(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, लोकनीति)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष)
संदर्भ
- मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चिंताजनक परिस्थिति या उसके जैसी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति से निपटने के लिये ‘आपात स्थितियों में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष’ (Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations Fund - PM CARES) नामक एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट की स्थापना की गई थी।
- वर्तमान में इस विशेष कोष की पारदर्शिता और इसके प्रावधानों को लेकर कई प्रश्न उठाए जा रहे हैं, जैसे इसे सार्वजनिक प्राधिकरण क्यूँ नहीं माना जाता है, इस कोष में एकत्रित होने वाली राशि का विवरण, अंकेक्षण, जवाबदेहिता का अभाव आदि।
अन्य कोष
1. राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया कोष
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत ‘राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया कोष’ (NDRF) नामक वैधानिक निकाय का गठन किया गया है। एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ होने के कारण इस निकाय को ‘भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक’ (CAG) द्वारा लेखा-परीक्षा योग्य तथा सूचना के अधिकार (RTI) के अंतर्गत जवाबदेह होना अनिवार्य है।
- नागरिक समाज के विभिन्न सदस्यों का मानना है कि सरकार ने जवाबदेहिता एवं पारदर्शिता से संबंधित वैधानिक प्रावधानों से बचने के लिये ‘पी.एम. केयर्स फंड’ का गठन किया है।
2. आपदा अनुक्रिया कोष
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत गठित ‘आपदा अनुक्रिया कोष’ के तहत राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर पर कोष उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही, इन स्तरों पर पारदर्शिता और अंकेक्षण प्रावधानों के साथ दान एकत्रित करने तथा उसके उपयोग करने की अनुमति भी प्रदान की जाती है।
- पी.एम. केयर्स फंड, धनराशि के संग्रहण और उसकी उपयोगिता के मामले में ‘केंद्रीकृत शक्तियों’ से प्रभावित है, जो न केवल संघीय स्वरुप के विरुद्ध है, बल्कि व्यावहारिक रूप से असुविधाजनक भी है।
3. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष
- पं. जवाहरलाल नेहरू के समय से ही ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष’ (Prime Minister’s National Relief Fund- PMNRF) संचालित है। जनवरी 1948 में इसका गठन नागरिकों के अंशदान द्वारा पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिये किया गया था।
- वर्तमान में पी.एम.एन.आर.एफ. की धनराशि का प्रयोग प्रमुखतः बाढ़, चक्रवात और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुँचाने के लिये किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त, हृदय शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर आदि के उपचार के लिये भी इस कोष से सहायता दी जाती है। यह कोष केवल नागरिकों के अंशदान से निर्मित है और इसे कोई भी बजटीय सहायता नहीं मिलती है।
- इस कोष को आयकर अधिनियम के तहत एक ट्रस्ट माना गया है और इसका प्रबंधन प्रधानमंत्री अथवा विविध नामित अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय प्रयोजनों के लिये किया जाता है। कोष से धनराशि प्रधानमंत्री के अनुमोदन से ही वितरित की जाती है।
- उल्लेखनीय है कि पी.एम.एन.आर.एफ. में काफी धनराशि शेष है किंतु वर्तमान सरकार किन्ही कारणों से इसका प्रयोग नहीं करना चाहती है। इस निकाय में भारत के राष्ट्रपति तथा विपक्ष के नेता भी ट्रस्टी होते हैं, जबकि पी.एम. केयर्स फंड में केवल प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री ही ट्रस्टी होते हैं।
पी.एम. केयर्स फंड से संबंधित मुद्दे
- वर्तमान में एन.डी.आर.एफ. और पी.एम.एन.आर.एफ. की जगह पी.एम. केयर्स फंड को ज़्यादा प्राथमिकता दी जा रही है।
- पी.एम. केयर्स फंड का गठन न तो किसी कानून द्वारा और न ही किसी अधिसूचना के द्वारा किया गया है। विगत वर्ष मार्च में कोविड-19 महामारी से प्रभावित लोगों के लिये धन जुटाने के उद्देश्य से इस कोष को स्थापित किया गया था।
- दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल एक शपथपत्र में कहा गया है कि पी.एम. केयर्स फंड भारत सरकार का कोष नहीं है और इसके द्वारा एकत्रित धनराशि भारत की संचित निधि (CFI) में जमा नहीं की जाती है।
- उक्त शपथपत्र प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के एक अवर सचिव द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने कहा कि ट्रस्ट ‘पारदर्शिता’ के साथ कार्य करता है। मुख्य मुद्दा यह है कि पी.एम.ओ. इस कोष का संचालन करता है किंतु वह पी.एम. केयर्स फंड के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रहा है क्योंकि उसके अनुसार यह एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ नहीं है।
पारदर्शिता का अभाव
- आरंभ में इनकार करने के बाद अब सरकार ने पी.एम. केयर्स फंड एक ‘सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट’ के रूप में स्वीकार कर लिया है लेकिन फिर भी वह मानने को तैयार नहीं है की यह एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ है।
