(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र– 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय)
संदर्भ
कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। वर्ष 2009 में आई आर्थिक मंदी के बाद यह विश्व का सबसे बड़ा आर्थिक संकट है। ऐसे में, यह पड़ताल करना आवश्यक है कि वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कैसा रहा और वर्ष 2021-22 में इसके लिये क्या संभावनाएँ हैं?
वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था
- वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को चार तिमाहियों के आधार पर समझा जा सकता है- प्रथम तिमाही में लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प थीं,जिसके चलते अर्थव्यवस्था में 23.9% की गिरावट दर्ज की गई।
- दूसरी तिमाही में, लॉकडाउन के पश्चात् आर्थिक गतिविधियाँ पुनः शुरू होने से अर्थव्यस्था में गिरावट का स्तर कम होकर 7.5% रह गया।
- वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में यदि जी.डी.पी. का स्तर पिछले वर्ष के स्तर पर बना रहता है, तो इस वर्ष अर्थव्यवस्था में गिरावट या संकुचन लगभग 7.7% तक सीमित रह सकता है।
- हालाँकि, वर्तमान वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में जी.डी.पी. में अधिक वृद्धि की उम्मीद नहीं की जा सकती, परंतु यदि चौथी तिमाही में जी.डी.पी. में वृद्धि होती है तो वित्तीय वर्ष 2020-21 का संपूर्ण संकुचन 6% से 7% के बीच रह सकता है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 में सुधार के उपाय
- वित्तीय वर्ष 2020-21 में जी.डी.पी. में अपेक्षित वृद्धि दर को प्राप्त करने के लिये अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि की आवश्यकता है।इसके लिये जी.एस.टी. संग्रह में वृद्धि और कोयला, इस्पात व सीमेंट जैसे उद्योगों में बेहतर उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- अक्तूबर 2020 में विनिर्माण क्षेत्र में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है, जो निजी क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन को इंगित करती है।
- हालाँकि, पर्यटन एवं होटल उद्योग को इस संकट से उबरने में समय लग सकता है, क्योंकि यह महामारी से सर्वाधिक प्रभावित होने वाला क्षेत्र है।
- इस प्रकार, यदि सभी क्षेत्रों में सकरात्मक वृद्धि दर्ज की जाती है तो इस वित्तीय वर्ष में अर्थव्यस्था का संकुचन 6% से 7% तक सिमट सकता है, जो कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के भारतीय अर्थव्यवस्था में 10.3% तक की गिरावट के अनुमान में सुधार को दर्शाता है।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में संभावनाएँ
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में यदि अर्थव्यवस्था 8% की दर से वृद्धि करती है तो वर्ष 2020-21 के संकुचन की भरपाई की जा सकेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः वर्ष 2019-20 के स्तर पर आ जाएगी।
- वर्ष 2021-22 में 8% की वृद्धि दर प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि महामारी के कारण आरोपित सभी प्रकार के प्रतिबंध वापस ले लिये जाएँ और अर्थव्यवस्था वापस सामान्य स्थिति में लौट आए।
- जिन क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि प्रासंगिक है, उन क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यय बढ़ने से वे अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि दर को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, निजी क्षेत्र भी आर्थिक विकास को गति देने के लिये अपनी पूर्व रणनीतियों को संशोधित कर रहा है, जो कि सकरात्मक संकेत है।
- इन सब में, व्यापार तथा विकास के लिये अनिश्चित वैश्विक वातावरण आशंका का माहौल उत्पन्न करता है। कई विकसित देश अभी भी महामारी से बचाव हेतु वैक्सीन के लिये प्रयासरत हैं। यद्यपि वैक्सीन इस समस्या का स्थाई समाधान प्रस्तुत करेगी, परंतु इसमें अधिक समय लगने की संभावना है।
- वर्तमान में व्यापार के प्रति व्याप्त दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। वृद्धि दर को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न देशों द्वारा व्यापार पर प्रतिबन्ध आरोपित करना अथवा अपनी सीमाओं को बंद करना अल्पकाल दृष्टि से सहायक हो सकता है, परंतु दीर्घकाल में यह विकास की संभावनाओं को ही क्षीण करेगा।
- यद्यपि वर्ष 2021-22 में भारतीय निर्यात में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में विकास को बढ़ावा मिलेगा, किंतु अभी के लिये यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि मुख्यतः घरेलू कारकों पर ही निर्भर हो, क्योंकि विकास केवल उपभोग आधारित ही नहीं बल्कि निवेश आधारित भी होना चाहिये।
कैसी हो मौद्रिक नीति ?
