संदर्भ
वर्ष 1898 के 125 साल पुराने भारतीय डाकघर अधिनियम के स्थान पर नया डाकघर अधिनियम 18 जून 2024 से लागू हो गया। इसे वर्ष 2023 के दिसंबर माह में ही राज्यसभा और लोकसभा से पारित किया गया था।
उद्देश्य
- नागरिक-केंद्रित सेवाओं की डिलीवरी को सुव्यवस्थित करना और देश के सबसे दूरदराज के क्षेत्रों में सरकारी लाभों का विस्तार करना।
- इससे डाक सेवाओं और स्टाम्प शुल्क के लिए भारत के विधायी ढांचे में मदद और जीवन की गुणवत्ता में सुधार।
वर्ष 1898 अधिनियम को निरस्त करने की आवश्यकता क्यों थी?
- भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 भारत में डाकघर के कामकाज को नियंत्रित करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था, जो मुख्य रूप से डाकघर के माध्यम से प्रदान की जाने वाली मेल सेवाओं से संबंधित था।
- समय के साथ डाकघर के माध्यम से उपलब्ध सेवाओं में डाक से परे विविधता आ गई है और डाकघर नेटवर्क विभिन्न प्रकार की नागरिक केंद्रित सेवाओं की डिलीवरी का माध्यम बन गया है।
- उपरोक्त कारणों से उक्त अधिनियम को निरस्त करना और उसके स्थान पर नया कानून बनाना आवश्यक हो गया।
डाकघर अधिनियम, 2023 के मुख्य प्रावधान
- विशेष शक्तियां : अधिनियम की धारा 9 केंद्र सरकार को निम्नलिखित आधारों पर “किसी भी डाक वस्तु को रोकने, खोलने या कब्जे में लेने” का अधिकार देती है यदि;
- राज्य की अखंडता एवं सुरक्षा के विरुद्ध हो,
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रभावित करता हो,
- सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करता हो,
- आपातकाल की स्थिति हो,
- सार्वजनिक सुरक्षा या अन्य कानूनों के उल्लंघन करता हो।
- इसके अलावा, डाक अधिकारी किसी डाक वस्तु को सीमा शुल्क अधिकारियों सौंप सकता है। यदि डाक अधिकारियों को उनमें कोई प्रतिबंधित वस्तु होने का संदेह है या यदि ऐसी वस्तुएं शुल्क के योग्य हैं।
- विशिष्ठ मामलों में डाक भेजने पर निषेध : धारा 19(1) के अनुसार कोई व्यक्ति निम्नलिखित वस्तुओं को डाक द्वारा नहीं भेज सकता है :
- कोई भी विस्फोटक,
- खतरनाक, गंदा या हानिकारक पदार्थ,
- कोई भी नुकीला उपकरण जो उचित रूप से संरक्षित न हो,
- कोई भी जीवित प्राणी जो हानिकारक हो अथवा डाक वस्तुओं को नुकसान पहुँचाने की संभावना हो
- दायित्व से छूट: अधिनियम की धारा 10 डाकघर और उसके अधिकारी को “डाकघर द्वारा प्रदान की गई किसी भी सेवा के दौरान किसी भी नुकसान, गलत डिलीवरी, देरी या क्षति के कारण किसी भी दायित्व से छूट देती है,” सिवाय ऐसे दायित्व के जो निर्धारित किए जा सकते हैं।
- गौरतलब है कि, वर्ष 1898 के अधिनियम ने भी सरकार को डाक सेवा में किसी भी चूक के लिए दायित्व से छूट दी थी, सिवाय इसके कि ऐसी जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से ली गई हो।
- दंड और अपराधों से मुक्ति : वर्तमान अधिनियम वर्ष 1898 अधिनियम के तहत सभी दंड और अपराधों को समाप्त करता है।
- उदाहरण के लिए, डाकघर के अधिकारियों द्वारा किए गए अपराध जैसे कि दुराचार, धोखाधड़ी और चोरी आदि को पूरी तरह से हटा दिया गया है।
- देय राशि की वसूली : प्रत्येक व्यक्ति जो डाकघर द्वारा प्रदान की गई सेवा का लाभ उठाता है, ऐसी सेवा के संबंध में शुल्क का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा।
- यदि कोई डाकघर द्वारा प्रदान की गई सेवा का लाभ उठाने के लिए शुल्क का भुगतान करने से इनकार करता है या उपेक्षा करता है, तो ऐसी राशि उनसे "जैसे कि यह देय भूमि राजस्व का बकाया हो" वसूली योग्य होगी।
- केंद्र की विशिष्टता की समाप्ति : अधिनियम ने वर्ष 1898 अधिनियम की धारा 4 को हटा दिया है, जो केंद्र को सभी पत्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक डाक द्वारा पहुंचाने का विशेष विशेषाधिकार देती थी।
- हालांकि, प्रभावी रूप से यह विशिष्टता वर्ष 1980 के दशक तक निजी कूरियर सेवाओं के उदय के साथ ही समाप्त हो चुकी थी।
- यह अधिनियम पहली बार निजी कूरियर सेवाओं को अपने दायरे में लाकर उन्हें विनियमित करता है।
वर्ष 2023 के डाकघर अधिनियम की आलोचना
- मौलिक अधिकारों का हनन : अधिनियम भारतीय डाक के माध्यम से प्रेषित लेखों की रोकथाम के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट नहीं करता है।
- वस्तुतः सुरक्षा उपायों की कमी से भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तियों की निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
- अपराध और दंड के प्रावधानों का निरसन : अधिनियम किसी भी अपराध और दंड को निर्दिष्ट नहीं करता है।
- उदाहरण के लिए, किसी डाक अधिकारी द्वारा डाक लेखों को अनाधिकृत रूप से खोलने पर कोई परिणाम नहीं होता है, जिससे उपभोक्ताओं की निजता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- संवैधानिक प्रतिबंधों से अलगाव : अवरोधन के आधार में 'आपातकाल' शामिल है, जो संविधान के तहत उचित प्रतिबंधों से परे हो सकता है।
- उत्तरदायित्व निर्धारण से हितों में टकराव : अधिनियम भारतीय डाक को डाक सेवाओं में चूक के लिए दायित्व से छूट देता है।
- हालांकि, उत्तरदायित्व केंद्र सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है, जो भारतीय डाक का प्रशासन भी करती है।
- इससे हितों का टकराव हो सकता है।