(मुख्य परीक्षा, समान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ, विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान) |
संदर्भ
हाशिमपुरा हत्याकांड के दोषियों ने फरलो (Furlough) के संबंध में ‘दिल्ली जेल नियमावली’ के प्रावधान के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। सामान्यत: फरलो देने का अधिकार कार्यपालिका के पास होता है किंतु दिल्ली जेल नियमावली के अनुसार फरलो देने का अधिकार उस न्यायालय को है जहाँ दोषसिद्धि के खिलाफ अपील लंबित है।
क्या है फरलो
- ‘फरलो’ से तात्पर्य किसी कैदी को एक विशिष्ट अवधि के लिए दी गई अस्थायी रिहाई से है जो सामान्यत: पारिवारिक संबंधों को बनाए रखने या व्यक्तिगत मामलों को निपटाने के लिए दी जाती है।
- इसे अच्छे आचरण वाले कैदियों के लिए एक अधिकार माना जाता है। पैरोल के विपरीत यह वस्तुत: कुछ शर्तों के तहत जेल से प्राप्त एक अल्पावधि अवकाश है।
- फरलो एवं पैरोल दोनों ही जेल मैनुअल और जेल नियम के अधीन हैं जो कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में शामिल हैं।
- दोनों ही सशर्त रिहाई है जो जेल में अच्छे व्यवहार एवं विशिष्ट अपराध न करने पर आधारित होती है।
- भारतीय संविधान की अनुसूची 7 के तहत जेल राज्य सूची का विषय है। इसलिए भारत के विभिन्न राज्यों में फरलो के विनियमन के संबंध में अलग-अलग प्रावधान है।
भारत में फरलो के लिए विधिक प्रावधान
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 473 के अनुसार जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दण्डित किया जाता है, तो समुचित सरकार किसी भी समय, बिना किसी शर्त के या शर्तों के अधीन दण्डित व्यक्ति की सजा के कार्यान्वयन को निलंबित कर सकती है या उस सजा के पूरे हिस्से या किसी हिस्से को माफ कर सकती है।
- यदि कोई शर्त, जिसके आधार पर सजा को निलंबित या माफ किया गया है, समुचित सरकार की राय में पूरी नहीं होती है, तो समुचित सरकार निलंबन या माफी को रद्द कर सकती है।
जेल अधिनियम, 2023
- तीन वर्ष की कैद पूरी होने के बाद जेल में अच्छे आचरण और अनुशासन को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहन के रूप में सक्षम प्राधिकारी द्वारा पात्र दोषियों को एक वर्ष में 14 दिनों के लिए फरलो दी जा सकती है।
- संघ के सशस्त्र बलों से संबंधित किसी भी कानून द्वारा शासित कैदियों के लिए फरलो सशस्त्र बल कानूनों के प्रावधानों के अधीन होगा।
- सार्वजनिक सुरक्षा और पैरोल जंपिंग को रोकने के लिए कैदियों की आवाजाही एवं गतिविधि की निगरानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की उनकी इच्छा पर फरलो दी जा सकती है।
- फरलो की अवधि के दौरान कैदी द्वारा कोई भी उल्लंघन फरलो को रद्द करने के साथ-साथ नियमों के तहत निर्धारित भविष्य में दी जाने वाली किसी भी फरलो से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
- यदि फरलो पर आया कोई कैदी नियत तिथि पर आत्मसमर्पण करने में विफल रहता है, तो जेल के प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचना दिए जाने पर पुलिस कैदी को गिरफ्तार करेगी और विधिक प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई करेगी।
फरलो एवं पैरोल में अंतर
फरलो
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पैरोल
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- इसके तहत दोषी को जेल से एक निश्चित अवधि के लिए रिहा किए जाने के बावजूद सजा जारी रहती है।
- उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को 10 साल की सजा सुनाई गई है और उसे 30 दिनों के लिए फरलो पर रिहा किया जाता है, तो वह प्रभावी रूप से 9 साल 11 महीने जेल में रहेगा और फिर भी माना जाएगा कि उसने अपनी सजा पूरी कर ली है।
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- जब दोषी को पैरोल पर रिहा किया जाता है, तो उसकी सजा निलंबित हो जाती है लेकिन सजा की अवधि बरकरार रहती है।
- उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को 10 साल की सजा सुनाई गई है और उसे 30 दिनों के लिए पैरोल दी जाती है, तो पैरोल से आने के बाद भी उसकी सजा की अवधि 10 वर्ष ही रहेगी।
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- फरलो सामान्यत: लंबी अवधि के कारावास के मामले में और एक निश्चित अवधि जेल में बिताने के बाद दी जाती है।
- इसका उद्देश्य कैदियों को एकांत में रहने से रोकना, उन्हें पारिवारिक और सामाजिक संबंध बनाने की अनुमति देना, अच्छा आचरण बनाए रखने के लिए प्रेरित करना और जेल में अनुशासित रहना है।
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- पैरोल अल्पावधि कारावास में दी जाती है, ताकि बीमारी, फसलों की बुवाई एवं कटाई जैसी कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में कैदियों को राहत प्रदान करने के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील की जा सके।
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- फरलो जेल के उप महानिरीक्षक द्वारा दी जाती है।
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- पैरोल संभागीय आयुक्त द्वारा दी जाती है।
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- फरलो का मतलब कारावास में एकांत होने की दशा को तोड़ना होता है।
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- पैरोल के लिए विशिष्ट कारणों की आवश्यकता होती है।
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- फरलो देने के मामले में सीमा होती है।
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- पैरोल कई बार दी जा सकती है।
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दिल्ली जेल नियम, 2018
- दिल्ली जेल नियम, 2018 का अध्याय XIX फरलो और पैरोल से संबंधित है।
- यदि किसी दोषी की अपील उच्च न्यायालय में लंबित है या उच्च न्यायालय में अपील दायर करने की अवधि समाप्त नहीं हुई है, तो कार्यपालिका द्वारा ‘फरलो प्रदान नहीं किया जाएगा’ और दोषी के लिए न्यायालय से उचित निर्देश प्राप्त करना होगा।
फरलो के संबंध में न्यायिक निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय
- दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने दिल्ली जेल नियम, 2018 नियम 1224 के नोट 2 की व्याख्या करते हुए कहा कि नोट में ‘उच्च न्यायालय’ शब्द का अर्थ अपीलीय न्यायालय है, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय भी शामिल होगा।
- ऐसे में यदि किसी दोषी की अपील सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है, तो केवल सर्वोच्च न्यायालय ही फरलो देने का निर्देश दे सकता है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय उक्त जेल नियम की संवैधानिक वैधता का भी परीक्षण कर रही है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय इस बात पर नियम का परीक्षण करेगा कि क्या यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।
- न्यायालय इस बात पर भी नियम की संवैधानिक वैधता का परीक्षण करेगा कि क्या दोषी द्वारा अच्छे आचरण के बावजूद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील लंबित होने के कारण फरलो से इनकार करना सुधारात्मक दृष्टिकोण के सिद्धांत के विपरीत होगा।
नारायण साईं वाद, 2021
- न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें बलात्कार के दोषी एवं स्वयंभू संत आसाराम बापू के पुत्र नारायण साईं को 14 दिन की फरलो दी गई थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि फरलो निरपेक्ष अधिकार नहीं है और यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।
- जेल अधीक्षक ने साईं को फरलो देने के लिए नकारात्मक राय दी है क्योंकि उसके सेल से एक मोबाइल फोन मिला था।