क्या है प्रेस्टन वक्र
- प्रेस्टन वक्र (Preston Curve) एक निश्चित प्रायोगिक या मूलानुपाती संबंध (Empirical Relationship) को संदर्भित करता है जो किसी देश में जीवन प्रत्याशा एवं प्रति व्यक्ति आय के बीच का प्रमाण होता है।
- इस वक्र के अनुसार, शिशु व मातृ मृत्यु दर, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा आदि जैसे अन्य विकास संकेतक भी तब बेहतर होते हैं जब किसी देश की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
किसने और कब प्रतिपादित किया ये वक्र
इस वक्र को सर्वप्रथम अमेरिकी समाजशास्त्री सैमुअल एच. प्रेस्टन ने अपने शोधपत्र (वर्ष 1975 में) ‘मृत्यु दर एवं आर्थिक विकास के स्तर के बीच बदलते संबंध’ में प्रस्तावित किया था।
वक्र क्या बताता है?
- प्रेस्टन के अनुसार, धनी देशों में रहने वाले लोगों का जीवन काल प्राय: निर्धन देशों में रहने वाले लोगों की तुलना में अधिक होता है।
- ऐसा संभवतः इसलिए है क्योंकि धनी देशों में लोगों के पास स्वास्थ्य सेवा तक बेहतर पहुँच है, वे बेहतर शिक्षित हैं, स्वच्छ परिवेश में रहते हैं और बेहतर पोषण आदि प्राप्त करते हैं।
- जब कोई निर्धन देश विकसित होता है, तो उसकी प्रति व्यक्ति आय बढ़ जाती है और जीवन प्रत्याशा में उल्लेखनीय वृद्धि होती है क्योंकि लोग केवल निर्वाह कैलोरी से अधिक उपभोग करने में सक्षम होते हैं तथा बेहतर स्वास्थ्य सेवा आदि प्राप्त करते हैं।
- भारतीयों की औसत प्रति व्यक्ति आय वर्ष 1947 में लगभग ₹9,000 प्रति वर्ष से बढ़कर वर्ष 2011 में लगभग ₹55,000 प्रति वर्ष हो गई। इस अवधि में भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष से बढ़कर 66 वर्ष से अधिक हो गई है।
- हालांकि, प्रति व्यक्ति आय एवं जीवन प्रत्याशा के बीच धनात्मक संबंध एक निश्चित बिंदु के बाद समाप्त होने लगता है। दूसरे शब्दों में किसी देश की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से उसकी आबादी की जीवन प्रत्याशा में एक बिंदु से ज़्यादा वृद्धि नहीं होती है क्योंकि मानव जीवन काल को अनिश्चित काल तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
वक्र की आलोचना
- कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि जीवन प्रत्याशा में अधिकांश सुधार प्रेस्टन वक्र में बदलाव के कारण आए हैं न कि वक्र के साथ-साथ चलने के कारण। अर्थात निम्न प्रति व्यक्ति आय स्तरों पर भी देशों ने उच्च जीवन प्रत्याशा प्राप्त की है।
- इन विशेषज्ञों के अनुसार, निम्न आय स्तरों पर जीवन प्रत्याशा में ऐसा सुधार चिकित्सा प्रौद्योगिकी में सुधार के कारण हो सकता है, जैसे कि जीवन रक्षक टीकों का विकास।
- हालाँकि, इस दृष्टिकोण के आलोचक तर्क देते हैं कि तकनीकी उन्नति स्वयं आय के स्तर से जुड़ी हुई है। धनी देशों के पास बेहतर तकनीकें होती हैं।