नेटवर्किंग के अवसर और उनके व्यावसायिक उपक्रमों का समर्थन करने के लिए संसाधन प्रदान करना शामिल है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (Mahatma Gandhi NREGA) : यह अधिनियम ग्रामीण परिवारों को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी देता है, जिसमें लाभ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा महिलाओं तक पहुँचता है।
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना : मुख्य रूप से लड़कियों के कल्याण और शिक्षा में सुधार पर ध्यान केंद्रित करते हुए, यह योजना अप्रत्यक्ष रूप से अधिक शैक्षिक प्राप्ति और कौशल विकास को बढ़ावा देकर महिलाओं की आर्थिक भागीदारी का समर्थन करती है।
- सुकन्या समृद्धि योजना : इस योजना को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत ही शुरू किया था। यह बालिकाओं की शिक्षा और कल्याण के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान करती है, शिक्षा और कौशल विकास तक पहुँच सुनिश्चित करके दीर्घकालिक आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देती है।
- कौशल विकास कार्यक्रम : दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY) और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के तहत विभिन्न कार्यक्रम महिलाओं को उनकी रोजगार क्षमता व आर्थिक भागीदारी में सुधार करने के लिए उनके अनुरूप प्रशिक्षण एवं कौशल विकास प्रदान करते हैं।
- विशाखा दिशा-निर्देश : विशाखा दिशा-निर्देश यौन उत्पीड़न के मामलों में भारत में उपयोग के लिए प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देशों का एक सेट है, जिसे कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने के लिए वर्ष 1997 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रख्यापित किया गया था।
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के माध्यम से इन दिशा-निर्देशों को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है।
आगे की राह
- वित्त तक पहुँच का विस्तार : ऋण आवेदन प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, कम ब्याज दरों की पेशकश करके महिलाओं को व्यवसायों को प्रबंधित करने तथा बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- इसके अलावा, वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम के माध्यम से भी महिलाओं के लिए ऋण तक पहुँच में सुधार किया जा सकता है।
- कौशल विकास और प्रशिक्षण : डिजिटल कौशल और उद्यमिता प्रशिक्षण सहित बाजार की वर्तमान जरूरतों के अनुरूप व्यावसायिक प्रशिक्षण व शिक्षा कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, ताकि महिलाओं को विविध आर्थिक अवसरों के लिए बेहतर ढंग से तैयार किया जा सके।
- लिंग-संवेदनशील नीतियों पर बल : कार्यस्थल में लिंग-विशिष्ट बाधाओं, जैसे समान वेतन, मातृत्व लाभ और सुरक्षित कार्य स्थितियों को संबोधित करने वाली नीतियों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि अधिक समावेशी कार्य वातावरण बनाया जा सके।
- महिला उद्यमिता को बढ़ावा : लक्षित सब्सिडी, मेंटरशिप कार्यक्रमों एवं नेटवर्किंग अवसरों के साथ-साथ नौकरशाही बाधाओं को कम करके और इनक्यूबेशन सहायता प्रदान करके महिला उद्यमियों का समर्थन किया जा सकता है।
- मजबूत कानूनी सुरक्षा : कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकारों और भेदभाव व उत्पीड़न से सुरक्षा से संबंधित कानूनों का सुदृढ़ प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग : महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देने वाली पहलों को विकसित करने और लागू करने के लिए सरकार, व्यवसायों और गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।