(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार एवं इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)
संदर्भ
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने पोन्नैयार नदी (Ponnaiyar River) जल विवाद के समाधान के उद्देश्य से न्यायाधिकरण गठित करने के लिये केंद्र सरकार को तीन माह का समय दिया है। पोन्नैयार नदी जल विवाद तमिलनाडु एवं कर्नाटक के बीच एक अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद है।
विवाद का बिंदु
- कर्नाटक कोलार जिले में मार्कण्डेय नदी पर एक बांध का निर्माण कर रहा है। मार्कण्डेय नदी, पोन्नैयार की सहायक नदी है। पोन्नैयार नदी का एक बड़ा हिस्सा तमिलनाडु में प्रवाहित होता है।
- तमिलनाडु का तर्क है कि पोन्नैयार की किसी भी सहायक नदी पर निर्मित किया गया कोई भी जलाशय अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम का उल्लंघन है।
- तमिलनाडु में बड़ी संख्या में लोग सिंचाई के साथ-साथ पीने के पानी के लिये पोन्नैयार नदी पर निर्भर हैं। इस पर बांध के निर्माण से कृष्णगिरी, धर्मपुरी, तिरुवन्नामलाई, विल्लुपुरम और कुड्डालोर जिलों के लाखों किसानों की आजीविका प्रभावित होगी
विवाद का प्रारंभ
- कर्नाटक द्वारा इस नदी पर चेक डैम एवं डायवर्जन संरचनाओं के निर्माण के खिलाफ तमिलनाडु ने वर्ष 2018 में एक मुकदमा दायर किया था।
- केंद्र सरकार ने इस मामले को समझौता समिति (Negotiation Committee) के पास भेज दिया था किंतु समझौते से समाधान की कोई संभावना नहीं थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक न्यायाधिकरण गठित करने की संभावना व्यक्त की थी।
तमिलनाडु का तर्क
- तमिलनाडु का तर्क है कि नदी जल पर वर्ष 1892 का समझौता पक्षकार राज्यों पर ‘वैध एवं बाध्यकारी’ था।
- तमिलनाडु के अनुसार, कर्नाटक को नई योजनाओं/परियोजनाओं का विवरण प्रस्तुत किये बिना एवं निचले तटवर्ती राज्य की सहमति प्राप्त किये बिना कोई निर्माण नहीं करना चाहिये।
- तमिलनाडु के अनुसार, किसी नदी में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पानी का योगदान करने वाली सहायक नदियां एवं धाराएं भी शामिल होती हैं।
- इस प्रकार, प्रमुख सहायक नदी मार्कण्डेय नदी का जलग्रहण क्षेत्र कर्नाटक एवं तमिलनाडु दोनों में है और इसको वर्ष 1892 के समझौत के दायरे से बाहर नहीं माना जा सकता है।
पोन्नैयार नदी
- यह पूर्वी कर्नाटक के चेन्नाकासेवा पहाड़ियों में नंदीदुर्ग पर्वत के पूर्वी ढलान पर दक्षिणी पिनाकिम के रूप में निकलती है।
- यह कर्नाटक के माध्यम से उत्तर-पश्चिमी तमिलनाडु में 50 मील (80 किमी.) तक दक्षिण की ओर बहती है, जहाँ यह दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ती है और कुड्डालोर में बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने के लिये 200 मील (320 किमी.) की दूरी तय करती है।
- इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ ‘चिन्नार, मार्कण्डेय, वानियार एवं पंबन’ हैं।
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विवाद समाधान प्रक्रिया
- नदियों के जल को लेकर राज्यों में चल रहे विवाद को सुलझाने के लिये संसद में दो कानून पारित हुए हैं। संविधान का अनुच्छेद 262 अंतर-राज्यीय जल विवादों के न्याय एवं निर्णय से संबंधित है।
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत संसद ने दो कानून पारित किये हैं- नदी बोर्ड अधिनयम, 1956 तथा अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनयम, 1956।
- अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनयम में केंद्र सरकार को अंतर-राज्यीय नदियों एवं नदी घाटियों के जल के प्रयोग, बंटवारे तथा नियंत्रण से संबंधित दो अथवा दो से अधिक राज्यों के मध्य किसी विवाद के न्याय निर्णय के लिये एक अस्थायी न्यायाधिकरण के गठन की शक्ति प्रदान किया गया है।
- गठित न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम होगा जो सभी पक्षों के लिये मान्य होगा। नियमानुसार न्यायाधिकरण को विवाद समाधान के लिये तीन वर्षों का समय दिया जाता है, यद्यपि इस अवधि को अधिकतम दो वर्षों तक बढाया जा सकता है।
- उल्लेखनीय है कि अब तक न्यायाधिकरणों ने नदी जल विवाद पर अपना निर्णय देने में काफी अधिक समय लिया है।
एकीकृत न्यायाधिकरण का प्रयास
