प्रोबा-3 मिशन 4 दिसंबर को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा। दुनिया में पहली बार प्रोबा-3 मिशन में दो कृत्रिम उपग्रह ‘समानांतर उपग्रह युग्म (Parallel Satellite Pair)’ संरचना में होंगे।
प्रोबा-3 मिशन के बारे में
- निर्माण एवं डिज़ाइन : यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA)
- कार्य : सूर्य के वायुमंडल की बाहरी परत अर्थात कोरोना का अध्ययन करना
- शामिल उपग्रह : इस मिशन के तहत दो कृत्रिम उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण
- भारत के आदित्य एल 1 मिशन में कोरोनाग्राफ एवं ऑकुल्टर दोनों उपकरण एक ही कृत्रिम उपग्रह में शामिल थे जबकि इस मिशन में दोनों उपकरणों के लिए अलग-अलग कृत्रिम उपग्रह होगा।
- प्रक्षेपण कक्ष : इसरो द्वारा दोनों उपग्रहों को 600 x 60530 किलोमीटर की अत्यधिक दीर्घवृत्ताकार कक्षा में एक साथ प्रक्षेपण
- बाद में दोनों कृत्रिम उपग्रहों को समानांतर कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
प्रोबा-3 मिशन की विशेषताएँ
- ये कृत्रिम उपग्रह एक-दूसरे से लगभग 150 मीटर की दूरी पर समानांतर गति करेंगे और प्रतिदिन छह घंटे तक एक ही दिशा में उड़ेंगे। इस सापेक्ष स्थिति बनाए रखने के लिए, एक कृत्रिम उपग्रह से दूसरे कृत्रिम उपग्रह पर लगे रिफ्लेक्टर पर लेजर प्रकाश का उपयोग किया जाएगा।
- इसके बाद सामान्य परिचालन में एक विशाल सौर कोरोनाग्राफ का उपयोग करते हुए उड़ान संचालन एवं वैज्ञानिक अवलोकन दोनों शामिल होंगे, जो सूर्य के कोरोना या आसपास के वातावरण के निरंतर दृश्य प्राप्त करने के लिए सौर डिस्क से आने वाले प्रकाश को रोक देगा।
लाभ एवं महत्व
- प्रोबा-3 मिशन अंतरिक्ष में एक प्रकार की प्रयोगशाला के रूप में कार्य करेगी जो रणनीतियों, मार्गदर्शन, नेविगेशन एवं नियंत्रण तथा अन्य एल्गोरिदम, जैसे- सापेक्षिक जी.पी.एस. नेविगेशन आदि के संदर्भ में स्पष्टता प्रदान करेगी।
- यह मिशन फॉर्मेशन फ़्लाइंग के लिए मेट्रोलॉजी उपकरणों जैसी प्रमुख तकनीकों को भी मान्य करेगा। इस तकनीक का उपयोग भविष्य के मंगल सैंपल रिटर्न मिशन और निम्न-पृथ्वी कक्षा से उपग्रहों को डी-ऑर्बिट करने के लिए किया जा सकता है।