(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - गरीबी और विकासात्मक विषय; सामान्य अध्ययन 3 - भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
- हाल ही में ‘सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ (Ministry of Statistics and Programme Implementation - MoSPI) द्वारा जुलाई 2019 से जून 2020 के दौरान आयोजित ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (Periodic Labour Force Survey-P.L.F.S.) के आँकड़ों को जारी किया गया।
- पी.एल.एफ.एस. वर्ष 2019-20 से श्रम बाज़ार संकट का आधिकारिक अनुमान प्रदान करने की उम्मीद थी।
- घटती जी.डी.पी. दर में वृद्धि और कोरोनावायरस महामारी के बाद एक तालाबंदी (Lockdown) ने कई आर्थिक गतिविधियों को ठप्प कर दिया है।
पी.एल.एफ.एस. श्रम बाज़ार के प्रमुख संकेतक
- श्रम बल भागीदारी दर (L.F.P.R.) - काम करने वाली या काम की तलाश करने वाली आबादी का अनुपात।
- श्रमिक-जनसंख्या अनुपात (W.P.R.) - काम करने वाली जनसंख्या का अनुपात।
- बेरोज़गारी दर (U.R) - श्रम बल में जनसंख्या का वह अनुपात जो काम की तलाश में है, लेकिन काम पाने में असमर्थ है।
- यह श्रमिकों के विभिन्न वर्गों की कमाई के आँकड़े भी प्रदान करता है।
गिरती बेरोज़गारी दर
- एल.एफ.पी.आर., डब्ल्यू.पी.आर. और यू.आर. को दो आधारों पर मापा जाता है; पहला ‘सामान्य स्थिति’ और दूसरा ‘वर्तमान साप्ताहिक स्थिति’।
- सामान्य स्थिति पिछले 365 दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबी अवधि में किसी व्यक्ति की गतिविधियों पर विचार करती है, जबकि वर्तमान साप्ताहिक स्थिति पिछले सात दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान की गई गतिविधियों पर आधारित होती है।
- सामान्य स्थिति से मापी गई बेरोज़गारी दर वर्ष 2017-18 में 6.1 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2019-20 में 4.8 प्रतिशत हो गई।
- गिरावट का कारण एल.एफ.पी.आर. का 36.9 प्रतिशत से बढ़कर 40.1 प्रतिशत होना तथा उसी अवधि के दौरान डब्ल्यू.पी.आर. का 34.7 प्रतिशत से बढ़कर 38.2 प्रतिशत होना था।
- तिमाही जी.डी.पी. वृद्धि वर्ष 2018 के जनवरी-मार्च माह में 8.2 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2020 के जनवरी-मार्च माह में 3.1 प्रतिशत हो गई।
- गौरतलब है कि, वर्ष 2020 के अप्रैल-जून माह के दौरान अर्थव्यवस्था में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
कार्यबल संरचना
- पी.एल.एफ.एस. कार्यबल को स्वरोज़गार (जिसमें परिवार के उद्यमों में स्वयं के खाता कर्मचारी, नियोक्ता और अवैतनिक सहायक शामिल हैं), नियमित वेतनभोगी/वेतनभोगी कर्मचारी और अनियत मजदूर में वर्गीकृत करता है।
- स्वयं के खाते के कर्मचारी बिना किसी श्रमिक को काम पर रखे ‘छोटे उद्यम’ चलाते हैं, लेकिन परिवार के सदस्यों से मदद ले सकते हैं। जबकि नियोक्ता श्रमिकों को काम पर रखते हैं।
- पिछले तीन वर्षों में सभी श्रमिक श्रेणियों में से केवल ‘अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों’ के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- वास्तव में, वर्ष 2018 और वर्ष 2019 के मध्य कार्यबल में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि अवैतनिक पारिवारिक सहायकों को छोड़कर कार्यबल की अन्य सभी रोज़गार श्रेणियों के अनुपात में गिरावट दर्ज की गई है।
