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निवारक निरोध, एक औपनिवेशिक विरासत 

प्रारंभिक परीक्षा - निवारक निरोध
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय

सन्दर्भ 

  • हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा है कि भारत में निवारक निरोध कानून एक औपनिवेशिक विरासत है और यह राज्य को मनमानी शक्ति प्रदान करता है।

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • सुप्रीम कोर्ट ने निवारक निरोध कानूनों को "बेहद शक्तिशाली" बताया और कहा कि निवारक निरोध कानून के पास राज्य को निरंकुश विवेक प्रदान करने की क्षमता है। 
  • अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार ने व्यक्तियों के खिलाफ निवारक निरोध शक्तियों को लागू करते समय कानून की हर प्रक्रिया का पालन किया है या नहीं।

निवारक निरोध

  • निवारक निरोध का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेने से है जिसने अभी तक कोई अपराध नहीं किया है, लेकिन अधिकारी उसे कानून और व्यवस्था के लिए खतरा मानते हैं।
  • निवारक निरोध का उद्देश्य व्यक्ति को दंडित करना नहीं बल्कि उसे अपराध करने से रोकना है।
  • संसद के पास रक्षा, विदेशी मामलों या भारत की सुरक्षा से जुड़े कारणों के लिए निवारक निरोध कानून बनाने की विशेष शक्ति है।
  • संसद और राज्य विधानमंडल दोनों के पास सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव या आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित कारणों के लिए ऐसे कानून बनाने की शक्तियाँ हैं।

निवारक निरोध के लिए आधार

  • किसी व्यक्ति को निम्नलिखित चार कारणों के आधार पर निवारक निरोध के अंतर्गत हिरासत में लिया जा सकता है – 
  1. राज्य की सुरक्षा।
  2. सार्वजनिक व्यवस्था का रखरखाव।
  3. आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति। 
  4. भारत की सुरक्षा एवं विदेशी मामले।

निवारक निरोध से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 कुछ मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा प्रदान करता है। 
  • अनुच्छेद 22 को दो भागों में बांटा गया है - पहला भाग सामान्य कानूनी मामलों से संबंधित है और दूसरा भाग निवारक निरोध कानून के मामलों से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 22 (1) - किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी का अधिकार और उसे कस्टडी में लेने के बाद अपनी रूचि के वकील करने का अधिकार। 
    • अनुच्छेद 22 (2)-  गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर(यात्रा के समय को छोड़कर) मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होगा । 
    • अनुच्छेद 22 (3)- उपर्युक्त दो खंड भारत के किसी शत्रु देश के नागरिकों पर लागू नहीं होंगे 
    • अनुच्छेद 22 (4)- किसी भी व्यक्ति को 3 महीने से अधिक की अवधि के लिए कैद नहीं किया जा सकता है। जब तक कि सलाहकार बोर्ड यह पुष्टि न कर दे कि इस तरह की कैद के लिए पर्याप्त कारण मौजूद हैं।
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