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पिछवाई चित्रकला (Pichwai Painting)

  • उद्विकास : 16वीं सदी में मंदिरों में मुख्य मूर्तियों की पृष्ठभूमि के रूप में कपड़ों पर बनाई गई कलाकृतियों के रूप में उदय  
    • पिछवाई शब्द संस्कृत से लिया गया है, इस शब्द का अर्थ है पीछेवाली। 
  • उत्पत्ति स्थल : नाथद्वारा शहर (राजस्थान) 
    • उदयपुर से करीब 50 किमी दूर राजसमंद जिले में स्थित छोटा सा धार्मिक नगर 
  • प्रभाव : पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय
    • यह हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा का एक संप्रदाय है।
    • इसकी स्थापना 16वीं सदी में वल्लभाचार्य (1479-1530) ने की थी।
  • प्रमुख विषय : भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला सहित विभिन्न लीलाएँ
    • जैसे- अन्नकूट (गोवर्धन पूजा), गोपाष्टमी, दानलीला, माखनचोरी, चीरलीला, होली, वृक्षाचारी आदि।
  • प्रमुख योगदान :  वल्लभाचार्य के पुत्र और नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी विट्ठलनाथ द्वारा प्रमुख रूप से स्थापित चित्रकला 
  • मुख्य केंद्र : राजस्थान (नाथद्वारा, कोटा एवं किशनगढ़), दक्कन भारत (18 वीं सदी), जर्मनी

प्रमुख विशेषताएँ

  • पिछवाई चित्र आकार में बड़े होते हैं तथा इन्हें कपड़े पर बनाया जाता है।
  • पिछवाई के चित्रण में कलाकारों द्वारा हाथ से बनाए गए पत्थर के एवं प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है।
  • रंगों को पक्का करने के लिए बबूल का गोंद मिलाया जाता है। 
  • माँग के अनुसार इसमें सोने व चांदी के रंगों का प्रयोग भी किया जाता है।
  • इन चित्रों को बनाने का कार्य मुख्यतः ‘चितारा’ जाति के लोगों द्वारा किया जाता है।
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