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बैंकों का निजीकरण : कारण व चिंताएँ

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, बैंकिंग)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यस्था, सरकारी बजट और बैंकिंग)

संदर्भ

हाल ही में प्रस्तुत बजट में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों के निजीकरण का लक्ष्य रखा है। वर्ष 1969 में सरकारी स्वामित्त्व वाले बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 51 साल बाद उठाया जाने वाला यह कदम बैंकिंग में निजी क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान करेगा।

निजीकरण के प्रस्ताव का कारण

  • रणनीतिक विनिवेश- केंद्रीय बजट में ‘बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाओं’ सहित चार क्षेत्रों के रणनीतिक बिक्री/विनिवेश की घोषणा की गई है। बजट में आगामी वित्तीय वर्ष में सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों (IDBI बैंक के अतिरिक्त) और एक सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण की घोषणा की गई है।
  • वित्तीय संस्थानों की ख़राब स्थिति- कई वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूँजीगत इंजेक्शन (पूँजी डालने) और प्रशासनिक सुधार के बावजूद इनकी वित्तीय स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। इनमें से कई बैंकों में तनावग्रस्त संपत्ति (Stressed Assets) का स्तर निजी बैंकों की तुलना में उच्च है। साथ ही लाभ, बाज़ार पूँजीकरण और लाभांश भुगतान रिकॉर्ड में भी इनकी स्थिति संतोषजनक नहीं है।
  • अधिक पुनर्पूंजीकरण- सरकार ने सितंबर 2019 में सरकार द्वारा संचालित बैंकों में 70,000 करोड़ रूपए, वित्त वर्ष 2018 में 80,000 करोड़ रूपए और पुनर्पूंजीकरण बांडों के माध्यम से वित्त वर्ष 2019 में 06 लाख करोड़ रूपए इंजेक्ट किया है। विदित है कि वर्ष 2019 में सरकार ने 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 4 में विलय कर दिया था।
  • राज्य स्वामित्व वाले बैंकों को सीमित करना- सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों का निजीकरण एक लंबी अवधि के दृष्टिकोण के लिये आधार के रूप में कार्य करेगा, जिसमें सीमित संख्या में राज्य स्वामित्व वाले बैंकों की परिकल्पना की गई है। अन्य बैंकों को या तो मजबूत बैंकों के साथ संयुक्त कर दिया जाएगा या उनका निजीकरण कर दिया जाएगा। इस निर्णय से सरकार द्वारा बैंकों को साल-दर-साल इक्विटी सहायता नहीं प्रदान करना पड़ेगा। इस प्रकार अब 28 की जगह राज्य स्वामित्व वाले 12 बैंक शेष बचे हैं।
  • प्रक्रिया- निजीकरण किये जाने वाले दो बैंकों को एक प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाएगा, जिसकी सिफारिश नीति आयोग करेगा। इसके बाद विनिवेश पर सचिवों के एक मुख्य समूह द्वारा और फिर वैकल्पिक तंत्र (या मंत्रियों के समूह) द्वारा इस पर विचार किया जाएगा।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के समक्ष चुनौतियाँ

  • सरकार द्वारा विलय और इक्विटी डालने से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रदर्शन में पिछले कुछ वर्षों में सुधार देखा गया है। हालाँकि, निजी बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एन.पी.ए.) और तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का स्तर उच्च है, यद्यपि अब इसमें गिरावट देखी जा रही है।
  • साथ ही कोविड-19 से संबंधित विनियामक छूट ख़त्म किये जाने के बाद बैंकों के एन.पी.ए. और ऋण भुगतान में कमी का स्तर उच्च होने की उम्मीद है।
  • आर.बी.आई. की हालिया ‘वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट’ के अनुसार, सभी वाणिज्यिक बैंकों का सकल एन.पी.ए. अनुपात सितंबर 2020 में 5% से बढ़कर भावी परिदृश्य के तहत सितंबर 2021 तक 13.5% हो सकता है। इसमें सार्वजनिक बैंकों का हिस्सा निजी बैंकों से लगभग दोगुने से अधिक रहने की उम्मीद है।
  • इसका मतलब यह है कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के कमजोर बैंकों में फिर से इक्विटी को इंजेक्ट करने की आवश्यकता होगी। अत: सरकार मजबूत बैंकों को और सशक्त बनाने की कोशिश के साथ-साथ निजीकरण के माध्यम से अपने ऊपर बोझ को कम करना चाहती है।