- वर्ष 2020-21 में परिस्थितियों के अनुसार मौद्रिक नीति बेहद आक्रामक रही। मौद्रिक नीति में तीन प्रमुख तत्त्व शामिल हैं; नीतिगत दर में परिवर्तन के माध्यम से ब्याज दरों में कमी, विभिन्न उपायों के माध्यम से तरलता बढ़ाना तथा नियामक परिवर्तन, जैसे- ऋण अधिस्थगन।
- अर्थव्यवस्था के सुचारू संचालन के लिये वित्तीय प्रणाली में पर्याप्त तरलता को बनाए रखा गया। हालिया मौद्रिक नीति के अनुसार, नवंबर 2020 के अंत तक आरक्षित धन में 15.3% की और धन की आपूर्ति में 12.5% की वृद्धि हुई।
- चूँकि वित्तीय प्रणाली में पर्याप्त तरलता को अपनाया गया है, अतः मुद्रास्फीति के उच्च रहने की संभावना रहेगी।
- इसके अतिरिक्त, मुद्रास्फीति वस्तुओं एवं सेवाओं की उपलब्धता के साथ-साथ प्रणाली में समग्र तरलता या मुद्रा आपूर्ति के द्वारा निर्धारित होती है, फिर भी वर्ष 2020 जैसे कठिन वर्ष में परिस्थितियों के अनुकूल मौद्रिक नीति के पर्याप्त औचित्य हो सकते हैं।
राजकोषीय पहलें
- ऐसी कठिन परिस्थिति में सार्वजनिक व्यय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लोक प्रशासन, रक्षा एवं अन्य सेवाओं के क्षेत्र, जो नीतिगत हस्तक्षेप के अधीन हैं, उनका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में इस क्षेत्र की गिरावट12.2% थी।
- उच्च सार्वजनिक व्यय से जुड़ी प्रोत्साहन नीतियों के लागू किये जाने से यह उम्मीद की जा रही है कि ये अर्थव्यवस्था को गति प्रदन करेंगे।
- यह अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2020-21 में केंद्र का राजकोषीय घाटा कुल जी.डी.पी. का 8% होगा, परंतु सार्वजनिक व्यय में धीमी गति के कारण यह घाटा इस वर्ष जी.डी.पी. का केवल 6% हो सकता है।
- सरकारी व्यय को अभी से तेज़ किया जाना चाहिये ताकि वर्तमान वित्तीय वर्ष में संकुचन कम हो सके। वर्ष 2021-22 में जी.डी.पी. में वृद्धि के साथ-साथ सरकारी राजस्व को बढ़ाने के प्रयास भी किये जाने चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, राजकोषीय घाटे को कम करने की प्रक्रिया भी शुरू होनी चाहिये। इसके लिये आवश्यक है कि सरकार पूंजीगत व्यय में तीव्र वृद्धि के माध्यम से विकास संबंधी कार्यों को प्रोत्साहित करे।
- साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की एक विस्तृत निवेश योजना तैयार करके इसे आगामी बजट के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
संवृद्धि और निवेश
- महामारी के विरुद्ध प्रभावी उपायों को अपनाने के साथ-साथ आर्थिक विकास एवं निवेश की प्रक्रिया को भी तेज़ किया जाना चाहिये। ध्यातव्य है कि पिछले एक दशक में, निवेश दर में गिरावट बनी हुई है।वर्ष 2011-12 में निवेश दर जी.डी.पी. की 38.9% थी, जो वर्ष 2018-19 में गिरकर 32.2% रह गई।
- हाल ही में, कॉर्पोरेट टैक्स दर में बदलाव सहित कुछ अन्य उपायों से निवेश को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। निवेश हेतु अनुकूल माहौल बनाने के लिये ठोस प्रयास किये जाने चाहिये। इस संदर्भ में शुरू की गई ‘नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन’ एक अच्छी पहल है।
- इसके अतिरिक्त, सरकार को अपने स्तर पर और अधिक निवेश करने के लिए आगे आना चाहिये। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिये कि निवेश गैर-आर्थिक कारकों से भी प्रभावित होता है, जिनमें सामाजिक सामंजस्य सबसे महत्त्वपूर्ण है।
- विकास दर को तीव्र करने के संदर्भ में कुछ सुधार भी महत्त्वपूर्ण हैं, परंतु इसके लिये अनुकूल समय और आम सहमति का होना भी आवश्यक है। उदाहरण के लिये, हाल ही में किये गए श्रम सुधार तब प्रस्तुत होने चाहिये थेजब अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में होती।
निष्कर्ष
वर्ष 2025 तक भारत द्वारा 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करना वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार कठिन है। वर्ष 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 2.7 ट्रिलियन डॉलरथी, अतः 5 ट्रिलियन डॉलर के स्तर को प्राप्त करने के लिये लगातार छह वर्ष तक 9% की वार्षिक संवृद्धि दर होनी चाहिये, जो कि अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। महामारी के उपरांत आर्थिक संवृद्धि का पुनः पटरी पर लौटना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि नौकरियाँ और रोज़गार केअवसर आर्थिक संवृद्धि से ही प्राप्त होंगे। अतः नीति-निर्माताओं के लिये यह आवश्यक है कि वे सर्वप्रथम आर्थिक संवृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करें।