(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास – सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-1: महिलाओं की भूमिका और संगठन, जनसंख्या और सम्बद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उसकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लैंसेट जर्नल द्वारा वैश्विक जनसंख्या में परिवर्तन को लेकर एक विश्लेषण जारी किया गया है, जिसके अनुसार भारत की आबादी वर्ष 2017 में 1.48 बिलियन से बढ़कर वर्ष 2048 में लगभग 1.6 बिलियन तक होने का अनुमान है लेकिन इसके बाद जनसंख्या में 32% की गिरावट होने के साथ ही यह वर्ष 2100 तक 1.09 बिलियन हो जाएगी।
मुख्य बिंदु
- वर्ष 2100 तक भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश होगा।
- वर्ष 2017 में भारत में 20-64 आयु-वर्ग के कामकाजी उम्र के वयस्कों की संख्या 762 मिलियन थी, जिसके वर्ष 2100 में घटकर 578 मिलियन तक होने का अनुमान है।
- हालाँकि, भारत में वर्ष 2020 के मध्य तक चीन की कार्यशील आबादी से भी अधिक आबादी होने की उम्मीद है। वर्ष 2017 की कामकाजी आबादी 950 मिलियन है जो घटकर वर्ष 2100 तक 357 मिलियन हो सकती है।
- भारत की सकल घरेलू उत्पाद वाले देशों की सूची में सुधार की सम्भावना है, इसमें नॉमिनल जी.डी.पी. के संदर्भ में इसकी रैंक 7 से 3 तक पहुँचने का अनुमान है।
- वर्ष 2019 में देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility rate-TFR) घटकर 2.1 से नीचे आ गई है और अनुमान है कि वर्ष 2040 तक निरंतर गिरावट होगी और वर्ष 2100 तक टी.एफ.आर. 1.29 तक पहुँचने का अनुमान है।
- उल्लेखनीय है कि टी.एफ.आर. 15-49 वर्षों के प्रजनन काल के दौरान एक महिला से जन्म लेने वाले बच्चो की औसत संख्या को इंगित करता है।
- भारत में वर्ष 2100 तक दूसरा सबसे बड़ा शुद्ध अप्रवासन होने का अनुमान है।
- इस अध्ययन में भारत और चीन जैसे देशों में कामकाजी आयु की आबादी में अभूतपूर्व गिरावट का अनुमान लगाया गया है, जिससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होने के साथ-साथ वैश्विक शक्तियों में भी परिवर्तन होने की संभावना है।
- सयुंक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों द्वारा कार्य वीज़ा पर प्रतिबंध लगाने के चलते और भारत के एक विकासशील देश के होने के नाते यहाँ विनिर्माण बाज़ार में बड़ी संख्या में ऐसे अप्रवासियों को स्वीकार करने की क्षमता है, जो यहाँ कार्य करने के इच्छुक हैं।
- वर्ष 2064 तक विश्व के जनसंख्या लगभग 9.7 बिलियन होने का अनुमान है तथा इसके बाद सदी के अंत तक जापान, थाईलैंड, इटली और स्पेन सहित 23 देशों की आबादी 50 प्रतिशत से भी अधिक कम होने के साथ ही वैश्विक आबादी 8.8 बिलियन तक गिरने का अनुमान है।
- वर्ष 2100 तक कुल 195 देशों में से 183 देशों में प्रति महिला जन्मों का प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से भी नीचे टी.एफ.आर. होगा, वैश्विक टी.एफ.आर. वर्ष 2017 में 2.37 से घटकर वर्ष 2100 तक 1.66 तक पहुँचने का अनुमान है, जो कि 2.1 की न्यूनतम दर से भी नीचे है।
- प्रतिस्थापन प्रजनन स्तर, आवश्यक बच्चों की वह संख्या है जो वृद्ध लोगों की मृत्यु के पश्चात् उनका रिक्त स्थान भर सके।
- विश्लेषण के अनुसार, वैश्विक आयु संरचना में भारी बदलाव होने की सम्भावना है। वर्ष 2019 में 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोग 703 मिलियन थे, जिनके वर्ष 2100 तक 2.37 बिलियन तक होने की सम्भावना है।
चुनौतियाँ
- ये नए जनसंख्या पूर्वानुमान सयुंक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग द्वारा निरंतर वैश्विक वृद्धि के संदर्भ में दिये गए आँकड़ों के विपरीत हैं।
- जनसंख्या विश्लेषण पर प्रस्तुत आँकड़े आर्थिक वृद्धि में बाधा उत्पन्न करने के साथ-साथ वृद्ध लोगों की बढ़ती आबादी से स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग प्रणालियों पर अत्यधिक बोझ बढ़ने के संकेत प्रदान करते हैं।
- सबसे अधिक चिंता का विषय तो यह है कि जनसंख्या में वृद्धि तो निरंतर हो रही है, लेकिन पृथ्वी पर संसाधन सीमित हैं।
- एक ही समय में सभी उम्र के लोगों की आबादी में वृद्धि वैश्विक स्तर पर जनसंख्या बढ़ने का मुख्य कारण होगी।
सुझाव
- कार्यशील आबादी में गिरावट के संदर्भ में आर्थिक विकास हेतु उदारवादी प्रवासन नीतियों को एक अस्थाई समाधान के रूप में अपनाया जा सकता है।
- प्रवासी श्रम बाज़ार में नवाचार और आधुनिक तकनीक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कामकाजी उम्र की आबादी को स्वीकृति प्रदान करने से देश में कौशल निर्माण के साथ-साथ मानव पूँजी के निर्माण में भी अत्यधिक सहायता प्राप्त होगी।
- आधुनिक तकनीक में निवेश की संभावनाओं को तलाश करने से मानव श्रम की कमी की भरपाई की जा सकती है।
- महिलाओं में प्रजनन क्षमता में गिरावट के कारण उन्हें अधिक आर्थिक स्वंत्रता प्रदान की जाए ताकि वे अपनी शर्तों पर सेवाएँ उपलब्ध कराने हेतु प्रशासनिक तंत्र के सामने अपना पक्ष पुरज़ोर तरीके से रख सकें।
आगे की राह
- भारत जनसांख्यिकी परिवर्तन की सही दिशा में अग्रसर है, यदि नीति-निर्धारक इस परिवर्तन के साथ विकासात्मक नीतियों को संरेखित करते हैं तो भारत तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास के सुनहरे अवसर का लाभ उठा सकेगा।
- जनसांख्यिकी परिवर्तन अपने साथ जटिल चुनौतियाँ भी लेकर आता है। यदि इस बढ़े हुए कार्यबल को पर्याप्त रूप में कौशल, शिक्षा और लाभकारी रोज़गार प्रदान नहीं किया गया तो भारत को जनसांख्यिकी लाभांश की बजाय जनसांख्यिकी संकट का सामना करना पड़ेगा।
- कामकाजी आबादी के प्रवासन का लाभ उठाने के लिये शिक्षा, कौशल विकास, और स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करके मानव पूंजी में निवेश की आवश्यकता है।
- भारत को आर्थिक विकास हेतु वैश्विक दृष्टिकोण अपनाने वाले देश जापान और दक्षिण कोरिया से सीख लेकर घरेलू चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इस महत्त्वपूर्ण अवसर का लाभ उठाना चाहिये।