(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव) |
संदर्भ
वर्तमान समय में वैयक्तिक चिकित्सा (Precision Medicine) के माध्यम से व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा के एक नए युग की शुरुआत हो रही है। इसमें मानव जीनोम परियोजना, जीन-एडिटिंग एवं mRNA थेरेप्यूटिक्स तथा ऑर्गन-ऑन-चिप्स जैसी अन्य उभरती हुई तकनीकें भी योगदान दे रही हैं। वैयक्तिक चिकित्सा को सटीक चिकित्सा, जीनोमिक चिकित्सा, स्तरीकृत चिकित्सा एवं पी4 चिकित्सा जैसे नामों से भी जाना जाता है।
वैयक्तिक चिकित्सा से तात्पर्य
- वैयक्तिक चिकित्सा किसी रोग के उपचार एवं रोकथाम के लिए एक उभरता हुआ दृष्टिकोण है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीन, पर्यावरण व जीवनशैली में व्यक्तिगत परिवर्तनशीलता को ध्यान में रखता है।
- यह दृष्टिकोण चिकित्सकों एवं शोधकर्ताओं को अधिक सटीक रूप से यह भविष्यवाणी करने में मदद करता है कि किसी विशेष बीमारी के लिए कौन सी उपचार व रोकथाम रणनीति लोगों के किस समूह में बेहतर तरीके से कार्य करेगी।
- इस प्रकार, वैयक्तिक चिकित्सा अधिक प्रभावी एवं व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा पर जोर देती है। यह उपचार के दौरान परीक्षण एवं त्रुटि को कम करती है और परिणामों में सुधार करती है।
वैयक्तिक चिकित्सा के घटक
- जीनोमिक्स : किसी रोगी की आनुवंशिक संरचना का विश्लेषण करके यह समझना कि वह कुछ बीमारियों व उपचारों के प्रति कितना संवेदनशील है।
- बायोमार्कर : आणविक मार्करों की पहचान करना जो यह संकेत दे सकते हैं कि कोई रोगी किसी उपचार के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देगा, जिससे सबसे प्रभावी उपचार का चुनाव करने में मदद मिलती है।
- डाटा एकीकरण : इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड सहित विभिन्न स्रोतों से डाटा का उपयोग करके उपचार संबंधी निर्णय लेना और परिणामों में सुधार करना।
- लक्षित उपचार : ऐसे उपचार विकसित करना जो विशेष रूप से कैंसर जैसी बीमारियों के आणविक चालकों को लक्षित करते हैं, जिससे अधिक प्रभावी और कम हानिकारक विकल्प सामने आते हैं।
- रोगी-केंद्रित देखभाल : रोगियों को उनकी उपचार योजनाओं में शामिल करना और यह सुनिश्चित करना कि उनकी प्राथमिकताओं और मूल्यों पर विचार किया जाए।
भारत में वैयक्तिक चिकित्सा
- भारतीय वैयक्तिक चिकित्सा बाजार 16% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है और वर्ष 2030 तक इसके 5 बिलियन डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।
- वर्तमान में यह कैंसर इम्यूनोथेरेपी, जीन एडिटिंग, बायोलॉजिक्स आदि के साथ-साथ राष्ट्रीय जैव अर्थव्यवस्था में 36% का योगदान देता है।
- वैयक्तिक चिकित्सा का विकास भी नई ‘BioE3’ नीति का हिस्सा है।
- अक्तूबर 2023 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने भारत की घरेलू रूप से विकसित CAR-T (Chimeric Antigen Receptor : CAR) सेल थेरेपी ‘NexCAR19’ को मंजूरी दी और वर्ष 2024 की शुरुआत में सरकार ने इसके लिए एक समर्पित केंद्र खोला।
- हाल ही में, अपोलो कैंसर सेंटर एवं सीमेंस हेल्थिनियर्स और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के बीच सहयोग ने वैयक्तिक चिकित्सा के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता को स्थापित करने के लिए नई सुविधाएँ खोली हैं।
बायोबैंक के बारे में
- बायोबैंक ऐसी सुविधाएं या भंडार हैं जो रक्त, ऊतक एवं डी.एन.ए. जैसे जैविक नमूनों तथा स्वास्थ्य संबंधित जानकारी को एकत्रित, संग्रहीत व प्रबंधित करते हैं।
