(प्रारंभिक परीक्षा : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास तथा नई प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भविष्य में ‘भारी’ अंतरिक्ष प्रक्षेपणों के लिए आवश्यक सेमी-क्रायोजेनिक इंजन (SE2000) पर सफलतापूर्वक परीक्षण किया। यह क्रायोजेनिक चरण को अंतिम रूप देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जहां प्रक्षेपण वाहनों के बूस्टर चरणों (Booster Stages) को शक्ति (ऊर्जा) प्रदान करने की प्रक्रिया को क्रियान्वित किया गया।
परीक्षण के बारे में
- वैज्ञानिक रूप से इस परीक्षण को ‘पावर हेड टेस्ट आर्टिकल (PHTA)’ के नाम से जाना जाता है। यह सेमी-क्रायो इंजन के विकास के लिए पूर्ववर्ती हार्डवेयर परीक्षण है।
- PHTA परीक्षण इंजन के कुछ महत्वपूर्ण उप-प्रणालियों, जैसे- गैस जनरेटर, टर्बो पंप, प्री-बर्नर एवं कंट्रोल कंपोनेंट्स के एकीकृत प्रदर्शन को मान्य करने के लिए किया जाता है।
- यह परीक्षण तीन मीटर की ऊंचाई में ‘थ्रस्ट चैम्बर’ के बिना ही सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया गया।

सेमी-क्रायोजेनिक इंजन
- सेमी-क्रायोजेनिक इंजन एक प्रकार का रॉकेट इंजन है जो तरल एवं गैसीय प्रणोदकों के संयोजन का उपयोग करता है। इन्हें ‘सेमी-क्रायोजेनिक’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये क्रायोजेनिक इंजन की तुलना में अधिक तापमान पर कार्य करते हैं और पारंपरिक तरल रॉकेट इंजन की तुलना में ठंडे होते हैं।
- सेमी-क्रायोजेनिक इंजन में तरल ऑक्सीजन एवं केरोसिन के संयोजन का उपयोग किया जाता है जिसमें तरल ऑक्सीजन का उपयोग ऑक्सीडाइज़र के रूप में किया जाता है।
- इंजन में प्रयोग किए गए केरोसिन को आसानी से भंडारित किया जा सकता है। यह संयोजन उच्च घनत्व आवेग (क्रायोजेनिक के संबंध में), कम विषाक्तता (भंडारण के संबंध में) और लागत प्रभावशीलता जैसे लाभ प्रदान करता है।
- विदित है कि क्रायोजेनिक इंजन में तरल ऑक्सीजन एवं तरल हाइड्रोजन का प्रयोग होता है। तरल हाइड्रोजन का रखरखाव चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसे -253 डिग्री सेल्सियस पर भंडारित करना पड़ता है और यह बहुत ज्वलनशील होता है।
- अर्ध-क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणाली परियोजना में 2000 किलोन्यूटन (kN) के अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन और ‘SC120 चरण’ के डिजाइन एवं विकास की परिकल्पना की गई है जो भविष्य की भारतीय अंतरिक्ष परिवहन प्रणालियों के लिए भारी भार उठाने की क्षमता के विकास को सक्षम बनाएगा।
- लॉन्च व्हीकल एमके III (LVM3) को उसके कई भावी अंतरिक्ष मिशनों के लिए C32 क्रायोजेनिक अपर स्टेज से सुसज्जित किया जाएगा। अपने पूर्ववर्ती C25 की तुलना में C32 अतिरिक्त मात्रा में प्रणोदक ले जाने में सक्षम है, जिससे अंतरिक्ष मिशन की आयु बढ़ जाती है।
इसे भी जानिए!
- प्रणोदन प्रणाली रॉकेट को पृथ्वी से उड़ान भरने, सघन वायुमंडल को पार करने और बाद में अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए शक्ति प्रदान करती है। उपयुक्त प्रणोदक प्रणाली का चयन आवश्यक थ्रस्ट, पुन: प्रयोज्यता, लागत एवं आंतरिक क्षमता पर आधारित है।
- इसरो लिक्विड ऑक्सीजन (LOX), लिक्विड हाइड्रोजन (LH2) और LOX-केरोसिन-आधारित प्रणोदन प्रणाली जैसे पर्यावरण के अनुकूल व हरित प्रणोदकों का उपयोग कर रहा है।
- इसरो द्वारा अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (NGLV) विकसित किया जा रहा है जिसे सभी गगनयान मिशनों के लिए तैनात किया जाएगा।
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