संदर्भ
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों, जिसे भारत ने पंचशील नाम दिया, की स्थापना के 70 वर्ष होने के उपलक्ष्य में चीन ने एक स्मारक सम्मेलन का आयोजन किया है। इस सम्मलेन में चीन ने अपनी इस विदेश नीति की अवधारणा मजबूती से आगे बढ़ाने की बात कही है।
क्या है पंचशील सिद्धांत
- चीन की विदेश नीति के “शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों” इस अवधारणा को पहली बार 1954 में भारत के साथ एक समझौते में व्यक्त किया गया था।
- यह समझौता भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के पूर्व प्रधानमंत्री चऊं इन लेई के बीच हुआ था।
- पंचशील समझौता, जिसे औपचारिक रूप से “तिब्बत क्षेत्र के साथ व्यापार और अंतर्संबंध पर समझौते” के रूप में जाना जाता है, पर 29 अप्रैल, 1954 को चीन में भारतीय राजदूत एन राघवन और चीन के विदेश मंत्री झांग हान-फू द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे।
- समझौते में यह तय हुआ था कि दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध कोई आक्रामक कार्रवाई नहीं करेंगे।
- पंडित जवाहर लाल नेहरु की ओर से बौद्ध अभिलेखों से पंचशील शब्द का चयन किया गया था।
- बौद्ध अभिलेखों में हत्या, चोरी, व्यभिचार, असत्य और मद्यपान के त्याग को पंचशील कहा गया है।
प्रमुख सिद्धांत
- पंचशील समझौते की प्रस्तावना में पांच मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं:
- एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।
- एक-दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्रवाई ना करना।
- एक-दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप ना करना।
- समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना।
- शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना।
समझौते के प्रमुख प्रावधान
- व्यापारिक संबंध : दोनों देशों के बीच व्यापार और सहयोग को बढ़ाना, एक दूसरे के प्रमुख शहरों में प्रत्येक देश के व्यापार केंद्र स्थापित करना और व्यापार के लिए रूपरेखा तैयार करना।
- सांस्कृतिक संबंध : महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थयात्राओं, तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं और उनके लिए उपलब्ध स्वीकार्य मार्गों को भी सूचीबद्ध किया गया था।
- तिब्बत की चीनी क्षेत्र के रूप में स्वीकृति : भारत ने पहली बार तिब्बत को चीन के तिब्बत क्षेत्र के रूप में मान्यता दी।
- भारत ने 1904 की ऐंग्लो-तिब्बत संधि के तहत तिब्बत के संबंध अपने अधिकारों को इस समझौते के बाद छोड़ दिए।
पंचशील सिद्धांतों का प्रभाव
- पंचशील सिद्धांतों को 1955 में अफ्रीकी-एशियाई बांडुंग सम्मेलन में मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाया गया।
- अप्रैल 1955 के बांडुंग सम्मेलन में एशिया और अफ्रीका के 29 देशों ने हिस्सा लिया और 10 सूत्री घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए।
- बांडुंग सम्मेलन ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के अग्रदूत के रूप में काम किया।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन राष्ट्रों का एक समूह है, जिन्होंने स्वेच्छा से संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व वाले दो वैश्विक शक्ति ब्लॉकों में से किसी के साथ खुद को संरेखित नहीं करने का फैसला किया था।
- NAM की स्थापना 19 जुलाई, 1956 को भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेफ ब्रोज़ टीटो और मिस्र (Egypt) के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर द्वारा “ब्रियोनी घोषणा” पर हस्ताक्षर करने के साथ हुई थी।
- ब्रियोनी द्वीप उत्तरी एड्रियाटिक सागर में हैं, और अब क्रोएशिया का हिस्सा हैं।
- 1961 में बेलग्रेड में आयोजित प्रथम गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में पंचशील को समूह के “मूल सिद्धांत” के रूप में स्वीकार किया गया।
- बाद में 1957 में भारत, यूगोस्लाविया और स्वीडन द्वारा संचालित संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इन सिद्धांतों को अपनाया गया।
चीन की आधिपत्यवादी नीति
- चीन स्वयं भारत सहित अन्य पड़ोसियों के प्रति एक आधिपत्यवादी दृष्टिकोण अपना कर अपने सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का उल्लंघन करता रहा है।
- चीन द्वारा पहले तीन सिद्धांतों का उल्लंघन एक दशक से भी कम समय में किया गया।
- क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए आपसी सम्मान को नकार दिया गया और चीन ने भारतीय क्षेत्र के बड़े हिस्से पर कब्जा करना जारी रखा।
- पाकिस्तान के सहयोग से चीन ने एक बड़े हिस्से अक्साई चिन में भी कब्ज़ा कर लिया।
- चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (2013) और चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजना भारत की यथास्थिति और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने के लिए आक्रामक इरादे का प्रमाण है।
- वर्तमान समय में भू-राजनीतिक स्थिति कहीं अधिक विकट और खतरनाक होने के कारण चीन की भौगोलिक और व्यापारिक आक्रामकता तेजी से जारी है।
- चीन का लक्ष्य आगामी शीत युद्ध 2.0 परिदृश्य में समान विचारधारा वाले देशों के समूह का नेतृत्व करने के लिए एक ध्रुव का दर्जा प्राप्त करना है।
- ग्रे ज़ोन युद्ध की कला में पारंगत चीन ने अपने विवादों में खुले तौर पर पाँच सिद्धांतों को अपनी विदेश नीति के मूल के रूप में पेश करना जारी रखा है।
निष्कर्ष
- पंचशील समझौता भारत और चीन के बीच आर्थिक और राजनीतिक संबंधों की ठीक करने की दिशा में उठाया गया एक सोचा समझा कदम था, लेकिन चीन ने इसका गलत फायदा उठाया और भारत के साथ विश्वासघात किया।
- भारत, जो अभी भी पंचशील सिद्धांतों में विश्वास करता है और वसुधैव कुटुम्बकम के अपने सिद्धांत के माध्यम से एक नए सार्वभौमिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाता है।
- भारत वैश्विक कल्याण, शांति एवं स्थिरता के लिए संवाद और कूटनीति के माध्यम से विश्व के सभी देशों तक पहुँच सुनिश्चित कर रहा है और विश्व का नेतृत्व करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।