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मरणोपरांत प्रजनन एवं संबंधित मुद्दे

प्रारंभिक परीक्षा

(समसामयिक घटनाक्रम एवं अधिकार संबंधी मुद्दे)

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में 30 वर्षीय एक मृत व्यक्ति के माता-पिता को मरणोपरांत प्रजनन के लिए उसके क्रायोप्रिजर्व्ड वीर्य (Cryopreserved Semen) का उपयोग करने का अधिकार दिया है। इस फैसले से 60 वर्षीय दंपत्ति को उसके पुत्र की विरासत को आगे बढ़ाने की इच्छा पूरी करने की अनुमति मिल गई है। यह निर्णय प्रजनन अधिकारों एवं संपदा कानून की कानूनी मान्यता में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है।

मरणोपरांत प्रजनन के बारे में 

  • मरणोपरांत प्रजनन (Posthumous Reproduction: PHR) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology: ART) का उपयोग माता या पिता में से किसी एक की मृत्यु के बाद गर्भधारण करने और आनुवंशिक संतान पैदा करने के लिए किया जाता है।
  • PHR के तीन मुख्य प्रकार हैं : 
    • मृत पति के शुक्राणु के साथ मरणोपरांत गर्भाधान
    • मरणोपरांत भ्रूण स्थानांतरण (माता-पिता की मृत्यु से पहले गर्भधारण किए गए भ्रूण का स्थानांतरण)
    • सरोगेट मां की मदद से मृत मां के अंडों का मरणोपरांत उपयोग

इसे भी जानिए!

सहायक प्रजनन तकनीक (ART) के बारे में 

  • परिभाषा : यह एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, कृत्रिम गर्भाधान एवं सरोगेसी जैसी प्रक्रियाओं के उपयोग के माध्यम से गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
  • उद्देश्य : महिला एवं पुरुष में बांझपन से निपटने के लिए चिकित्सा तकनीकों का उपयोग
  • शुरुआत : वैज्ञानिक पैट्रिक स्टेप्टो और रॉबर्ट एडवर्ड्स द्वारा
  • लाभ : अभी तक ART से दुनिया भर में 5 मिलियन से अधिक शिशुओं का जन्म हुआ है।
  • ART के प्रमुख प्रकार :
    • इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF)
    • गैमेटे इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर (GIFT)
    • जाइगोट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर (ZIFT)
    • इंट्रासाइटोप्लाज़मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) 
    • कृत्रिम गर्भाधान (IUI)

दिल्ली उच्च न्यायालय का हालिया फैसला 

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रजनन प्रयोगशाला में संग्रहीत जमे हुए वीर्य (Frozen Semen) के नमूने को संपत्ति के रूप में मानते हुए इसे मृतक व्यक्ति के माता-पिता को सौंपने का आदेश दिया और माता-पिता को अपने मृत पुत्र का कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया है।
  • न्यायालय ने इस विषय पर प्रासंगिक क़ानूनों एवं कानूनों की अनुपस्थिति पर ध्यान देते हुए कहा कि वर्तमान सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम, 2021 और सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 इस मामले से निपटने के लिए अपर्याप्त हैं।
  • PHR संबंधी कानून के अभाव में उच्च न्यायालय का निर्णय भारतीय कानून के तहत संपत्ति की परिभाषा पर आधारित था, जिसके अनुसार ‘संपत्ति’ में मूर्त एवं अमूर्त दोनों प्रकार की संपत्ति शामिल है।
  • न्यायालय ने ब्लैक लॉ डिक्शनरी में ‘संपत्ति’ शब्द की परिभाषा के अनुसार, वीर्य को संपत्ति के रूप में माना है।
    • ‘संपत्ति’ शब्द का अर्थ है कोई भी बाह्य वस्तु जिस पर कब्ज़ा, उपयोग एवं उपभोग के अधिकार का प्रयोग किया जाता है।

इस निर्णय का महत्व 

  • न्यायालय के इस निर्णय से मृत व्यक्ति के जमे हुए अण्डों या शुक्राणुओं को पुनः प्राप्त करने के लिए पति या पत्नी के अलावा किसी अन्य पक्ष द्वारा भी न्यायालय में दावा किया जा सकता है।
  • यह निर्णय प्रजनन अधिकारों, व्यक्तिगत स्वायत्तता और अपने मृत बच्चों की ओर से निर्णय लेने में जैविक माता-पिता की भूमिका से संबंधित महत्वपूर्ण नैतिक विचारों को सामने लाता है।
  • इस निर्णय ने न केवल PHR के कानूनी एवं नैतिक आयामों को संबोधित किया है बल्कि भारतीय कानून के भीतर संपत्ति के रूप में जैविक सामग्री की विकसित होती समझ को भी रेखांकित किया है।