- वर्तमान में अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) अधिनियम, 2019 संसद में लंबित है जिसमें सभी जल विवादों पर फैसले के लिये केवल एक अंतर-राज्यीय नदी विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान है। इस अधिकरण की अनेक खंडपीठ हो सकती हैं।
- सभी मौजूदा न्यायाधिकरणों को भंग कर दिया जाएगा एवं उन न्यायाधिकरणों में निर्णय लेने के लिये जो मामले लंबित होंगे, उन्हें नए न्यायाधिकरण में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
- इस विधेयक में अंतर-राज्यीय जल विवादों डेढ़ वर्ष की अधिकतम अवधि के भीतर हल करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा एक विवाद समाधान समिति (DRC) की स्थापना का प्रावधान है।
भारत के प्रमुख नदी जल विवाद
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नदी जल विवाद
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संबंधित राज्य
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गोदावरी नदी जल विवाद
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आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तत्कालीन मध्य प्रदेश, ओडिशा एवं महाराष्ट्र
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कृष्णा नदी जल विवाद
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आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र
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नर्मदा नदी जल विवाद
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मध्य प्रदेश, गुजरात एवं महाराष्ट्र, राजस्थान
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रावी-व्यास नदी जल विवाद
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पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान
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कावेरी जल विवाद
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केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं पुडुचेरी
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कृष्णा नदी जल विवाद- II
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कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र
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वंसधारा नदी जल विवाद
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आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा
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महानदी जल विवाद अधिकरण
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ओडिशा एवं छतीसगढ़
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महादाई नदी जल विवाद
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गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र
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विवाद सुलझाने के अन्य उपाय
अंतर-राज्यीय परिषद
- इसके कार्यान्वयन के लिये संघ सूची की प्रविष्टि- 56 के अनुसार निर्मित नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 एक प्रभावी कानून है जिसमें संशोधन की आवश्यकता है।
- इस अधिनियम के अंतर्गत अंतर-राज्यीय नदियों एवं इनके बेसिनों के विनियमन एवं विकास के लिये बेसिन संगठन स्थापित किया जा सकता है।
मध्यस्थता के लिये प्रयास
दक्षिण एशिया के संदर्भ में सिंधु बेसिन की नदियों से जुड़े विवाद के सफलतापूर्वक समाधान में विश्व बैंक ने भारत एवं पाकिस्तान के मध्य अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी तरह की किसी भूमिका का प्रयोग राज्यों के बीच मध्यस्थता के लिये किया जा सकता है।
जल को समवर्ती सूची में शामिल करना
वर्ष 2014 में तैयार की गई मिहिर शाह रिपोर्ट में जल प्रबंधन के लिये केंद्रीय जल प्राधिकरण की अनुशंसा की गई है। संसदीय स्थायी समिति ने भी इस अनुशंसा का समर्थन किया गया है।
संस्थागत मॉडल
- राष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी तंत्र या संस्थागत मॉडल की आवश्यकता है जिससे न्यायपालिका की सहायता के बिना राज्यों के मध्य उत्पन्न जल विवाद का समाधान किया जा सके।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय जल नीति का पालन करना एवं नदियों को जोड़ना भी एक बेहतर प्रयास हो सकता है।