व्यापक रूप से खेती की जाने वाली लघु अवधि की धान की किस्म ‘पीआर-126’ पंजाब में किसानों के बीच विवाद के केंद्र में है।
पीआर-126
- पीआर-126 (PR-126) धान की एक किस्म है। इसे वर्ष 2016 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने पेश किया था। यह किस्म अपनी कम समय में उत्पादन, उच्च उपज, न्यूनतम कीटनाशक आवश्यकताओं और उत्कृष्ट उत्पादन अनुपात (Out-turn Ratio : OTR) के कारण किसानों के बीच लोकप्रिय हो गई।
- यह प्रति एकड़ 30 क्विंटल से अधिक की औसत उपज प्रदान करती है।
- वर्ष 2023 में पीआर-126 की खेती लगभग 8.59 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गई, जो पंजाब में गैर-बासमती धान की खेती वाले क्षेत्र का लगभग 33% है। इस वर्ष यह संख्या बढ़कर 44% होने की उम्मीद है।
- यद्यपि पीआर-126 किस्म सभी वैज्ञानिक मानदंडों को पूरा करता है और इस पर व्यापक अनुसंधान भी हुआ है किंतु इसमें अन्य संकर प्रजातियों को मिलाने के कारण इसकी खरीद में कमी आ रही है।
विरोध का कारण
- पीआर 126 के साथ अन्य संकर किस्मों को मिलाए जाने से चावल की पैदावार में कमी आना
- अन्य संकर किस्मों में अधिक चावल टूटने के कारण मिल मालिकों द्वारा मिलावट वाले पीआर 126 को लेने से इनकार करना
- भारतीय खाद्य निगम (FCI) के मानदंडों के अनुसार, प्रत्येक 100 किलोग्राम धान से मिलर को कम-से-कम 67 किलोग्राम चावल उपलब्ध कराना होता है, जिसमें से 75% चावल पूर्ण अनाज (बिना टूटा) होना चाहिए।
- कुछ संकर किस्मों में पूर्ण अनाज का प्रतिशत 40 से भी कम होना
- अन्य संकर किस्मों को निजी कंपनियों द्वारा तैयार करना और विश्वविद्यालय द्वारा न इसकी सिफारिश करना और न ही इसका परीक्षण करना