भारत में PHR से संबंधित कानून 

  • सहायक प्रजनन तकनीक अधिनियम, 2021 सभी प्रजनन एवं कृत्रिम गर्भाधान प्रक्रियाओं के विनियमन व पर्यवेक्षण से संबंधित है। 
  • सहायक प्रजनन तकनीक नियम, 2022 में ‘मरणोपरांत शुक्राणु की पुनर्प्राप्ति’ की प्रक्रिया निर्धारित की गई है किंतु इसमें केवल उन परिदृश्यों को शामिल किया गया है, जहाँ मृतक विवाहित है और पुनर्प्राप्ति चाहने वाला व्यक्ति जीवित साथी है।
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, यह कानून न्यायालय द्वारा ‘पोस्टमॉर्टम ग्रैंडपैरेंटहुड’ के रूप में संदर्भित मामलों में लागू होने का इरादा नहीं रखता है। 
  • सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 केवल इच्छुक युगलों या सरोगेसी के लिए चिकित्सा की जरूरत वाली महिलाओं पर लागू होता है और यह दादा-दादी को ‘इच्छुक दादा-दादी’ (Intending Grandparents) के रूप में कवर नहीं करता है।

PHR से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएं

  • दुनिया भर में PHR के कानून अलग-अलग हैं। कुछ देशों में इस पर प्रतिबंध है जबकि अन्य देशों में इसे विनियमन के साथ अनुमति दी गई है।
  • उरुग्वे, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया (विक्टोरिया), कनाडा एवं यू.के. जैसे देश किसी-न-किसी रूप में इस प्रथा की अनुमति देते हैं किंतु उनके लिए लिखित या मौखिक सहमति से लेकर लिखित समझौते, गवाहों की उपस्थिति और एक पैनल द्वारा समीक्षा जैसी कानूनी आवश्यकताएं शामिल होती हैं।

भविष्य के लिए चुनौतियां 

  • संपत्ति हस्तांतरण न्यायालय के फैसले में यह चेतावनी दी गई है कि इस तरह की संपत्ति का हस्तांतरण ‘स्वचालित नहीं हो सकता’ है। इसमें ‘मृत्यु के बाद या मृत्यु के बाद प्रजनन के मामलों में सूचित सहमति और भावी बच्चे के कल्याण’ को ध्यान में रखा जाए। 
  • नैतिक समस्याएं : PHR से कानून के समक्ष कई नैतिक प्रश्न उठते हैं, जिनमें मृतक की सहमति की धारणा से लेकर यह तथ्य भी शामिल है कि जन्म लेने वाला बच्चा आनुवंशिक माता-पिता की अनुपस्थिति में बड़ा होगा।
  • पारिवारिक समस्याएं : पुत्र के मरणोपरांत दादा-दादी बनना पारंपरिक पारिवारिक संरचना की धारणाओं को चुनौती देता है किंतु ज़्यादातर मामलों में यह इच्छा पितृसत्तात्मक मूल्यों से उपजती है, जो पितृवंशीय वंश को जारी रखने का समर्थन करते हैं।
  • विरासत की समस्या : अजन्मे बच्चे की पारिवारिक स्थिति स्पष्ट न होने से भविष्य में उसके एवं अन्य उत्तराधिकारियों के मध्य पारिवारिक संपत्ति को लेकर विवाद हो सकता है।

आगे की राह 

मरणोपरांत प्रजनन की वैधता और इस तकनीक से जन्म लेने वाले बच्चे की पारिवारिक स्थिति पर इसके परिणामों के संदर्भ में विधायी स्पष्टता आवश्यक है। सटीक एवं व्यापक विधायी प्रावधान कानूनी व न्यायिक अनिश्चितता को दूर करने, प्रजनन क्लीनिकों को स्पष्टता प्रदान करने तथा कानूनी पितृत्व और बच्चे के उत्तराधिकार के संबंध में संभावित विवादों को कम करने में मदद कर सकते हैं। इसीलिए, भारत सरकार को मरणोपरांत प्रजनन के संबंध में एक विस्तृत कानून बनाने की आवश्यकता है।

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