- इन नमूनों का उपयोग शोध उद्देश्यों के लिए किया जाता है जिसमें बीमारियों का अध्ययन करना, नए उपचार विकसित करना और स्वास्थ्य व बीमारी में आनुवंशिक कारकों को समझना शामिल है।
- वैयक्तिक चिकित्सा की सफलता के लिए बायोबैंक का बड़ा होना तथा विविधतापूर्ण होना महत्वपूर्ण है, जिससे एक समाज के एक वृहद हिस्सा लाभान्वित हो सकेगा।
- यू.सी.एल.ए. हेल्थ जॉन्सन कॉम्प्रिहेंसिव कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं ने सारकोमा रोगी-व्युत्पन्न ऑर्गेनोइड्स का अब तक का सबसे बड़ा बायोबैंक बनाया है।
- ऑर्गेनोइड्स अंगों के छोटे व सिंथेटिक संस्करण हैं जो ट्यूमर की नकल कर सकते हैं। शोधकर्ताओं ने इसका उपयोग सारकोमा को समझने और उच्च-थ्रूपुट ड्रग-स्क्रीनिंग का उपयोग करके संभावित उपचारों की पहचान करने के लिए किया है।
भारत में बायोबैंक
- भारत में 19 पंजीकृत बायोबैंक हैं जो कैंसर कोशिका रेखाओं (Cell Lines) एवं ऊतकों सहित कई जैविक नमूनों का भंडारण करते हैं।
- कोशिका रेखाएं, कोशिका संवर्धन हैं जिन्हें लंबे समय तक विकसित किया जा सकता है और ये जैव-चिकित्सा अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण संसाधन हैं।
- वर्ष 2024 के आरंभ में ‘जीनोम इंडिया’ कार्यक्रम ने 99 जातीय समूहों के 10,000 जीनोमों का अनुक्रमण पूरा किया है, ताकि अन्य दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों के उपचार की पहचान की जा सके।
- अखिल भारतीय ‘फेनोम इंडिया’ परियोजना ने कार्डियो-मेटाबोलिक रोगों के लिए बेहतर पूर्वानुमान मॉडल बनाने के उद्देश्य से 10,000 नमूने एकत्र किए हैं।
- बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिक विकार (PRaGeD) मिशन बच्चों को प्रभावित करने वाली आनुवंशिक बीमारियों के लिए लक्षित चिकित्सा विकसित करने के उद्देश्य से नए जीन या वेरिएंट की पहचान करने में मदद कर सकता है।
वैयक्तिक चिकित्सा में बायोबैंक की भूमिका
- व्यक्तिगत उपचार : बायोबैंक व्यक्तिगत रोगियों के लिए उनके अद्वितीय प्रोफाइल के आधार पर चिकित्सा उपचार तैयार करने के लिए आवश्यक आनुवंशिक, पर्यावरणीय एवं जीवनशैली डाटा प्रदान करते हैं।
- विविध नमूना संग्रह : वे विविध आबादी से जैविक नमूनों की एक विस्तृत श्रृंखला एकत्र करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि शोध निष्कर्ष विभिन्न जनसांख्यिकी एवं जातीयताओं के लिए प्रभावी होते हैं।
- रोग की समझ : बायोबैंक आनुवंशिक विविधताओं को विशिष्ट स्वास्थ्य स्थितियों से जोड़कर जटिल रोगों के अध्ययन की सुविधा प्रदान करते हैं और जोखिम कारकों एवं संभावित चिकित्सीय लक्ष्यों की पहचान करने में मदद करते हैं।
- शोध सहयोग : वे प्राय: शोधकर्ताओं के लिए केंद्रीकृत संसाधनों के रूप में काम करते हैं और संस्थानों एवं विषयों में सहयोग व डाटा साझाकरण को बढ़ावा देते हैं।
- डाटा एकीकरण : बायोबैंक प्राय: जीनोमिक डाटा को क्लिनिकल एवं जीवनशैली की जानकारी के साथ एकीकृत करते हैं, जिससे पैटर्न व सहसंबंधों की पहचान करने की क्षमता बढ़ती है।
- दीर्घकालिक अध्ययन : बायोबैंक समय के साथ नमूनों एवं डाटा को संग्रहीत करके दीर्घकालिक अध्ययनों को सक्षम बनाते हैं, जिससे शोधकर्ताओं को स्वास्थ्य व रोग की प्रगति में परिवर्तनों को ट्रैक करने में मदद मिलती है।
भारत के बायोबैंकिंग विनियमन संबंधी चुनौतियाँ
- व्यापक कानूनों का अभाव : भारत में बायोबैंकिंग मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक व्यापक कानूनी ढाँचे का अभाव है।
