प्रारम्भिक परीक्षा – पिकोसिस्टिस सेलिनारम हरा शैवाल मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर- 3 |
संदर्भ
- एक युवा शोधकर्ता ने पिकोसिस्टिस सेलिनारम नामक सबसे छोटे हरे शैवाल की खोज करके उसके आणविक तंत्र को डिकोड किया है।
प्रमुख बिंदु
- इसकी खोज पांडिचेरी विश्वविद्यालय के पृथ्वी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की इंस्पायर फैकल्टी फेलो डॉ. ज्योति सिंह के द्वारा राजस्थान के सांभर झील में किया गया है।
पिकोसिस्टिस सेलिनारम हरा शैवाल की विशेषता –
- यह शैवाल अत्यधिक खारा-क्षारीय/हाइपरसॉमिक सबसे कठिन परिस्थितियों में भी शारीरिक अनुकूलन का सहारा लेकर भी जीवित रह सकता है।
- यह शैवाल जीवन की खोज तथा विकास के बारे में समझने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
- इसकी कोशिका सामान्यतः गोलाकार या अंडाकार होती है। जिसका व्यास 2-3 माइक्रोमीटर होती है।
- इसकी कोशिका भित्ति में पॉलीअरैबिनोज घटक पाए जाते हैं।
- यह पिकोप्लैंकटोनिक शैवाल की एक प्रजाति है।
- इस शैवाल को क्लोरोफाइटा के नए वंश के अंतर्गत रखा गया है।
- इसमें क्लोरोफिल ए और बी तथा कैरोटीनॉयड नियोक्सैन्थिन, वायलैक्सैन्थिन, एलोक्सैन्थिन, मोनैडॉक्सैन्थिन, डायटॉक्सैन्थिन, ल्यूटिन और ज़ेक्सैन्थिन पाए जाते हैं।
महत्व
- यह शैवाल जीवन की खोज तथा विकास के बारे में समझने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
- इस शैवाल में नमक जैसी सहनशीलता बढ़ाने वाले तत्व मौजूद हैं जो जैव-प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के लिए एक आशाजनक हैं।
- ये शैवाल सूक्ष्मजीव, अविश्वसनीय रूप से बहुमुखी, जैव-भू-रसायन, सूक्ष्मजीव विविधता, जीवन के विकास, खगोल जीव विज्ञान, पर्यावरणीय स्थिरता, जैव प्रौद्योगिकी और उससे आगे की जानकारी प्राप्त करने में सहयोग कर सकते हैं।
- यह जीव कार्बन कैप्चर और बायोमास उत्पादन के लिए लिए महत्वपूर्ण है।
- यह शैवाल कुशल जैव प्रौद्योगिकी प्रक्रियाओं के विकास में मदद कर सकता है।
शैवाल
- शैवाल यूकैरियोटिक (Eukaryotic) जलीय (अलवणीय जल तथा समुद्री दोनों का) जीव है।
- यह नमीयुक्त पत्थरों/चट्टानों, मिट्टी तथा लकड़ी में भी पाए जाते हैं।
- शैवाल पृथ्वी पर प्रकाश संश्लेषण के दौरान कुल स्थिरीकृत कार्बनडाइऑक्साइड का लगभग आधा भाग अवशोषित करता है।
- यह प्रकाश-संश्लेषण द्वारा अपने आस-पास के पर्यावरण में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि करता है।
- ये ऊर्जा के प्राथमिक उत्पादक तथा जलीय जीवों के खाद्य चक्रों का प्रमुख आधार है।
सांभर झील
- सांभर झील राजस्थान के जयपुर से 70 किमी. दूर फुलेरा नामक स्थान पर जयपुर, अजमेर, नागौर तीन जिलों की सीमा पर स्थित है।
- इस झील की लम्बाई लगभग 32 किमी. एवं चौड़ाई 3-12 किमी. चौड़ी है एवं वर्षा ऋतु में इसका विस्तार 145 किमी. तक हो जाता है।
- इस झील का अपवाह क्षेत्र लगभग 500 वर्ग किमी. है।
- इसमें चार नदियाँ (रुपनगढ,मेंथा,खारी,खंड़ेला) आकर गिरती हैं।
- इस झील में भारत के कुल नमक उत्पादन का 8.7% उत्पादित किया जाता है।
- इस झील को वर्ष1990 में रामसर साइट स्थल के रूप में घोषित किया गया।
रामसर स्थल : यह एक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों/वेटलैंड्स के संरक्षण के लिए एक अंतरसरकारी संधि है जिसे वर्ष 1971 में ईरान के रामसर में बनाया गया था।
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- भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील चिल्का झील है।
- भारत की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील सांभर झील है।
- सांभर झील राजस्थान का सबसे बड़ा नमक उत्पादन केंद्र एवं एशिया का सबसे बड़ा अंतःस्थलीय नमक उत्पादन केंद्र है।
- सांभर झील में नवम्बर से फरवरी के मध्य नॉर्थ एशिया और साइबेरिया से हज़ारों की संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं।
प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न:- राजस्थान में स्थित रामसर स्थल के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान
- आनासागर झील
- सांभर झील
उपर्युक्त में से कितने सही हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं
उत्तर - (b)
मुख्य परीक्षा प्रश्न:- पिकोसिस्टिस सेलिनारम क्या है? इसके महत्व की विवेचना कीजिए।
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