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भारत में संपीड़ित बायोगैस की संभावना  

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

भारत का संपीड़ित बायोगैस (CBG) क्षेत्र स्टार्टअप उद्यमियों के लिए अवसर प्रस्तुत कर रहा है। देश भर में 5,000 सी.बी.जी. परियोजनाओं को स्थापित करने से जुड़ी ‘सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (SATAT) योजना’ की इसमें प्रमुख भूमिका है।

संपीड़ित बायोगैस

  • जैव ईंधन वे ईंधन (ठोस, तरल एवं गैसीय) हैं जो बायोमास/कार्बनिक पदार्थ से प्राप्त होते हैं। 
  • जैव ईंधन पारंपरिक ईंधन की तुलना में कम CO2 उत्सर्जित करते हैं, इसलिए इन्हें मौजूदा ईंधन के साथ मिश्रित किया जा सकता है।
  • बायोगैस एक प्रकार का जैव ईंधन है जो कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय क्षरण से उत्पन्न होता है।
  • बायोगैस से हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), जल वाष्प को हटाकर संपीडित किया जाता है, इस प्रकार प्राप्त बायोगैस को संपीड़ित बायोगैस (CBG) कहते हैं। 
    • सी.बी.जी. में मीथेन (CH4) की मात्रा 90% से अधिक होती है।
    • इसका कैलोरी मान एवं गुण संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के समान होता है।

सी.बी.जी. के लाभ

  • यह देश में प्रचुर बायोमास संसाधनों का लाभ उठाते हुए सी.एन.जी. की जगह ले सकती है। इससे स्थानीय स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
  • यह आयातित संपीड़ित प्राकृतिक गैस पर निर्भरता कम कर सकती है। 
  • सी.बी.जी. मौजूदा प्राकृतिक गैस बुनियादी ढांचे में निर्बाध रूप से एकीकृत हो सकती है, जिससे नए सेटअप की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

सी.बी.जी. सम्मिश्रण की अनिवार्यता 

  • वित्त वर्ष 2024-2025 तक पारंपरिक ईंधन के साथ सी.बी.जी. का सम्मिश्रण स्वैच्छिक रखा गया है, जबकि वित्त वर्ष 2025-26 से इसे अनिवार्य किया गया है।
  • वित्त वर्ष 2025-26 के लिए कुल सी.एन.जी./पी.एन.जी. खपत का 1% हिस्सा सी.बी.जी. का होगा और वित्त वर्ष 2028-29 में इसे बढाकर 5% करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • सी.बी.जी. सम्मिश्रण : 
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था : इससे उत्पादन एवं उपभोग मॉडल में प्राकृतिक प्रणालियों को पुनर्जीवित करके एक चक्रीय अर्थव्यवस्था में अपशिष्ट व प्रदूषण को कम करने में सहायता मिलेगी।
    • शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की प्राप्ति : भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
    • विदेशी मुद्रा की बचत : सी.एन.जी./पी.एन.जी. के साथ सी.बी.जी. के सम्मिश्रण से भारत के ईंधन आयात बिल में कमी आएगी। 

राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2018 में राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति को मंजूरी दी थी।

प्रमुख प्रावधान 

  • यह नीति जैव ईंधन को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत करती है :
    • बुनियादी जैव ईंधन : पहली पीढ़ी (1G) बायोएथेनॉल और बायोडीजल
    • उन्नत जैव ईंधन : दूसरी पीढ़ी (2G) इथेनॉल, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) से ड्रॉप-इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3G) जैव ईंधन, जैव-सी.एन.जी. आदि।
  • वर्ष 2030 तक पेट्रोल में इथेनॉल के 20% और डीजल में बायोडीजल के 5% मिश्रण का सांकेतिक लक्ष्य।
  • उन्नत जैव ईंधन पर जोर देने के साथ अतिरिक्त कर प्रोत्साहन, 1G जैव ईंधन की तुलना में उच्च खरीद मूल्य के अलावा 6 वर्षों में 2G इथेनॉल जैव रिफाइनरियों के लिए 5000 करोड़ रुपये की व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण योजना।
  • मध्यवर्ती (बी-मोलासेस), गन्ने का रस, अन्य चीनी युक्त सामग्री और क्षतिग्रस्त तथा अधिशेष खाद्यान्न को प्रोत्साहित करके इथेनॉल खरीद के लिए कच्चे माल का दायरा बढ़ाना।
  • देश भर में बायोमास का मूल्यांकन करके राष्ट्रीय बायोमास भंडार विकसित करना।
  • गैर-खाद्य तिलहनों, प्रयुक्त खाना पकाने के तेल, कम समय में पकने वाली फसलों से बायो डीजल उत्पादन को प्रोत्साहन और आपूर्ति श्रृंखला तंत्र का विकास।
  • जैव ईंधन फीडस्टॉक उत्पादन, पहचाने गए फीडस्टॉक से उन्नत रूपांतरण प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में अनुसंधान, विकास एवं प्रदर्शन पर जोर।
  • राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति (NBCC) की स्थापना।