- सामाजिक कार्यकर्ताओं ने माँग की है कि पी.एम. केयर्स फंड को आर.टी.आई. अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किया जाए तथा सभी आर.टी.आई. प्रश्नों का उत्तर दिया जाए।
- गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिकाकर्ता द्वारा संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत पी.एम. केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की माँग की गई थी। इसके अतिरिक्त, एक अन्य याचिका में आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 2 (एच) के तहत उक्त कोष को ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ के रूप में नामित करने की भी माँग की गई है।
कोष से संबंधित दावे और उनका खंडन
- पहला, उच्च न्यायालय में दाखिल शपथपत्र में कहा गया है कि पी.एम. केयर्स फंड का गठन न तो संविधान के द्वारा किया गया था और न ही किसी क़ानून द्वारा। यदि ऐसा है, तो यह निकाय किस अधिकार से प्रधानमंत्री के पदनाम, राष्ट्र के नामित प्रतीकों, तिरंगे और पी.एम.ओ. की आधिकारिक वेबसाइट का उपयोग करता है।
- दूसरा, प्रधानमंत्री इस कोष में योगदान करने की अपील करते हुए यह क्यों कहते हैं कि इससे सरकार को कोविड-19 से लड़ने में मदद मिलेगी। जबकि इस कोष में प्राप्त राशि भारत की संचित निधि (CFI) में जमा नहीं की जाती है।
- अगर इसकी राशि सी.एफ.आई. में जमा होती, तो इसका अंकेक्षण सी.ए.जी. द्वारा किया जाता। चूँकि इस कोष का अंकेक्षण सी.ए.जी. द्वारा नहीं किया जाता है, इसलिये सरकार को कम से कम इसकी जवाबदेहिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहिये।
- तीसरा, ट्रस्ट की कार्यप्रणाली में किसी भी तरह से केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई नियंत्रण नहीं है। सच ये है कि प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष तथा तीन कैबिनेट मंत्री (रक्षा, गृह और वित्त) पदेन सदस्य होते हैं।
- पी.एम. केयर्स फंड से संबंधित एक सरकारी विज्ञापन कहता है कि “पी.एम. ने कोविड-19 के विरुद्ध लोगों को सरकार के लिये दान करने के उद्देश्य नए कोष की घोषणा की है”। यह दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, फिर भी दावा किया जा रहा है कि यह सरकार से संबंधित नहीं है।
- यदि उक्त कोष सरकार से असंबद्ध है, तो यह ‘लाभ का पद’ बन सकता है और इसके कारण प्रधानमंत्री और उनके तीन मंत्रियों को संवैधानिक पदों पर रहने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
- हालाँकि, यह एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ है या नहीं, यह ज्ञात करने के लिये ट्रस्ट की संरचना कभी भी एक ‘निर्धारक कारक’ नहीं हो सकती है। फिर भी, अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री और सदस्यों के रूप में तीन कैबिनेट मंत्री अपनी आधिकारिक क्षमता में इसे एक ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ बनाते हैं।
- उल्लेखनीय है कि ट्रस्ट तय करता है कि एकत्रित धन को कैसे खर्च किया जाए तथा प्रधानमंत्री कार्यालय इसके गतिविधियों को प्रबंधित करता है।
- ‘थलप्पलम सर्विस कॉप. बैंक लिमिटेड बनाम केरल राज्य वाद’ में उच्चतम न्यायालय ने माना था की ‘पर्याप्त नियंत्रण’ (Substantial Control) आर.टी.आई. अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण के रूप में इसके चरित्र को निर्धारित करने की आवश्यकता है।
निधियन के रास्ते
- आयकर अधिनियम, 1961 में संशोधन करने के लिये एक अध्यादेश जारी किया गया है तथा यह घोषित किया गया है कि पी.एम. केयर्स फंड में दी जाने वाली राशि पर 80 (जी) के तहत आयकर से छूट दी जाएगी।
- पीएम केयर्स फंड में दान की जाने वाली राशि को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत ‘निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व’ (CSR) व्यय के रूप में गिना जाएगा। इसके अतिरिक्त, इस कोष को ‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत भी छूट मिली है और धनराशि प्राप्त करने के लिये एक पृथक खाते का प्रावधान किया गया है।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय न्यास अधिनियम की धारा 19 के तहत ट्रस्टियों के लिये अनिवार्य किया गया है कि वे लाभार्थियों को ट्रस्ट की ‘राशि एवं उसकी स्थिति’ के बारे में पूरी व सटीक जानकारी प्रदान करें।
- उक्त वैधानिक पहुँच के कारण पीएम केयर्स फंड के बारे में सभी ‘सूचनाएँ’ आर.टी.आई. अधिनियम की धारा 2 (च) के अनुसार सुलभ होनी चाहिये।
- यहाँ सूचना का अर्थ किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप से धारित अभिलेख, दस्तावेज़, ज्ञापन ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस, विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लागबुक, संविदा, रिपोर्ट आदि या किसी निजी निकाय से संबंधित ऐसी सूचना, जिस तक उस समय प्रवृत किसी कानून के अधीन किसी लोक प्राधिकारी की पहुँच हो सकती है।
- उक्त प्रावधान भारतीय न्यास अधिनियम के माध्यम से ट्रस्ट की जानकारी तक पहुँच को सक्षम बनाता है, भले ही वह निजी ही क्यों न हो। निष्कर्षतः यह दावा करना कि पी.एम. केयर्स फंड एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है।