पूर्व में निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का कारण

  • तत्कालीन प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री इंदिरा गाँधी ने 19 जुलाई 1969 को 14 सबसे बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया। यह विचार सरकार के समाजवादी दृष्टिकोण को बैंकिंग क्षेत्र से संरेखित करने से प्रेरित था।
  • पिछले 20 वर्षों से विभिन्न सरकारें निजीकरण के पक्ष और विपक्ष में रही हैं। वर्ष 2015 में सरकार ने निजीकरण का सुझाव दिया था, लेकिन तत्कालीन आर.बी.आई. गवर्नर ने इस विचार का पक्ष नहीं लिया।
  • पूर्व आर.बी.आई. गवर्नर डॉ. वाई. वी. रेड्डी ने एक बार कहा था कि राष्ट्रीयकरण एक राजनीतिक निर्णय था, इसलिये बैंकों का निजीकरण भी ऐसे निर्णय से होगा। इस संदर्भ में दो बैंकों का निजीकरण और इस प्रक्रिया को आगे जारी रखना बदलते राजनीतिक दृष्टिकोण के संकेत के साथ-साथ एक प्रमुख सुधार है।
  • बैंकों के स्वामित्व में एक ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ की स्थापना के साथ उपरोक्त कदम वित्तीय क्षेत्र की चुनौतियों के लिये बाजार-आधारित समाधान खोजने के दृष्टिकोण को रेखांकित करती है।

निजी बैंकों की स्थिति

  • निजी बैंकों की ऋण में हिस्सेदारी वर्ष 2015 में 26% से बढ़कर 2020 में 36% हो गई है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का हिस्सा 74.28% से कम होकर 59.8% तक हो गया है। आर.बी.आई. द्वारा 1990 के दशक से अधिक संख्या में निजी बैंकों को अनुमति देने के बाद प्रतिस्पर्धा में तेज़ी आई है।
  • निजी बैंकों ने नए उत्पादों, प्रौद्योगिकियों और बेहतर सेवाओं के माध्यम से बाजार में हिस्सेदारी का विस्तार किया है और शेयर बाजार में बेहतर वैल्यूएशन को भी आकर्षित किया है। भारत में 22 निजी बैंक और 10 छोटे वित्त बैंक हैं।
  • हालाँकि, येस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक और आई.सी.आई.सी.आई. जैसे निजी बैंकों के प्रदर्शन पर कुछ सवाल उठे हैं। इसके अलावा, जब आर.बी.आई. ने वर्ष 2015 में बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा का आदेश दिया, तो येस बैंक सहित निजी क्षेत्र के कई बैंक एन.पी.ए. की अंडर-रिपोर्टिंग में लिप्त पाए गए थे।

निजीकरण पर सरकार और आर.बी.आई. का पक्ष

  • कई समितियाँ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी को 51% से नीचे लाने का प्रस्ताव दे चुकी हैं। नरसिम्हम समिति ने इसे 33% करने और पी. जे. नायक समिति ने इसको 50% से कम करने का सुझाव दिया।
  • इसके अतिरिक्त आर.बी.आई. के एक कार्यकारी समूह ने हाल ही में बैंकिंग क्षेत्र में व्यावसायिक घरानों के प्रवेश का सुझाव दिया है। हाल के वर्षों में सरकार ने भी निजीकरण पर जोर देने के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या को 5-6 तक सीमित करने का प्रयास किया है।
  • आर.बी.आई. के अनुसार, वाणिज्यिक बैंकिंग को समेकित करने के क्रम में वाणिज्यिक बैंकों की संख्या में तेजी से कमी करते हुए इसको वर्ष 1951 में 566 से 1966 में 91 कर दी गई थी। इस प्रकार 1960 के दशक के मध्य तक भारतीय बैंकिंग पहले की तुलना में कहीं अधिक व्यवहार्य हो गई थी। हालाँकि, इनकी शाखाओं का विस्तार ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में था।
  • एक बड़ा सवाल यह है कि क्या निजी बैंक 1960 की गलतियों को दोहराएंगे? इस संबंध व्यापक धारणा यह है कि निजी क्षेत्र तब अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में पर्याप्त जागरूक नहीं थे और लाभ को लेकर अधिक चिंतित थे। इससे निजी बैंकों के ऋण पोर्टफोलियो में विविधता का आभाव देखा गया क्योंकि यह लेनदेन की लागत बढ़ाएगा और लाभ को कम करेगा।

आने वाले समय में बैंकों का निजीकरण 

  • वर्तमान में आई.डी.बी.आई. और एस.बी.आई. के अलावा दस राष्ट्रीयकृत बैंक हैं। सरकार एस.बी.आई. सहित शीर्ष बैंकों के निजीकरण पर नहीं बल्कि छोटे व मध्यम स्तर के बैंकों के निजीकरण पर विचार कर रही है।
  • सरकार की प्रारंभिक योजना चार बैंकों के निजीकरण की थी, जो पहले दो की सफलता पर निर्भर करता है। विदित है कि सार्वजानिक बैंक दोहरे नियंत्रण में हैं। आर.बी.आई. बैंकिंग परिचालन का पर्यवेक्षण करता है जबकि वित्त मंत्रालय स्वामित्व संबंधी मुद्दों को संभालता है।
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