(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना। संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।) |
संदर्भ
- मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफा देने के बाद पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
- राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से रिपोर्ट मिलने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत इसकी उद्घोषणा जारी की।
- उद्घोषणा के अनुसार राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट हैं कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि मणिपुर राज्य की सरकार भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती।
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राष्ट्रपति शासन के संबंध में संवैधानिक प्रावधान
- भारत में राष्ट्रपति शासन किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने पर राज्य सरकार को निलंबित कर देने तथा केन्द्र सरकार द्वारा प्रत्यक्ष शासन लागू करने को संदर्भित करता है।
- इसे केन्द्रीय शासन या राज्यपाल शासन के नाम से भी जाना जाता है।
- आपातकालीन प्रावधान संविधान के भाग XVIII में दिए गए हैं। अनुच्छेद 355 और 356 मुख्य रूप से इस भाग के अंतर्गत किसी राज्य में सरकार के मामलों से संबंधित हैं।
- अनुच्छेद 355 के अनुसार प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से संरक्षण प्रदान करना केंद्र सरकार का कर्तव्य है।
- संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्य के राज्यपाल से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर यदि राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट होता है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि किसी राज्य की सरकार भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाई जा सकती है।
- तब वह उद्घोषणा के माध्यम से संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य सरकार के सभी कार्यों और उस राज्य के राज्यपाल में निहित या उसके द्वारा प्रयोग की जा सकने वाली सभी शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित होगी।
- इसके तहत राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद द्वारा या उसके प्राधिकार के तहत प्रयोग की जाती हैं।
- हालाँकि, इस दौरान उच्च न्यायालयों का कामकाज अपरिवर्तित रहता है।
- संविधान के अनुच्छेद 356 (3) के तहत राष्ट्रपति शासन की घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा दो महीने के भीतर मंजूरी मिलनी चाहिए।
- मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति शासन की घोषणा को प्रत्येक बार छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।
- संसद तीन साल तक के लिए छह महीने के विस्तार को मंजूरी दे सकती है।
- आगे के विस्तार को केवल तभी मंजूरी दी जा सकती है :
- जब देश या उस विशेष राज्य में आपातकाल घोषित किया गया हो
- यदि चुनाव आयोग यह प्रमाणित करता है कि राज्य चुनाव कराने में कठिनाइयों के कारण राष्ट्रपति शासन आवश्यक है।
- वर्तमान में मणिपुर एकमात्र ऐसा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश है जिसकी विधानसभा राष्ट्रपति शासन के अधीन है।
- अब तक मणिपुर व उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक बार (10) राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।
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प्रभाव
- राष्ट्रपति की ओर से राज्यपाल राज्य का प्रशासन करता है। उसे राज्य के मुख्य सचिव और अन्य सलाहकार/प्रशासक सहायता करते हैं।
- राष्ट्रपति के पास यह घोषित करने का अधिकार है कि राज्य विधानमंडल की शक्तियों का प्रयोग संसद द्वारा किया जाएगा।
- राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधान सभा को निलंबित या भंग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संसद के सत्र में न रहने पर राष्ट्रपति राज्य के प्रशासन के संबंध में अध्यादेश जारी कर सकते हैं।
मणिपुर के संदर्भ में
- स्वतंत्रता के बाद से, विभिन्न राज्यों में प्राय: राष्ट्रपति शासन लगाया गया है। लेकिन केंद्र तथा राज्य में एक ही दल के सत्ता में रहने के बावज़ूद राष्ट्रपति शासन लागू होने का यह उदाहरण दुर्लभ है।
- राष्ट्रपति शासन लागू होने के पश्चात मणिपुर विधानसभा निलंबित अवस्था में रहेगी। हालाँकि इसे भंग नहीं किया गया है।
- राज्य विधानसभा का कार्यकाल वर्ष 2027 तक है। इसके सदस्य विधायक बने रहेंगे। ऐसी स्थिति में राजनीतिक दलों को बाद में सरकार बनाने का प्रयास करने का अवसर मिलता है।
- अब मणिपुर में प्रशासनिक और अन्य सुरक्षा संबंधी निर्णय राज्यपाल द्वारा लिए जाएंगे।
- पिछली बार मणिपुर में 2 जून 2001 से 6 मार्च 2002 तक राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
राष्ट्रपति शासन के संदर्भ में विभिन्न आयोगों के सुझाव
- केंद्र-राज्य संबंधों पर सरकारिया आयोग (1987), संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (2002) और केंद्र-राज्य संबंधों पर पुंछी आयोग (2010) सभी ने टिपण्णी की कि अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार पर एक कर्तव्य लागू करने के साथ ही उसे उस कर्तव्य के प्रभावी प्रदर्शन के लिए आवश्यक कार्रवाई करने की शक्ति भी प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करना अत्यंत गंभीर और तात्कालिक परिस्थितियों में अंतिम उपाय के रूप में ही इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति शासन के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
एस.आर. बोम्मई वाद, 1994
- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट फैसले के बाद ही राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग को प्रतिबंधित किया गया था।
- न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 356 को सामान्य कानून और व्यवस्था के विघटन के बजाय केवल संवैधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में ही लगाया जाना चाहिए।
- न्यायालय के अनुसार राष्ट्रपति शासन न्यायिक समीक्षा के अधीन है और राजनीतिक कारणों से इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ वाद, 1977
इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 355 की संकीर्ण व्याख्या की थी, जिसके अनुसार अनुच्छेद 356 का प्रयोग उचित था।
अन्य वाद
- बाद के मामलों जैसे कि नागा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ (1998), सर्बानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ (2005), और एच.एस. जैन बनाम भारत संघ (1997) में अनुच्छेद 355 के संबंध में कानूनी स्थिति बदल गई है।
- इन मामलों में अनुच्छेद 355 के तहत कार्रवाई के दायरे को विस्तृत किया गया है, ताकि संघ को राज्य की रक्षा करने और संवैधानिक शासन सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए सभी वैधानिक एवं संवैधानिक रूप से उपलब्ध कार्रवाइयों की अनुमति दी जा सके।