स्टार्टअप उद्यमियों के लिए सी.बी.जी. क्षेत्र में बढ़ते अवसर

    • सी.बी.जी. परियोजनाओं से उत्सर्जित  CO2 का उपयोग : प्रत्येक टन सी.बी.जी. के उत्पादन के साथ लगभग 0.5 टन CO2 भी उत्पन्न होती है, जो पर्यावरण में निर्गत कर दी जाती है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का कारण बनती है। 
      • इसे संगृहीत करके उच्च-स्तरीय अनुप्रयोगों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • किण्वित जैविक खाद का संवर्धन एवं विपणन : किण्वित जैविक खाद (FOM) कार्बन एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होती है किंतु इसमें नाइट्रोजन व पोटैशियम की कमी होती है।
  • रासायनिक उर्वरक मानकों को पूरा करने और किसानों के बीच स्वीकृति हासिल करने के लिए एफ.ओ.एम. को नाइट्रोजन व पोटैशियम से समृद्ध किया जा सकता है।
    • क्षेत्रीय स्तर पर फीडस्टॉक मैपिंग : यद्यपि फीडस्टॉक उपलब्धता पर राष्ट्रीय डाटा, जैसे अधिशेष कृषि अवशेष, नगर पालिकाओं से जैविक अपशिष्ट आदि मौजूद हैं, तथापि सी.बी.जी. परियोजनाओं के लिए अद्यतन व स्थानीयकृत अनुमानों तक पहुंच अनिवार्य है।
      • जिला स्तर पर सटीक फीडस्टॉक उपलब्धता का पूर्वानुमान लगाने के लिए एआई (AI) का उपयोग प्रभावी संयंत्र योजना की सुविधा प्रदान करता है।
    • मिश्रित फीडस्टॉक तकनीक : सी.बी.जी. उत्पादन मुख्य रूप से पांच अलग-अलग फीडस्टॉक (पशु अपशिष्ट, कृषि अवशेष, प्रेसमड, नगर पालिकाओं से जैविक अपशिष्ट और नेपियर घास) पर निर्भर करता है, प्रत्येक की विशेषता अद्वितीय भौतिक एवं रासायनिक संरचना, कुल ठोस व अस्थिर ठोस सामग्री होती है।
      • वर्तमान में आर्थिक रूप से व्यवहार्य मिश्रित फीडस्टॉक प्रसंस्करण तकनीक की अनुपस्थिति के कारण अधिकांश भारतीय संयंत्र एकल-स्रोत फीडस्टॉक का उपयोग करते हैं। 
      • मिश्रित फीडस्टॉक को संभालने के लिए सुलभ तकनीक संयत्रों को विभिन्न प्रकार के स्रोतों का उपयोग करने में सक्षम बनाएगी, जिससे सोर्सिंग व कमी के बारे में चिंताएं कम होंगी।
    • बायोरिएक्टर एवं रोगाणुओं के स्वास्थ्य की निगरानी : बायोगैस का उत्पादन अवायवीय क्षरण के माध्यम से होता है, जहां अवायवीय जीवाणु कार्बनिक पदार्थों का विखंडन अक्र्ते हैं।
      • वास्तविक समय में निगरानी और प्रतिक्रियाशील समाधानों को लागू करके बैक्टीरिया के स्वास्थ्य पर नज़र रखने से संयंत्र संचालन में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है, जिससे बिना किसी रुकावट के निरंतर उत्पादन संभव हो सकेगा।

    जैव ईंधन का वर्गीकरण

    1. पहली पीढ़ी के जैव ईंधन :  पारंपरिक जैव ईंधनों पहली पीढ़ी के जैव ईंधन कहा जाता है।

    • ये चीनी, स्टार्च या वनस्पति तेल जैसे खाद्य उत्पाद से बने होते हैं। 
    • फीडस्टॉक से बना कोई भी जैव ईंधन जिसका उपभोग मानव भोजन के रूप में भी किया जा सकता है, पहली पीढ़ी का जैव ईंधन माना जाता है।

    2. दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन : दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन का उत्पादन गैर-खाद्य फसलों, जैसे- सेल्युलोसिक जैव ईंधन एवं अपशिष्ट बायोमास (गेहूं व मकई के डंठल तथा लकड़ी) से किया जाता है। 

    • दूसरी पीढ़ी के सामान्य जैव ईंधन में वनस्पति तेल, बायोडीजल, बायोअल्कोहल, बायोगैस, ठोस जैव ईंधन एवं सिनगैस शामिल हैं। 
    • इसका उत्पादन टिकाऊ फीडस्टॉक से किया जाता है। किसी फीडस्टॉक की स्थिरता को उसकी उपलब्धता, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर उसके प्रभाव, भूमि उपयोग पर उसके प्रभाव और खाद्य आपूर्ति को खतरे में डालने की क्षमता से परिभाषित किया जाता है।
    • दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन में कोई भी खाद्य फसल शामिल नहीं होती है, हालांकि कुछ खाद्य उत्पाद दूसरी पीढ़ी के ईंधन बन सकते हैं जब वे उपभोग के लिए उपयोगी नहीं रह जाते हैं। 
    • दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन को ‘उन्नत जैव ईंधन’ भी कहा जाता है।

    3. तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन : यह शैवाल से प्राप्त जैव ईंधन हैं। इन जैव ईंधनों को उनके अद्वितीय उत्पादन तंत्र और पहली एवं दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन की अधिकांश कमियों को कम करने की क्षमता के कारण इसे अलग वर्ग में रखा गया है।

    • इसका उत्पादन कम लागत एवं अधिक उपज देने वाला माना जाता है, जो वर्तमान पारंपरिक 'पहली पीढ़ी' के जैव ईंधन फीडस्टॉक से प्राप्त होने वाली प्रति इकाई ऊर्जा से लगभग 30 गुना अधिक है।

    4. चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन : इन ईंधनों के उत्पादन में, उच्च कार्बन मात्रा के लिए आनुवंशिक रूप से तैयार की गई फसलों का बायोमास के रूप उपयोग किया जाता है। 

                     

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