(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)
चर्चा में क्यों?
अफ़गानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी और उनके प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक शक्ति-साझाकरण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इसका उद्देश्य महीनों से चली आ रही राजनीतिक अनिश्चितता को समाप्त करना है।
मुद्दा
- पिछले वर्ष सितम्बर में अफ़गानिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव सम्पन्न हुए थे। मतदान के लगभग पाँच महीने बाद फ़रवरी, 2020 में अशरफ़ ग़नी को दोबारा राष्ट्रपति चुनाव का विजेता घोषित किया गया था।
- इस चुनाव में देश के पूर्व मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला-अब्दुल्ला उनके मुख्य प्रतिद्वंदी थे। चुनाव परिणाम को अस्वीकार करते हुए श्री अब्दुल्ला ने स्वयं की जीत का दावा किया था। उन्होंने अशरफ़ ग़नी के विरुद्ध समानांतर सरकार की घोषणा करते हुए शपथ समारोह का भी आयोजन किया था।
- श्री अब्दुल्ला ने चुनाव परिणाम में धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। साथ ही यह भी कहा कि इस चुनाव में देश के एक छोटे से हिस्से के लोगों ने ही मतदान किया था। वर्ष 2001 में तालिबान के द्वारा बाहर होने के बाद से इस वर्ष मतदान का प्रतिशत भी सबसे कम था।
- महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चुनाव परिणाम की घोषणा अमेरिका-तालिबान शांति समझौते के कुछ समय पूर्व ही की गई। इस शांति समझौते में अमेरिका ने अफ़गान सरकार के साथ सीधे बातचीत नहीं किया।
- उल्लेखनीय है की इससे पूर्व वर्ष 2014 के चुनावों में भी दोनों नेताओं ने जीत का दावा किया था तथा अमेरिका के दबाव में राष्ट्रीय एकता सरकार का गठन किया था।
- इस कलह के बीच ट्रम्प प्रशासन ने घोषणा की थी कि यदि दोनों नेता अपने मतभेदों को नहीं सुलझा पाते हैं तो अमेरिका, अफ़गानिस्तान को दी जाने वाली सहायता में 1 बिलियन डॉलर की कटौती कर देगा।
समझौते के प्रमुख बिंदु
- चुनाव परिणाम के लगभाग दो माह बाद श्री ग़नी और श्री अब्दुल्ला सत्ता के समझौते पर पहुँचे हैं।
- इस समझौते के अनुसार, श्री अशरफ़ ग़नी राष्ट्रपति बने रहेंगे, जबकि श्री अब्दुल्ला तालिबान के साथ शांति वार्ता का नेतृत्व करेंगे।
- इस समझौते के अनुसार, श्री अब्दुल्ला देश के राष्ट्रीय सुलह उच्च परिषद (National Reconciliation High Council) का नेतृत्व करेंगे। साथ ही अब्दुल्ला समर्थक कुछ सदस्यों को ग़नी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा।
- सुलह परिषद को अफ़गानिस्तान की शांति प्रक्रिया से सम्बंधित सभी मामलों को सम्भालने और उसे मंजूरी देने का अधिकार दिया गया है।
समझौते का महत्त्व
- यह समझौता उस समय हुआ है, जब अफ़गान अधिकारी वर्षों से जारी हिंसा को समाप्त करने के लिये तालिबान के साथ शांति वार्ता में प्रवेश करने की उम्मीद कर रहे हैं।
- आशा है कि यह समझौता पिछले वर्ष के विवादित राष्ट्रपति चुनाव से पूर्व मौजूद शक्ति के संतुलन को बनाए रखने में मदद करेगा।
- 18 वर्षों तथा अरबों डॉलर की अंतर्राष्ट्रीय सहायता के बावजूद, अफ़गानिस्तान की स्थिति काफी ख़राब है। अफ़गानिस्तान में वर्ष 2012 में गरीबी का स्तर 35 % था जो बढ़कर पिछले वर्ष 55 % से अधिक हो गया। सत्ता में स्थायित्त्व और शांति प्रक्रिया में तेज़ी से ऐसी स्थिति में सुधार की सम्भावना है।
अमेरिका-तालिबान शांति समझौता
- अमेरिकी सरकार और तालिबान के बीच 29 फरवरी, 2020 को एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- इस समझौते के अनुसार, अमेरिकी और नाटो (North Atlantic Treaty Organization) सैनिकों को चरणबद्ध तरीके से अफ़गानिस्तान छोड़ना है।
- इस सौदे को दशकों से युद्ध में फँसे अफ़गानिस्तान के लिये शांति का सबसे अच्छा मौका माना जा रहा है। इस समझौते के बाद से, तालिबान और अफ़गान सरकार के मध्य अंतर-अफ़गान वार्ता शुरू करने के लिये अमेरिका कोशिश कर रहा है परंतु श्री ग़नी और श्री अब्दुल्ला के बीच राजनीतिक उथल-पुथल व व्यक्तिगत मतभेद ने वार्ता को बाधित किया है।
भारत के लिये अफ़गानिस्तान में शांति का महत्व
- भारत ने इस समझौते का स्वागत किया है। इसने स्थायी शांति और स्थिरता की स्थापना के लिये नए सिरे से प्रयास करने का आह्वान किया है। साथ ही अफ़गानिस्तान में बाहरी देशों (मुख्यत: पाकिस्तान) द्वारा प्रायोजित आतंकवाद और हिंसा को समाप्त करने का प्रयास तेज़ करने की बात भी दोहराई है।
- आर्थिक रूप से, यह तेल और खनिज सम्पन्न मध्य एशियाई देशों का प्रवेश द्वार है, अतः यहाँ की स्थिर सरकार भारत के आर्थिक हित में है।
- अफ़गानिस्तान पिछले पाँच वर्षों में भारत द्वारा विदेशी सहायता प्राप्त करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। इन प्रयासों और भारत द्वारा दी गई सहायता से पाकिस्तान की उपस्थिति कमज़ोर करने में सहायता मिलेगी।
- उल्लेखनीय है की भारत किसी भी प्रकार से अफ़गानिस्तान शांति वार्ता में तालिबान के साथ सीधे वार्ता का विरोधी रहा है। कई बार ऐसा हुआ है की तालिबान के कारण ही भारत ने अफ़गानिस्तान शांति वार्ता का बॉयकाट किया है।
- हालाँकि बदली हुई परिस्थितियों के कारण भारत ने अनाधिकारिक तौर पर अपने दो पूर्व राजनयिकों को तालिबान के साथ वार्ता के लिये रूस भेजा था।