(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान/सिपरी (Stockholm Peace Research Institute- SIPRI) द्वारा एक वार्षिकी (Yearbook) ज़ारी की गई है। इस वार्षिकी में शस्त्रीकरण, निशस्त्रीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की वर्तमान स्थिति का आकलन किया गया है।
स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान (सिपरी)
- स्वीडन स्थित स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान (सिपरी) वर्ष 1966 में स्थापित एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है, जो संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निशस्त्रीकरण के क्षेत्र में अनुसंधान हेतु एक थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है।
- यह संस्थान नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं, मीडिया और इच्छुक लोगों द्वारा जुटाए गए आँकड़ों के आधार पर विश्लेषण और सिफारिशें करता है।
- इस संस्थान के अनुसंधान एजेंडों, गतिविधियों और वित्तीय प्रशासन से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय गवर्निंग बोर्ड द्वारा लिये जाते हैं। अन्य मामलों से सम्बंधित निर्णय निदेशक द्वारा लिये जाते हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका 1750 तैनात परमाणु हथियारों के साथ शीर्ष स्थान पर है तथा इसके पास कुल 5800 परमाणु हथियार हैं। 1570 तैनात और 6375 कुल परमाणु हथियारों के साथ रूस दूसरे स्थान पर है। ब्रिटेन के पास कुल 215 परमाणु हथियार हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, सभी परमाणु हथियार संपन्न देशों द्वारा निरंतर परमाणु शस्त्रों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। साथ ही, भारत और चीन द्वारा गत वर्ष में अपने परमाणु हथियारों में वृद्धि की गई है।
- परमाणु शस्त्रागार के आधुनिकीकरण में चीन ने महत्त्वपूर्ण वृद्धि की है। चीन का परमाणु शस्त्रागार वर्ष 2019 में 290 वॉरहेड्स से बढ़कर वर्ष 2020 में 320 वॉरहेड्स हो गया।
- चीन ऐसा परमाणु त्रयी (Nuclear Triad) विकसित करने की कोशिश कर रहा है, जो भूमि एवं समुद्र आधारित मिसाइल और परमाणु मिसाइल ले जाने में सक्षम विमान से निर्मित है।
- भारत का परमाणु शस्त्रागार वर्ष 2019 में 130-140 की अपेक्षा वर्ष 2020 में बढ़कर 150 हो गया।
- पाकिस्तान भी अपनी परमाणु शक्ति और विविधता को धीरे-धीरे बढ़ा रहा है वर्ष 2020 में पाकिस्तान के पास परमाणु शस्त्रागारों की संख्या 160 है।
- चीन और पाकिस्तान दोनों देशों के पास भारत से अधिक परमाणु हथियार हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर कोरिया द्वारा अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के केंद्रीय भाग के रूप में सैन्य परमाणु कार्यक्रम को प्राथमिकता दी जा रही है।
- रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वर्ष 2010 से 2019 के मध्य हथियारों की खरीद में 5.5 % की वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में सैन्य सुविधाओं पर लगभग 1917 बिलियन डॉलर (लगभग 145 लाख करोड़ रुपए) व्यय हुआ था। यह पिछले 10 वर्षों की अवधि में सबसे अधिक व्यय है।
- उत्तर अफ़्रीकी देशों द्वारा वर्ष 2019 की अपेक्षा वर्ष 2020 में सैन्य सुविधाओं पर 67 % धनराशि अधिक खर्च की गई है।
वैश्विक परिदृश्य