- हालांकि, यू.के., यू.एस., जापान, चीन एवं विभिन्न यूरोपीय देशों में बायोबैंकिंग संबंधी व्यापक कानून या नियम हैं।
- नैतिक दिशा-निर्देशों में अंतराल : भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के दिशा-निर्देशों एवं जैव-प्रौद्योगिकी विभाग की प्रथाओं में महत्वपूर्ण अंतराल हैं।
- प्रतिभागी प्राय: डाटा उपयोग, पहुँच, भंडारण अवधि एवं संभावित भविष्य के अनुप्रयोगों के बारे में स्पष्ट जानकारी के बिना नमूने प्रदान करने के लिए सहमति देते हैं।
- भेदभाव का जोखिम : आनुवंशिक जानकारी व्यक्तियों एवं उनके परिवारों के बारे में संवेदनशील विवरण प्रकट कर सकती है, जिससे पर्याप्त सुरक्षा के बिना संभावित भेदभाव के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- नियामक प्राधिकरण की अनुपस्थिति : एकल नियामक निकाय की कमी के कारण बायोबैंकिंग प्रथाओं में विसंगतियां होती हैं।
- नमूनों को गलत तरीके से संभालने या सहमति के बिना डाटा साझा करने जैसे कदाचार के लिए कोई दंड नहीं है, जिससे नैतिक उल्लंघनों का जोखिम बढ़ जाता है।
- अनुसंधान सहयोग पर प्रभाव : कई घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दवा कंपनियाँ दवा की खोज व विकास के लिए भारतीय बायोबैंक तक पहुँच पर निर्भर हैं।
- उचित विनियमन के बिना यह जोखिम है कि भारतीय अपने जैविक नमूनों एवं संबंधित डाटा के स्वामित्व को खो सकते हैं। साथ ही, परिणामी शोध से होने वाले किसी भी संभावित लाभ को भी खो सकते हैं।
भारत में प्रभावी बायोबैंक विनियमन के लिए सुझाव
- एक व्यापक कानूनी ढाँचा की स्थापना : उदाहरण के लिए, यू.के. का मानव ऊतक अधिनियम सहमति प्रक्रिया, उपयोग एवं मानव ऊतकों के भंडारण पर स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- सूचित सहमति प्रक्रियाओं का मानकीकरण : उदाहरण के लिए, अमेरिका में सामान्य नियम के अनुसार सहमति प्रपत्रों में शोध के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करना आवश्यक है, जिससे पारदर्शिता एवं प्रतिभागियों की समझ बढ़ती है।
- एक केंद्रीय विनियामक प्राधिकरण की स्थापना : उदाहरण के लिए, यूरोपीय चिकित्सा एजेंसी (EMA) बायोबैंक को विनियमित करने, यूरोपीय संघ के दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने और सदस्य राज्यों में एकरूपता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- मजबूत डाटा सुरक्षा कानून : उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ में सामान्य डाटा सुरक्षा विनियमन (GDPR) कड़े डाटा सुरक्षा उपाय प्रदान करता है, जिसमें व्यक्तियों के लिए उनके व्यक्तिगत डाटा के संबंध में अधिकार एवं उल्लंघन के लिए सख्त दंड शामिल हैं।
- सार्वजनिक सहभागिता एवं पारदर्शिता को प्रोत्साहन : उदाहरण के लिए, कनाडा में बायोबैंकिंग प्रथाओं के बारे में नागरिकों को सूचित करने के लिए सार्वजनिक परामर्श और जागरूकता अभियान चलाए गए हैं, जिससे शोध पहलों में विश्वास एवं भागीदारी बढ़ी है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में भारत की भूमिका : फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र भारत के सॉफ्ट कूटनीतिक प्रयासों का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता और वैक्सीन निर्माण का केंद्र है। वस्तुतः अगली पीढ़ी के चिकित्सीय क्षेत्र में विस्तार की योजनाएँ बनाई जा रही हैं।
- वैश्विक मानकों के साथ तालमेल की आवश्यकता : सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देने और विश्वास बनाने के लिए बायोबैंकिंग कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ जोड़ना आवश्यक है।