- इसी अवधि के दौरान कार्यबल में लगभग संपूर्ण वृद्धि कृषि द्वारा समायोजित की गई थी।
- कृषि एक सिंक की तरह कार्य करती है, जिसमें एक ऐसे कार्यबल को आकर्षित किया जाता है; जो कहीं और पारिश्रमिक रोज़गार नहीं पा सकते हैं।
कार्यबल की बदलती संरचना
- कार्यबल संरचना के बदलाव में, एक आयाम लिंग का भी है। गौरतलब है कि, अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों की श्रेणी में महिलाओं का वर्चस्व है।
- घटती बेरोज़गारी दर को, मुख्य रूप से घरेलू काम में कृषि और अन्य छोटी उत्पादन गतिविधियों में अवैतनिक पारिवारिक सहायकों के रूप में महिलाओं की गतिविधि के द्वारा समझा जा सकता है।
- सामान्य स्थिति, काम की एक अस्पष्ट परिभाषा पर आधारित है, जो खुली बेरोज़गारी को कम करके आँकती है। यह वह जगह है जहाँ बेरोज़गारी का वैकल्पिक उपाय प्रासंगिक है।
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, पिछले तीन वर्षों के दौरान अपरिवर्तित बेरोज़गारी दर 8.8 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया था।
तालाबंदी का प्रभाव
- अप्रैल-जून 2020 के पी.एल.एफ.एस. सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय तालाबंदी के साथ ओवरलैप किया।
- इस तिमाही में वर्तमान साप्ताहिक स्थिति बेरोज़गारी दर 14 प्रतिशत थी और शहरी बेरोज़गारी दर लगभग 20 प्रतिशत थी।
- बढ़ी हुई मुद्रास्फीति को संतुलित करने के लिये वेतनभोगियों की औसत मासिक आय में अप्रैल-जून 2019 की तुलना में अप्रैल-जून 2020 में 2 प्रतिशत की वृद्धि की गई।
- इसी अवधि में स्वरोज़गार करने वालों की मासिक आय में 16 प्रतिशत की गिरावट आई और आकस्मिक श्रमिकों के दैनिक वेतन में 5.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
- साथ ही, वास्तविक मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय में भी 7.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
- वेतनभोगी श्रमिकों की औसत आय में वृद्धि और उपभोक्ता व्यय पर मंद प्रभाव, लॉकडाउन अवधि के अन्य आँकड़ों से मेल नहीं खाता है।
- वर्ष 2019 की तुलना में अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में निजी अंतिम उपभोग व्यय में 26.7 प्रतिशत की गिरावट आई है।
- यद्यपि, कई छोटे पैमाने के सर्वेक्षणों ने भी तालाबंदी के दौरान बड़े पैमाने पर कमाई के नुकसान को प्रदर्शित किया है।
सांख्यिकीय प्रणाली को मज़बूत करना
- वर्ष 2011-12 के बाद गरीबी और वर्ष 2013 के बाद कृषि आय पर कोई आधिकारिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, प्रवासी श्रमिकों पर भी हालिया आँकड़े मौजूद नहीं हैं।
- यद्यपि, वर्ष 2017-18 के उपभोक्ता व्यय आँकड़ो को जारी करने पर सरकार द्वारा रोक लगा दी गई है।
- इसके अलावा, वर्ष 2019 के जनवरी-दिसंबर माह में आयोजित किये गए कृषि परिवारों की स्थिति के सर्वेक्षण के आँकड़ों को भी, अभी तक जारी नहीं किया गया है।
आगे की राह
- भविष्य के पी.एल.एफ.एस. सर्वेक्षणों में मामूली बदलाव के साथ आँकड़ों के अंतराल को भरा जा सकता है।
- खेती और संबंधित गतिविधियों में लागत और रिटर्न को जोड़ने से कृषि आय के अधिक सटीक आँकड़े भी प्राप्त किये जा सकते हैं।