(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
उत्पादकता में वृद्धि अर्थव्यवस्था में बदलाव के लिये महत्त्वपूर्ण होती है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में श्रम बल धीमी गति से बढ़ता है तथा पूँजी स्टॉक बड़ी मात्रा में पहले से ही मौजूद होता है। आमतौर पर ‘श्रम और पूँजी’ उत्पादन के अधिकांश भाग के लिये ज़िम्मेदार होता है।
उत्पादकता में वृद्धि और आर्थिक सुधार
- उत्पादकता बढ़ाना आर्थिक प्रदर्शन में सुधार का सबसे सीधा और तात्कालिक उपाय है। उदाहरण के लिये, यदि अमेरिका में पूर्ण कारक उत्पादकता (Total Factor Productivity) में वार्षिक वृद्धि विगत पाँच वर्षों में 5% से बढ़कर 2% हो जाती है तो इसके सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2023-26 के लिये आई.एम.एफ. द्वारा अनुमानित 1.5% से दोगुनी हो जाएगी। ‘पूर्ण कारक उत्पादकता’ की गणना सामान्यतः ‘कुल आउटपुट’ को ‘कुल इनपुट’ से विभाजित कर की जाती है।
- उत्पादकता में तीव्र वृद्धि कोई अनोखी बात नहीं है। वर्ष 1996 से 2004 के बीच अमेरिका में ऐसा देखा गया था। इस अवधि को अक्सर ‘नई अर्थव्यवस्था के वर्ष’ भी कहा जाता है क्योंकि इस दौरान थोक, खुदरा व वित्त क्षेत्र में डिजिटल प्रक्रियाओं को समावेश हुआ था।
- यदि इसी दर से उत्पादकता में पुनः वृद्धि होती है तो एक ही पीढ़ी में आय दोगुनी हो सकती है। सरकारों के पास राजस्व अधिक होगा तथा बजट घाटे कम होंगे। ऋण-जी.डी.पी. अनुपात सुधारेगा और विकास प्रक्रिया तीव्र होगी।
बदलाव के संकेत
- कोविड महामारी से इसमें बदलाव की उम्मीद है। ‘मैकिन्से एंड कंपनी’ जैसे आशावादी कहते हैं कि इससे दूरस्थ कार्य (Remote Work) की प्रवृत्ति बढ़ेगी क्योंकि फर्में अपने कार्य-संचालन को अधिक कुशलता से संगठित कर रही हैं।
- कार्यों को ‘स्वचालित’ करने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं, जैसे मशीनों के द्वारा माँस की पैकिंग करना। महामारी ने ऑनलाइन खुदरा लेन-देन, टेली हेल्थ और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया है।
समस्याएँ
- डिजिटल प्रौद्योगिकी में निवेश बड़ी कंपनियों तक ही सीमित है। अतः बड़ी कंपनियों के वर्चस्व से प्रतिस्पर्धा में अभाव के साथ-साथ इन पर नवाचार का दबाव भी कम हो जाएगा।
- कोविड के प्रति ‘सामूहिक प्रतिरक्षा’ के अभाव में आतिथ्य क्षेत्र (HospitalitySector) की कंपनियों को स्थायी रूप से उच्च लागत का सामना करना पड़ेगा।
- ‘आर.एन.ए. आधारित कोविड टीकों’ के तीव्र विकास से वैज्ञानिक प्रगति तो दिखी, परंतु मेटामटेरियल्स, ह्यूमन जीनोमिक्स, नैनो तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में भी इसका विस्तार हुआ। मगर अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में अत्यधिक वक्त लगेगा।
संभावनाएँ एवं उपाय
- वर्ष 1918-20 की इन्फ्लूएंजा महामारी के परिणाम पर विचार करें तो इसने मोटर वाहनों के लिये आंतरिक दहन इंजन और उत्पादन के लिये हेनरी फोर्ड के असेंबली लाइन के विकास को आगे बढ़ाया था। इसी समय सुपर हेट्रोडाइन रिसीवर का आविष्कार हुआ, जिसने रेडियो कॉर्पोरेशन ऑफ अमेरिका को उस युग की प्रमुख उच्च तकनीक कंपनी के रूप में स्थापित किया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विकसित रासायनिक प्रक्रियाओं ने बाद में उर्वरक लागत को कम हुई और कृषि क्षेत्र को लाभ हुआ।
- हालाँकि 1920 के दशक में जब उत्पादकता बढ़ी, तो इसका पूर्ण प्रभाव 1930 के दशक में महसूस किया गया।फर्मों ने ग्रेट डिप्रेशन के दौरान उत्पादन को पुनर्गठित करने का प्रयास किया और जो ऐसा करने में सक्षम नहीं थे, वे बाज़ार प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गए। सरकार ने सड़कों में निवेश किया, जिससे वितरण में उत्पादकता बढ़ाने के लिये ट्रकिंग उद्योग का विकास हुआ।
- प्रयास और परिणाम में यह विलंब दो महत्त्वपूर्ण सबक सिखाता है। पहला, उत्पादकता में तीव्र वृद्धि को वास्तविकता में बदलने में कुछ समय लगता है और सरकार व केंद्रीय बैंकों को इसके अनुसार ही योजना बनानी चाहिये। दूसरा, सरकार यह सुनिश्चित करने के लिये कुछ कदम उठा सकती है कि उत्पादकता में वृद्धि अपेक्षाकृत जल्दी शुरू हो। इसके लिये सड़कों और पुलों में निवेश करने की तरह आज ब्रॉडबैंड में निवेश करने की आवश्यकता है ताकि डिजिटलीकरण का दक्षतापूर्वक लाभ पूरी अर्थव्यवस्था को मिल सके।
- आर्थिक क्षति और मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं को समाप्त करने के लिये उत्पादकता में तीव्र वृद्धि एक उचित आधार हो सकता है। हालाँकि बुनियादी सुविधाओं पर खर्च में कमी आने से यह प्रतिकूल भी हो सकता है क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा जैसे बुनियादी क्षेत्रों में कम खर्च दीर्घावधि में नुकसानदायक होगा।