- परमाणु शस्त्र संपन्न देशों, यथा- अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इज़राइल और उत्तर कोरिया के पास वर्ष 2019 की शुरुआत में अनुमानित कुल 13,865 परमाणु हथियार थे, जोकि वर्ष 2020 की शुरुआत में घटकर 13,400 हो गए।
- परमाणु हथियारों में कमी का मुख्य कारण रूस और अमेरिका द्वारा पुराने परमाणु हथियारों का विघटन किया जाना है। इन दोनों देशों के पास वैश्विक परमाणु हथियारों का 90 % से अधिक है।
- नई रणनीतिक हथियार न्यूनीकरण संधि 2010 ‘न्यू स्टार्ट’ (New START- Strategic Arms Reduction Treaty) के तहत अमेरिका और रूस द्वारा परमाणु हथियारों में कमी की गई है। यह संधि वर्ष 2021 में समाप्त हो जाएगी। इसलिये एक नई संधि पर बातचीत के साथ-साथ ही एक नई शुरुआत की जानी चाहिये।
- न्यू स्टार्ट पर गतिरोध एवं अमेरिका और रूस के बीच ‘मध्यम दूरी परमाणु संधि’ को वर्ष 2019 में समाप्त कर दिया गया। इससे प्रतीत होता है कि रूस एवं अमेरिका के मध्य द्विपक्षीय परमाणु हथियार नियंत्रण समझौतों का दौर समाप्त हो रहा है।
मध्यम दूरी परमाणु संधि (Intermediate Range Nuclear Forces (INF) Treaty)
- वर्ष 1980 के दशक में शीत युद्ध के दौर में रूस ने यूरोपीय देशों को निशाना बनाने के उद्देश्य से अपने क्षेत्र के आस-पास मध्यम दूरी की सैकड़ों मिसाइलें तैनात कर दी थी। ये मिसाइलें परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थी।
- इसके बाद वर्ष 1987 में शीत युद्ध की स्थिति को समाप्त करने के लिये अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत संघ के नेता मेखाइल गोर्बाच्योव के बीच ‘मध्यम दूरी परमाणु संधि’ (आई.एन.एफ. संधि) की गई थी।
- यह संधि इन दोनों देशों को ज़मीन से मार करने वाली ऐसी मिसाइलें बनाने से रोकती है, जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हों एवं जिनकी मारक क्षमता 500 से लेकर 5500 किलोमीटर तक हो।
- इस संधि ने यूरोप में एक सम्भावित परमाणु युद्ध की आशंकाओं को दूर करने के साथ-साथ शीत युद्ध की समाप्ति में भी योगदान दिया तथा वाशिंगटन व मास्को के मध्य काफी हद तक विश्वास कायम किया।
रिपोर्ट से सम्बंधित मुद्दे
- रिपोर्ट में कहा गया है कि परमाणु संपन्न देशों के परमाणु हथियारों और क्षमताओं के सम्बंध में विश्वसनीय जानकारी में बड़े पैमाने पर भिन्नता है।
- शुरुआत से ही, अमेरिका अपनी परमाणु भंडार और क्षमताओं से सम्बंधित जानकारी का खुलासा करता था। वर्ष 2019 से अमेरिकी प्रशासन ने सार्वजानिक रूप से अपने परमाणु भंडार के आकार का खुलासा करने की पद्धति को ही समाप्त कर दिया है।
अन्य चिंताएँ
- रूस और अमेरिका द्वारा पहले से ही अपने परमाणु वॉरहेड और डिलिवरी सिस्टम को परिवर्तित करने के साथ-साथ इन्हें और अत्याधुनिक बनाने की घोषणा की गई है।
- रूस एवं अमेरिका दोनों देशों ने अपनी सैन्य योजनाओं और सिद्धांतों के सम्बंध में परमाणु हथियारों के लिये नई और विस्तृत भूमिकाएँ निर्धारित की हैं, जोकि परमाणु हथियारों के क्रमिक सीमांकन की प्रवृति के बिलकुल उलट दिखाई पड़ती है।
आगे की राह
हथियारों और मिसाइलों की होड़ शुरू होने पर अमेरिका, रूस, चीन या उभरती हुई कोई अन्य महाशक्ति तब तक निश्चिंत नहीं हो सकती ,जब तक सम्बंधित देश इसे रोकने के लिये पहल नहीं करते और आपसी विश्वास बहाली के लिये मिलकर कोई रास्ता नहीं निकालते। इसके साथ ही, रूस और अमेरिका जैसे देशों को, जिनके पास सम्पूर्ण परमाणु हथियारों का 90 % से अधिक है, उन्हें हथियारों के न्यूनीकरण की दिशा में और गम्भीरता के साथ आगे बढ़ना चाहिये।