(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान विकसित देशों ने इंडोनेशिया के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP) की शुरुआत की है।
जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप
- जे.ई.टी.पी. एक महत्वाकांक्षी मंच है, जिसका उद्देश्य जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर इंडोनेशिया के ऊर्जा संक्रमण को तीव्रता प्रदान करने हेतु पर्याप्त वित्तीय संसाधन और तकनीकी सहायता प्रदान करना है।
- इस पार्टनरशिप की शुरुआत जी-20 शिखर सम्मेलन में आयोजित वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी (PGII) कार्यक्रम के तहत की गई है।
- इसके लिये संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के सह-नेतृत्व में कनाडा, डेनमार्क, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नॉर्वे और यूनाइटेड किंगडम ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
जलवायु क्षति के भुगतान हेतु समझौता
- यह समझौता इंडोनेशिया के जलवायु लक्ष्यों का समर्थन करने तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र से धन एकत्रित करने के लिये लागू किया गया है।
- इसके तहत 3 से 5 वर्ष की अवधि में सार्वजनिक और निजी वित्तपोषण से 20 बिलियन डॉलर जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।
- जे.ई.टी.पी. में सार्वजनिक क्षेत्र से 10 बिलियन डॉलर और शुद्ध शून्य के लिये ग्लासगो वित्तीय गठबंधन (Glasgow Financial Alliance for Net Zero : GFANZ) एवं बैंक ऑफ अमेरिका, एच.एस.बी.सी. आदि बैंकों द्वारा 10 बिलियन डॉलर को जुटाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
इंडोनेशिया के जलवायु लक्ष्य और नीतियाँ
- वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा उत्पादन का कम से कम 34% नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन से प्राप्त करना।
- वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन के चरम पर पहुँचना।
- वर्ष 2050 तक ऊर्जा क्षेत्र में शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना।
विकसित देशों का उत्तरदायित्त्व
- वर्तमान में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्तपोषण जैसे विकल्पों पर चर्चा तीव्र हुई है।
- वर्ष 1900 से लेकर वर्तमान तक विकसित देशों ने औद्योगिक विकास से अत्यधिक लाभ को प्राप्त करने के साथ ही हरित गृह गैस (GHG) उत्सर्जन जैसे नकारात्मक परिणामों को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया है।
- हालिया वर्षों में विकासशील देश भी कार्बन उत्सर्जन में योगदान दे रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद इन देशों में जलवायु परिवर्तन के लिये औद्योगिक विकास पर अंकुश लगाना न्यायोचित नहीं माना जा सकता है। गौरतलब है कि विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों ने आर्थिक विकास की शुरुआत अपेक्षाकृत देरी से की है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका और EU-28 वर्ष 1751 से 2017 के मध्य कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 47% के लिये उत्तरदायी हैं। विदित है कि EU-28 में यूरोपीय संघ के 27 देश एवं यूनाइटेड किंगडम शामिल है।
उत्सर्जन के परिणाम
- एक अध्ययन में प्रस्तुत किया गया है कि वर्ष 1990-2014 के मध्य अमेरिका से हुए उत्सर्जन के कारण दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका तथा दक्षिण व दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1-2% का नुकसान हुआ है। इन क्षेत्रों में तापमान परिवर्तन ने श्रम उत्पादकता और कृषि पैदावार को भी प्रभावित किया है।
- हाल ही में प्रकशित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट 2022 के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पेरिस लक्ष्यों से बहुत पीछे रह गया है और तापमान परिवर्तन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक नियंत्रित करने का कोई विश्वसनीय मार्ग उपलब्ध नहीं है।
- वर्तमान में जलवायु आपदा से बचने के लिये विश्व को कार्बन उत्सर्जन में 45% की कटौती करना आवश्यक है।
भारत के कार्बन उत्सर्जन की स्थिति
- उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट 2022 में भारत को विश्व के शीर्ष सात उत्सर्जकों में शामिल किया गया है। इन देशों में भारत के अतिरिक्त चीन, यूरोपीय संघ (27 देश), इंडोनेशिया, ब्राजील, रूस और अमेरिका शामिल हैं।
- भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। वर्ष 2020 में वैश्विक रूप से औसतन प्रति व्यक्ति जी.एच.जी. उत्सर्जन 6.3 टन कार्बन डाईऑक्साइड समतुल्य (tCO2e) है।
- यह अमेरिका में 14 tCO2e, रूस में 13 tCO2e, चीन में 9.7 tCO2e, ब्राजील एवं इंडोनेशिया में 7.5 tCO2e तथा यूरोपीय संघ में 7.2 tCO2e है। जबकि भारत में यह 2.4 tCO2e दर्ज किया गया है जो वैश्विक औसत से बहुत कम है।
- विदित है कि भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के अतिरिक्त वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करने के लिये भी प्रतिबद्धता व्यक्त की है, जिससे सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में कमी आएगी और देश के वन आवरण में भी वृद्धि होगी।