(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।) |
संदर्भ
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के केंद्र-शासित प्रदेश के रूप में गठन के बाद पहली बार यहाँ विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए। ऐसे में नवगठित विधानसभा को प्रदत्त शक्तियों के संबंध में चर्चा आवश्यक है।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019
- वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू –कश्मीर को एक केंद्र-शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था।
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 द्वारा दो केंद्र-शासित प्रदेशों का गठन किया गया :
- गैर-विधायिका वाला लद्दाख केंद्र-शासित प्रदेश
- विधायिका सहित जम्मू-कश्मीर केंद्र-शासित प्रदेश
- इस अधिनियम के माध्यम से संविधान की पहली अनुसूची में संशोधन किया गया जिसमें सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को सूचीबद्ध किया गया है।
- इसके द्वारा नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 3 में भी संशोधन किया गया।
- अधिनियम की धारा 13 के अनुसार पुडुचेरी केंद्र-शासित प्रदेश के प्रशासन से संबंधित संविधान का अनुच्छेद 239A (स्थानीय विधानमंडलों या मंत्रिपरिषद या कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए दोनों का निर्माण) जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश पर भी लागू होगा।
केंद्र-शासित प्रदेश दिल्ली का प्रशासन
- दिल्ली भी विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है। इसके लिए भारतीय संविधान में अनुच्छेद 239AA के तहत अलग से प्रावधान किया गया है।
- राष्ट्रीय राजधानी के रूप में दिल्ली की एक अनूठी संवैधानिक स्थिति है, जो सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कई मुकदमों का विषय रही है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2018 और वर्ष 2023 में दिए गए निर्णयों में दिल्ली की विधायिका की शक्तियों को बरकरार रखा है।
- हालाँकि हाल के वर्षों में उपराज्यपाल और राज्य सरकार के बीच निरंतर राजनीतिक टकराव देखा गया है।
विधायिका बनाम उपराज्यपाल की शक्तियाँ
- दिल्ली केंद्र-शासित प्रदेश के मामले में तीन विषय भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस उपराज्यपाल के लिए आरक्षित है।
- दिल्ली में 'सेवाओं' या नौकरशाही पर नियंत्रण राज्य और केंद्र सरकार के बीच विवाद का विषय रहा है।
- सर्वोच्च ने यह स्पष्ट किया है कि दिल्ली के उपराज्यपाल तीन आरक्षित विषयों के अलावा अन्य विषयों पर स्वतंत्र विवेक का प्रयोग नहीं कर सकते।
- हालाँकि केंद्र सरकार ने वर्ष 2023 में एक अधिनियम द्वारा उपराज्यपाल की शक्तियों में विस्तार किया जिससे नौकरशाही उपराज्यपाल के अधीन आ गईं।
- यह मामला अभी भी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।
- दिल्ली का भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (Anti Corruption Bureau : ACB) भी राज्य और केंद्र सरकार के बीच एक मुद्दा रहा है।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वर्ष 2015 में एक अधिसूचना जारी की जिसके अनुसार दिल्ली सरकार का ACB पर नियंत्रण केवल उस सीमा तक होगा जहाँ तक वह दिल्ली के नौकरशाहों के मामलों से संबंधित है, न कि दिल्ली के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में सरकारी अधिकारियों से।
- दिल्ली सरकार के अधीन कार्यरत केंद्रीय सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए गृह मंत्रालय की सहमति की आवश्यकता होती है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की शक्तियाँ
- वर्ष 1947 के विलय पत्र के अनुसार जम्मू-कश्मीर ने केवल रक्षा, विदेशी और संचार संबंधी मामलों को भारत सरकार को सौंपा था।
- पूर्व के अनुच्छेद 370 के तहत संसद के पास जम्मू-कश्मीर के संबंध में सीमित विधायी शक्तियाँ थीं।
- हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर के संबंध में केंद्र सरकार की कानून बनाने की शक्ति का विस्तार किया गया है।
- वर्ष 2019 के पुनर्गठन अधिनियम द्वारा स्थापित संरचना ने राज्य विधानसभा की तुलना में उपराज्यपाल की भूमिका में अत्यधिक वृद्धि की।
- विधानसभा की विधायी शक्ति की सीमा से संबंधित अधिनियम की धारा 32 के अनुसार विधानसभा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पूरे या उसके किसी भी हिस्से के लिए राज्य सूची में शामिल किसी भी मामले के संबंध में कानून बना सकती है।
- हालाँकि वह सार्वजनिक व्यवस्था एवं पुलिस या भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में उल्लेखित केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित किसी भी विषय पर कानून नहीं बना सकती है।
- पुनर्गठन अधिनियम 2019 में वित्तीय विधेयकों से संबंधित धारा 36 के अनुसार कोई विधेयक या संशोधन उपराज्यपाल की सिफारिश के बिना विधान सभा में पेश नहीं किया जाएगा।
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- यदि ऐसा विधेयक अन्य पहलुओं के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश की विधायिका द्वारा लिए गए या किए जाने वाले किसी भी वित्तीय दायित्व के कानून में संशोधन से संबंधित है।
- इस प्रावधान का व्यापक महत्व है क्योंकि वस्तुतः प्रत्येक नीतिगत निर्णय केंद्र शासित प्रदेश के लिए वित्तीय दायित्व उत्पन्न कर सकता है।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की शक्तियाँ
- वर्ष 2019 के पुनर्गठन अधिनियम में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की शक्तियों को भी निर्दिष्ट किया गया है।
- अधिनियम की धारा 53 के अनुसार उपराज्यपाल अपने कार्यों के निष्पादन में, निम्नलिखित मामलों में अपने विवेक से कार्य करेंगे :
- जो विधान सभा को प्रदत्त शक्तियों के दायरे से बाहर है।
- जिसमें उन्हें किसी कानून के तहत अपने विवेक से कार्य करने या कोई न्यायिक कार्य करने की आवश्यकता है।
- अखिल भारतीय सेवाओं और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से संबंधित है।
- इसका अर्थ है कि सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस के अलावा नौकरशाही एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो भी उपराज्यपाल के नियंत्रण में होंगे।
- अधिनियम में यह भी प्रावधान किया गया है कि उपराज्यपाल का अपने विवेक से लिया गया निर्णय अंतिम होगा और उपराज्यपाल द्वारा किए गए किसी भी कार्य की वैधता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उन्हें अपने विवेक से कार्य करना चाहिए था या नहीं।
- मंत्रियों द्वारा उपराज्यपाल को दी गई किसी भी सलाह की किसी भी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी।
- हाल ही में उपराज्यपाल की शक्तियों का विस्तार करते हुए उन्हें महाधिवक्ता व विधि अधिकारियों को नियुक्त करने और अभियोजन एवं प्रतिबंधों के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार भी प्रदान किया गया है।